Vishnu ka vahan Garud
देवता-त्रयी में मुख्य देवता हैं विष्णु. आज भगवन विष्णु के मानाने वाले हिन्दुओं की संख्या बहुतायत में है जिन्हें वैष्णव कहा जाता है. भगवन विष्णु की आराधना भगवन राम और कृष्ण के रूप में भी की जाती है. ऐसी मान्यता है की भगवन विष्णु का अवतार भी विष्णु की ही तरह अनोखा और विलक्षण है, यानी गरुड़. लुप्त हो रहा है गरूड़। माना जाता है कि गिद्धों (गरूड़) की एक ऐसी प्रजाति थी, जो बुद्धिमान मानी जाती थी और उसका काम संदेश को इधर से उधर ले जाना होता था, जैसे कि प्राचीनकाल से कबूतर भी यह कार्य करते आए हैं। भगवान विष्णु का वाहन है गरूड़।
प्रजापति कश्यप की पत्नी विनता के 2 पुत्र हुए- गरूड़ और अरुण। गरूड़जी विष्णु की शरण में चले गए और अरुणजी सूर्य के सारथी हुए। सम्पाती और जटायु इन्हीं अरुण के पुत्र थे।
राम के काल में सम्पाती और जटायु की बहुत ही चर्चा होती है। ये दोनों भी दंडकारण्य क्षेत्र में रहते थे, खासकर मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ में इनकी जाति के पक्षियों की संख्या अधिक थी। छत्तीसगढ़ के दंडकारण्य में गिद्धराज जटायु का मंदिर है। स्थानीय मान्यता के मुताबिक दंडकारण्य के आकाश में ही रावण और जटायु का युद्ध हुआ था और जटायु के कुछ अंग दंडकारण्य में आ गिरे थे इसीलिए यहां एक मंदिर है।
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दूसरी ओर मध्यप्रदेश के देवास जिले की तहसील बागली में ‘जटाशंकर’ नाम का एक स्थान है जिसके बारे में कहा जाता है कि गिद्धराज जटायु वहां तपस्या करते थे। जटायु पहला ऐसा पक्षी था, जो राम के लिए शहीद हो गया था। जटायु का जन्म कहां हुआ, यह पता नहीं, लेकिन उनकी मृत्यु दंडकारण्य में हुई। आज भी भगवन राम की पूजा करने वाले भक्त जटायु का नाम बड़ी ही श्रद्धा से लेते हैं और राम कथा में जटायु प्रसंग आने पर सभी का सर भक्ति से झुक जाता है.
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