विशेषण की परिभाषा, भेद, उदाहरण (Visheshan ki paribhasha Bhed Udaharan)
विशेषण की परिभाषा:
विशेषण का अभिप्राय होता है विशेष गुण।वह गुण जो संज्ञा या सर्वनाम को विशेष दर्जा दे विशेषण कहलाता है। अतः व्याकरण में विशेषण की सर्व मान्य परिभाषा है– “जिस शब्द से संज्ञा या सर्वनाम की विशेषता प्रकट हो उसे विशेषण कहते हैं“। उदाहरण स्वरुप- सीता सुंदर है। राम काला है। यहां सुंदर और काला शब्द विशेषण है क्योंकि इससे सीता और राम के विशेष गुणों क्रमशः सुंदरता और कालेपन का बोध होता है।
विशेषण के भेद:
विशेषण को मुख्यत: चार भागों में बांटा गया है-
1.गुण वाचक विशेषण
2.संख्या वाचक विशेषण
3.परिमाण वाचक विशेषण
4.सार्वनामिक विशेषण
गुण वाचक विशेषण–
जिस शब्द से संज्ञा या सर्वनाम के आंतरिक या बाहरी गुण या दोषों का बोध हो उसे गुणवाचक विशेषण कहते हैं। इसके अंतर्गत गुण,दोष, रंग, आकार,काल,स्थान, दशा, दिशा, अवस्था इत्यादि गुणों को रखा गया है, जैसे,राम अच्छा गायक है। रावण बड़ा पापी था| चादर काली है, इत्यादि।
जैसे– अच्छा, बुरा, सफेद, काला, रोगी, मोटा, पतला, लम्बा, चौड़ा, नया, पुराना, ऊँचा, मीठा, चीनी, नीचा, प्रातःकालीन आदि।
अवस्था बोधक : गीला, सूखा, जला,
आकारबोधक : मोटा, छोटा, बड़ा, लंबा,
कालबोधक : पुराना, प्राचीन, नवीन, क्षणिक, क्षणभंगुर,
गंधबोधक : खुशबूदार, सुगंधित,
गुणबोधक : अच्छा, भला, सुन्दर, श्रेष्ठ, शिष्ट,
दशाबोधक : अस्वस्थ, रोगी, भला, चंगा,
दिशाबोधक : पूर्वी, पश्चिमी, उत्तरी, दक्षिणी,
दोषबोधक : बुरा, खराब, उदंड, जहरीला,
रंगबोधक : काला, गोरा, पीला, नीला, हरा,
स्थानबोधक : चीनी, मद्रासी, बिहारी, पंजाबी,
स्पर्शबोधक : कठोर, कोमल, मखमली,
स्वादबोधक : खट्टा, मीठा, कसैला, नमकीन
संख्यावाचक विशेषण–
जिस शब्द से संज्ञा सर्वनाम की संख्या का बोध होता है उसे संख्यावाचक विशेषण कहते हैं ।संख्यावाचक विशेषण के दो भेद हैं, निश्चित संख्यावाचक और अनिश्चित संख्यावाचक ।
निश्चित संख्या वाचक विशेषण–
जिस शब्द से संज्ञा या सर्वनाम की संख्या की निश्चितता का पता चले उसे निश्चित संख्यावाचक विशेषण कहते हैं -जैसे पांच आम,दस विद्यार्थी,सात मिठाई ।
आवृत्तिवाचक : यह विशेष्य में किसी इकाई की आवृत्ति की संख्या बतलाता है। जैसे- दुगने छात्र, ढाई गुना लाभ आदि।
क्रमवाचक : यह विशेष्य की क्रमात्मक संख्या यानी विशेष्य के क्रम को बतलाता है। इसका प्रयोग सदा एकवचन में होता है। जैसे- पहली कक्षा, दूसरा लड़का, तीसरा आदमी, चौथी खिड़की आदि।
गणनावाचक : यह अपने विशेष्य की साधारण संख्या या गिनती बताता है। इसके भी दो प्रभेद होते हैं-
(a) पूर्णांकबोधक/पूर्ण संख्यावाचक : इसमें पूर्ण संख्या का प्रयोग होता है। जैसे- चार छात्र, आठ लड़कियाँ
(b) अपूर्णांक बोधक/अपूर्ण संख्यावाचक : इसमें अपूर्ण संख्या का प्रयोग होता है। जैसे- सवा रुपये, ढाई किमी. आदि।
वीप्सावाचक : व्यापकता का बोध करानेवाली संख्या को वीप्सावाचक कहते हैं। यह दो प्रकार से बनती है—संख्या के पूर्व प्रति, फी, हर, प्रत्येक इनमें से किसी के पूर्व प्रयोग से या संख्या के द्वित्व से। जैसे- प्रत्येक तीन घंटों पर यहाँ से एक गाड़ी खुलती है।
संग्रहवाचक : यह अपने विशेष्य की सभी इकाइयों का संग्रह बतलाता है। जैसे- चारो आदमी, आठो पुस्तकें आदि।
समुदायवाचक : यह वस्तुओं की सामुदायिक संख्या को व्यक्त करता है। जैसे- एक जोड़ी चप्पल, पाँच दर्जन कॉपियाँ आदि।
अनिश्चित संख्यावाचक विशेषण –
जिस शब्द से संज्ञा या सर्वनाम की अनिश्चित संख्या का बोध हो उसे अनिश्चित संख्यावाचक विशेषण कहते हैं ,जैसे- कुछ आम, कई पेड़।
परिमाणवाचक विशेषण–
परिमाण का अर्थ होता है जिसे मापा या तौला जा सके। वैसे संज्ञा या सर्वनाम शब्द जिसे गिन नहीं सकते उन्हें माप या तौल कर उनकी मात्रा का पता करते हैं। अतः वैसे शब्द जिससे संज्ञा या सर्वनाम की मात्रा या तौल का पता चले उसे अनिश्चित संख्यावाचक विशेषण कहते हैं, जैसे , 10 किलो दूध, 4 किलो आटा।
परिमाणवाचक विशेषण के भी दो भेद हैं -निश्चित परिमाणवाचक और अनिश्चित परिमाणवाचक।
निश्चित परिमाणवाचक विशेषण –
जिन शब्दों से संज्ञा या सर्वनाम के निश्चित परिमाण का बोध हो उसे निश्चित परिमाणवाचक विशेषण कहते हैं ,जैसे – 2 किलो दूध ,5 किलो चावल, 2 मीटर कपड़ा इत्यादि।
अनिश्चित परिमाणवाचक विशेषण –
जिस शब्द से संज्ञा या सर्वनाम के अनिश्चित मात्रा या तौल का पता चले उसे अनिश्चित परिमाणवाचक विशेषण कहते हैं, जैसे- थोड़ा दूध बहुत चीनी , थोड़ा सा अनाज, थोड़ा सा दूध इत्यादि ।
सार्वनामिक विशेषण :
सार्वनामिक विशेषण को संकेतवाचक विशेषण भी कहते हैं। वैसे सर्वनाम शब्द जो संकेत के माध्यम से संज्ञा या सर्वनाम की विशेषता बताएं उसे सार्वनामिक विशेषण कहते हैं, जैसे- दरवाजे पर कोई है, कुछ लोग वहां खड़े हैं, वह लड़का अच्छा है, इन्हें सार्वनामिक विशेषण इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह सर्वनाम होते हैं परंतु विशेषण के रूप में उनका प्रयोग किया जाता है।
सार्वनामिक विशेषण के भेद
व्युत्पत्ति के अनुसार सार्वनामिक विशेषण के भी दो भेद है-
(i) मौलिक सार्वनामिक विशेषण
(ii) यौगिक सार्वनामिक विशेषण
(i) मौलिक सार्वनामिक विशेषण- जो बिना रूपान्तर के संज्ञा के पहले आता हैं।
जैसे- ‘यह’ घर; वह लड़का; ‘कोई’ नौकर इत्यादि।
(ii) यौगिक सार्वनामिक विशेषण- जो मूल सर्वनामों में प्रत्यय लगाने से बनते हैं।
जैसे- ‘ऐसा’ आदमी; ‘कैसा’ घर; ‘जैसा’ देश इत्यादि।
संख्यावाचक विशेषण और परिमाणवाचक विशेषण में अंतर–
गणनीय वस्तुओं के लिए संख्यावाचक विशेषण का तथा अगणनीय वस्तुओं के लिए परिमाणवाचक विशेषण का प्रयोग किया जाता है।
सार्वनामिक विशेषण तथा सर्वनाम में अंतर–
सार्वनामिक विशेषण और सर्वनाम में यह अंतर है कि सर्वनाम संज्ञा के विकल्प के रूप में प्रयुक्त किया जाता है जबकि सार्वनामिक विशेषण संज्ञा या सर्वनाम के किसी गुण का बोध कराता है
सर्वनाम का उदाहरण सेवासदन प्रेमचंद का उपन्यास है। वे महान उपन्यासकार थे
सार्वनामिक विशेषण का उदाहरण वे अमरूद के बाग यहां से दूर है।
प्रविशेषण:
जो शब्द विशेषण की विशेषता बतलाए उसे प्रविशेषण कहते हैं, जैसे- वह बहुत मधुर गाता है। उसका घर बहुत सुंदर है।
उपर्युक्त वाक्यों में सुंदर तथा मधुर विशेषण का बोध कराते हैं किंतु मधुर तथा सुंदर से पहले बहुत शब्द का प्रयोग हुआ है जो उस विशेषण की विशेषता बताते हैं और यही प्रविशेषण कहलाता है।
विशेषण और विशेष्य–
संज्ञा शब्द के विशेष गुण को विशेषण कहते हैं अर्थात संज्ञा की विशेषता बतलाने वाले शब्द विशेषण कहलाते है जबकि जिस संज्ञा शब्द की विशेषता बताई जाती है उसे विशेष्य कहते हैं। एक उदाहरण के द्बारा इसे समझा जा सकता है, राम अच्छा गाता है इस वाक्य में अच्छा विशेषण है और राम विशेष्य है।
विशेषण की अवस्थाएं–
मूलतः विशेषण की तीन अवस्थाएं होती हैं जिसे क्रमशः इन नामों से जानते हैं
1.मूलावस्था
2.उत्तरावस्था
3.उत्तमावस्था
विशेषण की मूलावस्था :
जब संज्ञा या सर्वनाम के विशेष गुणों का वर्णन सामान्य रूप से किया जाए उसे मूलावस्था कहते हैं जैसे राम सुंदर है , सीता लंबी है मोहन मेहनती है इत्यादि
विशेषण की उत्तरावस्था :
जब दो वस्तुओं या व्यक्तियों में तुलना कर किसी एक वस्तु को दूसरे की अपेक्षा अच्छा बताया जाए उसे उत्तरा अवस्था कहते हैं, जैसे मोहन राम के अपेक्षा सुंदर है सीता गीता से लंबी है। यह किताब उस किताब से ज्यादा मनोरंजक है।
विशेषण की उत्तमावस्था:
जब कई वस्तुओं या व्यक्तियों में से किसी एक को सर्वश्रेष्ठ बताया जाए तो उसे उत्तम अवस्था कहते हैं। जैसे राम सबसे सुंदर है। सीता सबसे लंबी है। मोहन सबसे अच्छा गाता है।
मूलावस्था, उत्तरावस्था और उत्तमावस्था के कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं-
मूलावस्था उत्तरावस्था उत्तमावस्था
लघु लघुत्तर लघुत्तम
सुंदर सुंदरत्तर सुंदरम
कोमल कोमलत्तर कोमलतम
उच्च उच्चत्तर उच्चतम
योग्य योग्यत्तर योग्यतम
विशेषण के कार्य
विशेषण के निम्नलिखित प्रमुख कार्य हैं-
(1) विशेषता बताना- विशेषण के द्वारा किसी व्यक्ति या वस्तु की विशेषता बताई जाती है। जैसे- मोहन सुन्दर है। यहाँ ‘सुन्दर’ मोहन की विशेषता बताता है।
(2) हीनता बताना- विशेषण किसी की हीनता भी बताता है। जैसे- वह लड़का शैतान है। यहाँ ‘शैतान’ लड़के की हीनता बताता है।
(3) अर्थ सीमित करना- विशेषण द्वारा अर्थ को सीमित किया जाता है। जैसे- काली गाय। यहाँ ‘काली’ शब्द गाय के एक विशेष प्रकार का अर्थबोध कराता है।
(4) संख्या निर्धारित करना- विशेषण संख्या निर्धारित करने का काम करता है। जैसे- एक आम दो। यहाँ ‘एक’ शब्द से आम की संख्या निर्धारित होती है।
(5) परिमाण या मात्रा बताना- विशेषण के द्वारा मात्रा बताने का काम किया जाता है। जैसे- पाँच सेर दूध। यहाँ ‘पाँच सेर’ से दूध की निश्र्चित मात्रा का अर्थबोध होता है।
विशेष्य और विशेषण में सम्बन्ध
विशेषण संज्ञा अथवा सर्वनाम की विशेषता बताता है और जिस संज्ञा या सर्वनाम की विशेषता बतायी जाती है, उसे विशेष्य कहते हैं।
वाक्य में विशेषण का प्रयोग दो प्रकार से होता है- कभी विशेषण विशेष्य के पहले आता है और कभी विशेष्य के बाद।