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तेनालीराम की तरकीब – Tenaliram ki kahani

विजय नगर के राजा कृष्णदेवराय का एक दरबारी तेनालीराम से बहुत नाराज था| तेनालीराम ने उससे हंसी हंसी में कुछ ऐसी बात कह दी, जो उसे बुरी लग गई| दरबारी ने उसी दिन तेलानीराम से बदला लेने की ठान ली| दरबारी की तरह राजगुरु भी तेनालीराम हो पसंद नहीं करते थे| कहते हैं जब किसी व्यक्ति के दो दुश्मन हो तो वह दुश्मन आपस में दोस्त बन जाते हैं| इसलिए दरबारी और राजगुरु में मित्रता हो गई| वह दोनों इस बात से भी नाराज थे की राजा भी हमेशा तेनालीराम की प्रशंसा करते हैं|

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दरबारी राजा को हमेशा भला बुरा कहा करता था| यह बात तेनाली राम जानते थे| एक बार राजा से दरबारी और राजगुरु ने में शिकायत की. ‘ महाराज, तेनालीराम आपके मुंह पर मीठा बोलता है और पीठ पीछे आपकी बुराई करता है|’ राजा को विश्वास नहीं हुआ पर उन्होंने तेनालीराम से पूछ ही लिया| तेनालीराम समझ गए यह उस दरबारी और राजगुरु की चाल है| तेनालीराम ने राजा से कहा, ‘ महाराज, आपके शक् का जवाब मैं आज रात को दूंगा| आपको बस, मेरे साथ चलना होगा |

tenaliram-ki-tarkibरात को तेनाली राम राजा के साथ राजगुरु के घर के पिछवाड़े पहुंचे और खिड़की के पास खड़े हो गए| दरबारी राजगुरू से कह रहा था, ‘ हमारे महाराज कान के बड़े कच्चे हैं | तेनालीराम जो अब तक कहता रहा उसे वह सच मानते रहे, और आज हम दोनों की बातें सच मान ली |’ इसके बाद भी वह राजा के लिए उल्टा सीधा कहता रहा | राजगुरू बोले तो कुछ नहीं लेकिन उन्होंने उसे मना भी नहीं किया| बाहर खड़े राजा ने सब कुछ सुना| तेनालीराम बोलें, ‘ महाराज, आपकी मेरे प्रति जो शिकायत की वह दूर हुई नहीं|’

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राजा बोले, ‘ हां, तेनालीराम, पर राजगुरु के मन में हमारे लिए अब भी सम्मान है| लगता है राजगुरु तुमसे ईर्ष्या करने के कारण भटक गए हैं और गलत आदमी की बातों में पढ़ गए हैं| इसके जाल से राजगुरु को निकालने की जिम्मेदारी मैं तुम्हें दे रहा हूं|’

इस बार के कुछ दिन बाद तेनाली राम ने एक दावत रखी| उसमें राजा कृष्णदेवराय, राजगुरु और वह दरबारी थे| दरबारी को तेलानीराम ने अपने पास बिठा दिया| आपस में सब बात कर रहे थे| तेनाली राम ने अपना मुंह दरबारी के कान के पास ले जाकर कुछ कहा| तेलानीराम ने क्या कहा, यह उस दरबारी को कुछ समझ में नहीं आया| फिर तेलानीराम ने जोर से कहा, ‘मैंने तुमसे जो कहा है, किसी को बताना नहीं|’ यह देख राजगुरु के मन में सटका हुआ अवश्य तेलानीराम ने मेरी बात की है| राजगुरु ने मौका देखा और दरबारी से पूछा की तेनालीराम ने क्या कहा, तो उसने कहा, ‘कुछ नहीं| मेरे कान में वह कुछ बोला तो था, पर मैं समझा नहीं|’ राजगुरु ने सोचा, ‘यह मुझसे असली बात छुपा रहा है| ऐसी दोस्ती किस काम की? यह अवश्य ही तेनालीराम से मिला हुआ है| मैं समझता था कि यह मेरा सच्चा दोस्त है|’

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उसके बाद राजगुरू और दरबारी की दोस्ती हमेशा के लिए खत्म हो गई| यह जानकर राजा ने तेनालीराम से कहा, ‘ वाह, तेनाली राम सच में ऐसा काम किया है सांप भी मर गया और लाठी भी नहीं टूटी|

 

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