तेनालीराम की परीक्षा – Tenali raman stories in hindi
सम्राट कृष्णदेव राय का दरबार लगा था। महाराजा दरबारियों के साथ हल्की-फुल्की चर्चा में व्यस्त थे अचानक चतुर और चतुराई पर चर्चा चल पड़ी। महाराज के अधिकांश मंत्री और यहाँ तक कि राजगुरु भी तेनालीराम से जलते थे। अत: एक मंत्री बोला- ‘महाराज! आपके दरबार में चतुर लोगों कि कमी नहीं है, यदि मौका मिले तो यह बात सिध्द हो सकती है मगर।’
“मगर क्या मंत्री जी?” उत्सुकता से महाराज ने पूछा। मैं बताता हूँ महाराज! सेनापति अपने स्थान से उठकर बोले- “मंत्री जी कहना चाहते हैं कि तेनालीराम के सामने किसी को अपनी योग्यता सिध्द करने का अवसर नहीं मिलता। हर मामले में तेनालीराम अपनी टांग अड़ाते हैं और चतुराई का श्रेय स्वयं ले जाते हैं। अन्नदाता! जब तक दूसरे लोगों को अवसर नहीं मिलेगा, वे अपनी योग्यता भला कैसे सिध्द करेंगे?”
‘हूँ’ महाराजा गंभीर हो गए। समझ गए कि सभी दरबारी तेनालीराम के विरुद्ध हैं। कुछ क्षणों तक वे सोचते रहे। अचानक ही उनकी द्रष्टि एक कोने में ठाकुर जी की प्रतिमा के सामने जलती धूपबत्ती पर स्थिर हो गई और तुरंत ही उन्हें दरबारियों की परीक्षा लेने का उपाय सूझ गया। वे बोले “आप लोगों को अपनी योग्यता सिध्द करने का अवसर दिया जाएगा। तेनालीराम बीच में नहीं आएंगे।”
“ठीक है महाराज!” सभी दरबारी प्रसन्न हो उठे। कहिए हम क्या करें? “मुझे इस धूपबत्ती का दो हाथ धुआं चाहिए।” महाराजा कृष्णदेव ने कोने में जलती हुई धूपबत्ती की ओर संकेत करके कहा- “जो भी दरबारी यह कार्य करेगा। उसे तेनालीराम से भी चतुर समझा जाएगा।”
सम्राट का प्रश्न सुनकर सभी दरबारी सिटपिटा गए। यह कैसी मूर्खतापूर्ण परीक्षा है, भला धुआं भी कभी नापा जाता है। मगर कोई न कोई युक्ति तो लगानी थी। कई दरबारियों ने हाथ से धुआं नापने की कोशिश की। किन्तु, धुआं भला कैसे नापता? वह तो ऊपर उठता और बलखाए सांप की तरह इधर-उधर लहरा जाता। सुबह से शाम हो गई मगर कोई धुआं न नाप सका।
महाराज कृष्णदेव राय मंद-मंद मुस्करा रहे थे। जब सभी दरबारी थक हारकर बैठ गए तो एक दरवारी बोला- “महाराज धुएँ को नापना हमारी द्रष्टि में असंभव है हाँ, यदि तेनालीराम इस कार्य को कर देगा तो हम उसे अपने से चतुर मान लेंगे। मगर यदि वह भी नहीं नाप सका तो आप उसे हमारे समान ही समझें और अधिक मान सम्मान न दें।”
महाराज कृष्णदेव राय ने मुस्कराते हुए तेनालीराम की तरफ देखा – क्यों तेनालीराम! क्या तुम्हें दरबारियों की चुनौती स्वीकार है।”
“मैं भी कोशिश ही कर सकता हूँ अन्नदाता।” तनालीराम अपने स्थान से उठकर विनम्रता से सिर झुकाकर बोला, “मैंने सदा आपके आदेश का पालन किया, इस बार भी करूँगा।
तनालीराम ने एक सेवक को बुलाकर उसके कान में कुछ कहा। सेवक तत्काल वहाँ से चला गया। दरबार में सन्नाटा छाया रहा। सभी उत्सुक थे कि देखें तो तेनालीराम कैसे धुएं को नापकर राजा को दो हाथ धुआं सौंपता है। तभी सेवक शीशे की दो हाथ लम्बी एक नली लेकर दरबार में हाजिर हुआ। तनालीराम ने धूपबत्ती से उठते हुए धुएं पर उस नली का मुंह लगा दिया। धुआं नली में भरने लगा। कुछ ही देर में पूरी नली धुएं से भर गई। तेनालीराम ने कपड़ा ठूंस कर नली का मुंह बंद कर दिया। फिर उसे महाराज की ओर बढा कर बोला = “लीजिए महाराज! दो हाथ धुआं।”
महाराज ने मंद-मंद मुस्कराते हुए नली ले ली, फिर दरबारियों की ओर देखा, सभी के सिर झुके हुए थे। कुछ एक दरबारी जो तेनालीराम से ईर्ष्या नहीं करते थे, आंखों में प्रशंसा के भाव लिए तेनालीराम को देख रहे थे।
महाराज बोले – “अब तो आप लोग मान गए कि तेनालीराम बुध्दिमान है और उनका मुक़ाबला कोई नहीं कर सकता।” दरबारी भला क्या जवाब देते।