तेनाली की मुनादी (Tenaliram Ki hindi Kahani)
राजा कृष्णदेव राय में जनहित के विषय पर विषय पर गहन विचार- विमर्श कर रहे थे। राजपुरोहित ने सुझाव दिया- ‘अच्छा हो महाराज अगर जनहित के इन निर्णयों की जानकारी सीधी जनता तक पहुंचाई जाए।’ महाराज मतलब यह है कि राज-सभा में लिए गए निर्णयों की मुनादी कारवाई जाए। मगर यह कार्य करेगा कौन – राजा बोले।
‘तेनालीराम। वो सारी चर्चा को लिखेगा और उसका विस्तृत विवरण जनता में पहुँचाएगा।’ प्रधानमंत्री ने कहा। महाराजा ने तेनाली को जनता को राज-निर्णयों से अवगत करने की ज़िम्मेदारी सौंप दी। तेनाली समझ गया कि उसे राजपुरोहित व प्रधानमंत्री ने जान-बूझकर फंसाया है।
उसने अगले ही दिन राज-सभा की सारी कार्यवाही की मुनादी करवाने के लिए नियुक्त कर्मचारी ने कहा- महाराज कृष्णदेव के आदेश पर तेनालीराम ने आपको सूचित किया है – महाराज चाहते हैं कि प्रजा के साथ पूरा न्याय हो और अपराधी को सजा मिले। इस बारे में विचार-विमर्श हुआ। महाराजा नई व्यवस्था चाहते हैं। साथ ही पुरानी व्यवस्था कि अच्छी बातें भी लागू करना चाहते हैं। इस बात पर राजपुरोहित जी से जानना चाहा तो वे ऊंघ रहे थे। इस पर महाराज ने उन्हे खूब फटकार लगाई और नमक मिला हुआ गरम पानी पिलवाया। दरबार में सेनापति कि गैरहाजिरि में सीमाओं पर सुरक्षा कि चर्चा भी न हो सकी। इसी प्रकार प्रत्येक सप्ताह मुनादी होने लगी।
इसमें तेनाली के नाम का जिक्र तो अवश्य होता, जिससे जनता को लगता जनहित के निर्माण तेनाली की सलाह पर लिए जाते हैं जबकि राजपुरोहित, प्रधानमंत्री और सेनापति की खिंचाई होती है। जब यह सूचना तीनों तक पहुँची तो वे बड़े चिंतित हुए।
मौका देखकर राजपुरोहित ने महाराजा से कहा- महाराज यह सुरक्षा की द्रष्टि से उचित नहीं कि मुनादी करवाकर राजकार्यों से जनता को अवगत कराया जाए। अत: मुनादी कि कारवाई बंद कर दी जानी चाहिए। तभी तेनाली बोला- राजपुरोहित जी, जब चारो ओर आपकी पोल के ढोल बज गए तब आपको होश आया। राजा यह सुनकर ठाहका लगाकर हँस पड़े।