Shravan mein Kanvad kyon chadhai jati hai?
इसका वैज्ञानिक महत्व स्वास्थ्य संबंधी बहुत है। शायद धर्म के प्रकाण्ड विद्वानों ने भी इसी महत्व को घ्यान में रखकर इसको धर्म का जामा पहना दिया है, ताकि इसी बहाने भक्तगण श्रदापूर्वक बाबा भोलेनाथ की काँवड़ चढ़ाने के लिये पद यात्रा करें। वर्ष में ग्यारह महीने हम दैनन्दिन कार्यों एवं माया में ही उलझे रहते हैं।
श्रावण मास में जब वर्षा ऋतु आरम्भ होती है तो प्रकृति में रिमझिम बरसात के साथ सर्वत्र हरियाली छा जाती है। ऐसे सुहाने मौसम में नंगे पैरों काँवड़ उठाये चतुर्दिक छाई हरियाली को निहारते हुये चिन्तामुक्त होकर अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते हैं। इस दौरान उन्हें नंगे पाँवों में काँटों का चुभना, धूप, बरसात, गर्मी आदि को भी सहन करना पड़ता है। इस हरियाली से आँखों की रोशनी बढ़ती है, जमीन पर पड़ी ओस की बूँदें पाँवों को ठंडक प्रदान करती हैं। सूर्य की किरणें नंगे बदरन के माध्यम से शरीर में प्रवेश कर शरीर को निरोग बनाती हैं। पाँव के छाले और काँटों की चुभन दर्द कष्ट सहने की क्षमता बढ़ाते हैं।
आज के विलासी जीवन जीने वाले मानव को आत्म निरीक्षण करने का मौका मिलता है। उसको अपनी सहन शक्ति एवं शरीर की प्रतिरोधक शक्ति का पता चलता है। उसका लक्ष्य भगवान पर जल चढ़ाना होता है, उसमें इच्छा शक्ति दृढ़ होती है। इसी प्रकार मनुष्य को अपने लक्ष्य का निर्धारण कर उसे दृढ़ इच्छा शक्ति के साथ पूरा करना चाहिये। लक्ष्यहीन पुरूष दिशाहीन हो जाता है।