Kabir ke dohe in Hindi (sant Kabir dohe in hindi)
तिमिर गया रवि देखते, कुमति गयी गुरू ज्ञान।
सुमति गयी अति लोभते, भक्ति गयी अभिमान।।
Timir gaya ravi, Kumati gayi guru gyan
Sumati gayi ati lobhte, Bhakti gayi abhiman
अर्थात (Meaning in Hindi): जिस प्रकार सूर्य के उदय होते ही अंधकार नष्ट हो जाता है उसी प्रकार सदगुरू के ज्ञान रूपी उपदेश से कुबुद्धि नष्ट हो जाती है। अधिक लोभ करने से बुद्धि नष्ट हो जाती है। और अभिमान करने से भक्ति का नाश हो जाता है अतः लोभ आदि से बचकर रहना ही श्रेयस्कर है।
भक्तन की यह रीति है, बंधे करे जो भाव।
परमारथ के कारने, यह तन रहो कि जाव।।
Bhaktan ki yah riti hai, Bandhe kare jo bhaw
Parmarath ke karne, Yah tan raho ki jaav
अर्थात (Meaning in Hindi): भक्तों की यह रीति है वे अपने मन एवं इन्द्रिय को पूर्णतया अपने वश में करके सच्चे मन से गुरू की सेवा करते हैं। लोगों के उपकार हेतु ऐसे सज्जन प्राणी अपने शरीर की परवाह नहीं करते। शरीर रहे अथवा मिट जाये परन्तु अपने सज्जनता रूपी कर्तव्य से विमुख नहीं होते।
कबीर माया मोहिनी, भई अंधियारी लोय।
जो सोये से मुसि गये, रहे वस्तु को रोय।।
Kabir maya mohini, Bhayi andhiyari loye
Jo soye se musi gaye, Rahe wastu ko roye
अर्थात (Meaning in Hindi): कबीर साहेब कहते हैं कि माया मोहिनी उस काली अंधियारी रात्रि के समान है जो सबके ऊपर फैली है। जो वैभव रूपी आनन्द में मस्त हो कर सो गये अर्थात् माया रूपी आवरण ने जिसे अपने वश में कर लिया उसे काम, क्रोध और मोहरूपी डाकुओं ने लूट लिया और वे ज्ञान रूपी अमृत तत्व से वंचित रह गये।
माया दीपक नर पतंग, भ्रमि भ्रमि माहि परन्त।
कोई एक गुरू ज्ञानते, उबरे साधु सन्त।।
Maya deepak nar patang, Bhrami bhrami mahi parant
Koyi ek guru gyante, Ubre sadhu sant
अर्थात (Meaning in Hindi): माया, दीपक की लौ के समान है और मनुष्य उन पतंगों के समान है जो माया के वषीभूत होकर उन पर मंडराते हैं। इस प्रकार के भ्रम से, अज्ञान रूपी अंधकार से कोई विरला ही उबरता है जिसे गुरू का ज्ञान प्राप्त होने से उध्दार हो जाता है।
दीपक सुन्दर देखि करि, जरि जरि मरे पतंग।
बढ़ी लहर जो विषय की, जरत न मारै अंग।।
Deepak sundar dekhi kari, Jari jari mare patang
Badhi lahar jo vishaye ki, Jarat na marae ang
अर्थात (Meaning in Hindi): प्रज्जवलित दीपक की सुन्दर लौ को देख कर कीट पतंग मोह पाश में बंधकर उसके ऊपर मंडराते हैं और जल जलकर मरते हैं। ठीक इस प्रकार विषय वासना के मोह में बंधकर कामी पुरूष अपने जीवन के वास्तविक लक्ष्य से भटक कर दारूण दुख भोगते हैं।
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