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Rahim ke dohe रहीम के 25 प्रसिद्ध दोहे अर्थ व्याख्या सहित

Rahim ke dohe in hindi with meaning in hindi

भक्ति काल के प्रमुख कवि रहीम दास द्वारा लिखित दोहों में ज्ञान का सागर भरा हुआ है। नीतिपरक काव्य के रचनाकारों में रहीम दास का नाम स्वर्ण अक्षरों में लिया जाता है। दोहा छंद का प्रयोग कर रहीम दास ने अत्यंत प्रभावशाली विचारों को व्यक्त किया है। हमने यहाँ पर आपके लिए सुप्रसिद्ध रहीम के दोहे (Rahim ke dohe) संकलित किए हैं।

दोहा मात्रिक अर्ध सम छंद होता है जिसके चार चार चरण होते हैं इसके विषम चरणों के प्रारंभ में 13 13 और सम चरणों के प्रारंभ में 11-11 मात्राएं होती हैं। जिस प्रकार बिहारीलाल के दोहों के संदर्भ में गागर में सागर भरने की युक्ति प्रचलित है उसी प्रकार रहीम दास के दोहे (Rahim ke dohe) के संबंध में कहा जाता है कि यद्यपि यह देखने में छोटे हैं परंतु इसके अर्थ अत्यंतत भाव प्रवण और गंभीर होते हैं। 

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Rahim ke dohe

रहीम के दोहे

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  1. बिगरी बात बने नहीं लाख करो किन कोय
    रहिमन फाटे दूध को मथे माखन होय।।

संदर्भ  – प्रस्तुत दोहे की पंक्तियां भक्ति काल के प्रमुख कवि  रहीम दास द्वारा  लिखित है।

अर्थ रहीम दास के इस दोहे  में सद्व्यवहार की अभिव्यक्ति की ओर संकेत किया गया है। रहीम दास का मानना है कि हमें अपने व्यवहार और आचार विचार को सोच समझकर नापतोल कर अभिव्यक्त करना चाहिए क्योंकि एक बार दूसरों के समक्ष जो प्रकट हो गया तो पुनः उसका संशोधन करना अत्यंत कठिन है ।अपनी बात को प्रभावशाली बनाने के लिए रहीम दास ने एक उदाहरण दिया है ,जिस प्रकार दूध के फट जाने पर  उससे मक्खन बनाना असंभव है जबकि मक्खन बनाने के लिए दूध को मथा जाता है तभी मक्खन तैयार होता है।इसी प्रकार हमें अपने व्यवहार को भी मन में अपने बुद्धि और विवेक के द्वारा पूरी तरह मथ कर, सोच विचार कर दूसरों के समक्ष प्रकट करना चाहिए।

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रहीम के दोहे की विशेष बात :-

  • मक्खन और सद्व्यहार दोनों ही मथने के बाद ही प्राप्त होते हैं
  • दूध को मथनी से मथ कर मक्खन मिलता है और व्यवहार बुद्धि और विवेक रुपी मथनी से मथ कर प्रकट होता है।
  • जिस प्रकार फटे हुए दूध से मक्खन नहीं बन सकता उसी प्रकार हमारा एक गलत व्यवहार हमारे व्यक्तित्व पर बुरा प्रभाव डालता है।
  1. रहिमन धागा प्रेम का मत तोड़ो चटकाय
    टूटे से फिर ना जुड़े जुड़े गांठ पड़ जाए ।।

Rahim ke dohe ka Arth रहीम दास जी कहते हैं कि प्रेम रूपी धागे से दो व्यक्तियों के मन एक दूसरे से जुड़े होते हैं ।इनका कहना है कि विषम परिस्थितियों में भी इस प्रेम रूपी धागे को तोड़ना नहीं चाहिए अर्थात यदि कोई बात हमें बुरी लगे  तो उसके प्रति असंदेह का भाव नहीं रखना चाहिए क्योंकि यदि  ऐसा हुआ तो धीरे-धीरे यह संदेह का भाव बढ़ता जाएगा और प्रेम का धागा क्षीण पड़ता जाएगा जिस प्रकार धागे के टूट जाने पर उसे जोड़ने के लिए गांठ लगानी पड़ती है उसी प्रकार यदि प्रेम पर संदेह का भाव आ गया तो प्रेम रूपी भाव कम होने लगता है इसलिए  प्रेम रूपी धागे के ऊपर संदेह का भाव नहीं आने देना चाहिए क्योंकि जिस प्रकार धागे को जोड़ने के लिए  गांठ लगानी पड़ती है उसी प्रकार प्रेम के ऊपर संदेह का भाव आ जाने से उसके दरार पड़ जाती है।

रहीम के दोहे की विशेष बात :-

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  • प्रेम का कोई प्रतिकार नहीं होता
  • जिस प्रकार धागे को जोड़ने के लिए गांठ लगानी पड़ती है उसी प्रकार प्रेम को पुनः जोड़ने के लिए उस पर अविश्वास और असंदेह की गांठ पड़ जाती है।
  1. देखि बड़ेन को लघु दीजिए डारि
    जहां काम आवे सुई कहा करे तलवारि।।

अर्थ प्रस्तुत पद में रहीम दास ने प्रत्येक वस्तुओं को समान महत्व का बताया है। कोई भी वस्तु चाहे बड़ी हो या छोटी सभी किसी न किसी रूप में महत्वपूर्ण होती है ।अतः किसी बड़ी उपयोगी वस्तु को पाकर छोटी और उससे कम महत्व की वस्तुओं का त्याग नहीं करना चाहिए ।अपनी बात को स्पष्ट करने के लिए उन्होंने सुई और तलवार का उदाहरण दिया है।यद्यपि युद्ध को जीतने के लिए तलवार की आवश्यकता पड़ती है लेकिन जो काम सुई कर सकती है वह तलवार से संभव नहीं। सभी वस्तुओं का समान महत्व है चाहे वह सुई हो या तलवार । तलवार से युद्ध जीता जा सकता है परंतु कपड़ों को सिलने का काम सुई ही कर सकती है।

रहीम के दोहे की विशेष बात :-

  • जीवन में छोटी से लेकर बड़ी वस्तु सभी समान रूप से उपयोगी है।
  • यद्यपि तलवार सुई से बड़ी होती है लेकिन वह सिलाई का काम नहीं कर सकती ।

  1. जो रहीम उत्तम प्रकृति का करि सकत कुसंग।
    चंदन विष व्यापत नहीं लिपटे रहत भुजंग।।

Rahim ke Dohe ka अर्थ प्रस्तुत पंक्तियों में रहीम दास ने सज्जन पुरुषों की महानता और सदशयता का वर्णन किया है । यदि मनुष्य मूल रूप से अच्छे स्वभाव वाला है तो उसके ऊपर बुरी संगति का प्रभाव नहीं पड़ता।अच्छे प्रकृति वाले मनुष्य की तुलना चंदन के वृक्ष से की गई है। जिस प्रकार सुगंधित  चंदन के वृक्ष पर काले  जहरिले सांप लिपटे रहते हैं  लेकिन इसके बावजूद भी चंदन अपना सुगंध बिखेरता रहता है जहरीले सर्प के

विष का प्रभाव उस पर नहीं पड़ता , उसी प्रकार सज्जन प्रवृत्ति वाले मनुष्य को दुर्जन मनुष्य  की संगति का असर नहीं पड़ता।

रहीम के दोहे की विशेष बात :-

  • मनुष्य का आंतरिक और मूल गुण अपरिवर्तित रहता है।
  • उत्तम चरित्र वाले व्यक्ति पर कुसंगति का असर नहीं पड़ता।
  • जहरीले सांप के विष का प्रभाव चंदन की खुशबू पर नहीं पड़ती।
  1. रूठे सुजन मनाइए, जो रूठे सौ बार
    रहिमन फिरि फिरि पोइए, टूटे मुक्ता हार ।।

अर्थ – प्रस्तुत दोहों में  रहीम दास ने घनिष्ठ  आत्मीय और स्नेही स्वजनों के महत्व पर प्रकाश डाला है ।रहीम दास ने स्नेही स्वजनों की तुलना अनमोल मोतियों से की है ,जिस प्रकार अनमोल और मूल्यवान मोतियों की माला टूट जाती है तो उन मोतियों को दोबारा धागे में पिरो कर माला बना लेते हैं उसी प्रकार स्नेही जनों के रुठ जाने पर उन्हें हमें दोबारा मना लेना चाहिए क्योंकि ये रिश्ते अनमोल होते हैं और उनके रुठ जाने से हमारा व्यक्तित्व अधूरा रह जाता है । टूटी हुई मोतियों की माला पुनः जोड़कर जैसे  हम अपने गले  की सुंदरता को बढ़ाते हैं उसी प्रकार  रूठे स्वजऩो को मना कर अपने रिश्तो की प्रगाढ़ता बनाकर रखनी चाहिए।

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रहीम के दोहे की विशेष बात :-

  • स्नेही आत्मीय रिश्ते अनमोल होते हैं।
  • किसी भी परिस्थिति में हमें अपने आत्मिय रिश्तो से संबंध नहीं तोड़ना चाहिए।
  1. जो बड़ेन को लघु कहें, नहीं रहीम घटी जाहिं
    गिरधर मुरलीधर कहें, कछु दुःख मानत नाहिं ।।

अर्थ – प्रस्तुत नीतिपरक दोहे में रहीम दास ने यह कहा है कि व्यक्ति या वस्तु का महत्व उसके गुण से होता है, नाम से नहीं। जो महान है, महत्वपूर्ण है ,उपयोगी है यदि उसे कमतर शब्दों से संबोधित किया गया तो उसकी उपयोगिता या महानता कम नहीं हो जाती।जो  उसका गुण है वह यूं ही रहेगा । श्री कृष्ण को गिरधर भी कहते हैं और मुरलीधर भी। मुरली के समक्ष पर्वत की क्या तुलना लेकिन मुरलीधर कहने से श्री कृष्ण के गिरधर का स्वरूप कम नहीं हो जाता। इसलिए यदि बड़ो को छोटे शब्दों से अभिहित किया गया जाता है तो उसके बड़प्पन या महानता के ऊपर कोई प्रभाव नहीं पड़ता । किसी भी वस्तु या व्यक्ति को किसी भी नाम से बुलाओ उसके आंतरिक गुण अपरिवर्तित रहते हैं ।

रहीम के दोहे की विशेष बात :-

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  • व्यक्ति या वस्तु का बड़प्पन और महानता कमतर शब्दों के कारण कम नहीं होता
  • व्यक्ति का महत्व उसके गुणों से होता है नाम से नहीं
  1. जैसी परे सो सहि रहे, कहि रहीम यह देह
    धरती ही पर परत है, सीत घाम मेह ।।

अर्थ – प्रस्तुत दोहे में रहीम दास ने मनुष्य के धैर्य और सहनशीलता पर प्रकाश डाला है । ऐसा माना जाता है कि पृथ्वी जैसी सहनशीलता किसी अन्य में नहीं इसलिए रहीम दास ने पृथ्वी का उदाहरण देते हुए कहा है कि जिस प्रकार पृथ्वी गर्मी शीत वर्षा का प्रहार रहती है और अपनी सारी ऊर्जा और उर्वरता  को बनाए रहती है उसी प्रकार मनुष्य को  भी सम या विषम सभी परिस्थितियों में समान धैर्य का पालन करना चाहिएं । यदि हम सुख को सहर्ष स्वीकार करते हैं तो दुख में भी अपना धैर्य खोये बिना उससे मुकाबला करना चाहिए ।

रहीम के दोहे की विशेष बात :-

  • पृथ्वी की सहनशीलता से मनुष्य की धैर्य की तुलना की गई है
  • सुख दुख दोनों में समान भाव बनाए रखना चाहिए

    Rahim ke dohe with meaning in hindi

  1. रहिमन अंसुवा नयन ढरि, जिय दुःख प्रगट करेइ
    जाहि निकारौ गेह ते, कस भेद कहि देइ ।।

Rahim ke Dohe ka Arth अर्थ  रहीम दास नीतिपरक दोहों के लिए विख्यात है । मर्म पर प्रहार करने वाली  ये नीतिपरक दोहों आम जीवन से जुड़े हुए हैं। प्रस्तुत दोहे में रहीम दास बताना चाह रहे हैं कि यदि किसी व्यक्ति को पीड़ा या चोट पहुंचती है तो उसका दर्द आंसू के माध्यम से प्रकट हो जाता है ।आंशु उस व्यक्ति की पीड़ा को बता देते है उसी प्रकार यदि हम किसी व्यक्ति को चोट पहुंचाते हैं तो उसका परिणाम नकारात्मक ही होता है। जिस प्रकार आंसू व्यक्ति के दुख को प्रकट कर देता है। उसी प्रकार घर से निकाला गया व्यक्ति अपने दर्द और चोट को किसी दूसरे व्यक्ति के समक्ष कहकर प्रकट करता है

दुख और दर्द को छुपाया नहीं आ सकता वह किसी न किसी रूप में सबके समक्ष प्रकट हो जाता है

रहीम के दोहे की विशेष बात :-

  • मन के दर्द को आंसू प्रकट कर देते हैं उसी प्रकार व्यक्ति विशेष व्यक्ति घर की गोपनीयता को सार्वजनिक कर देते हैं।
  1. रहिमन निज मन की व्यथा मन ही राखो गोय
    सुनी इठलेहैं लोग सब बांट  ना लेहै कोई।।

अर्थ – प्रस्तुत दोहे में रहीम दास कहते हैं कि मनुष्य को अपने मन के दर्द को दूसरों के समक्ष प्रकट नहीं करना चाहिए। रहीम दास का यह मानना है कि  अपनी पीड़ा को सार्वजनिक करने से कोई लाभ नहीं क्योंकि हमारे मन की पीड़ा या दुख को दूर करने के बजाय लोग उसे सुनकर हंसी उड़ाते हैं , क्योंकि जिसे दर्द का एहसास नहीं होता और दूसरे के दर्द को अनुभूत नहीं कर सकता इसलिए जहां तक हो सके अपने दुख को अपने तक ही सीमित रखना चाहिए ।

रहीम के दोहे की विशेष बात :-

  • जहां तक हो सके अपने दर्द को दूसरों के समक्ष प्रकट नहीं करना चाहिए ।

जाके पांव न फटी बिवाई

सो का जाने पीर पराई

  • जिसे दर्द की अनुभूति नहीं है वह दूसरों के दर्द को नहीं समझ सकते।
  • स्वयं को हंसी का पात्र बनने से बचाने के लिए अपना दर्द अपने तक ही सीमित रखना चाहिए ।
  1. पावस देखि रहीम मन, कोइल साधे मौन
    अब दादुर वक्ता भए, हमको पूछे कौन ।।

अर्थ – प्रस्तुत दोहे में रहीम दास ने अवसर के महत्व को दर्शाया है।  समय बहुत बलवान है और समय एक समान नहीं रहता। जीवन में कुछ ऐसे अवसर आते हैं जब गुणवान व्यक्ति को मौन रहना पड़ता है और बेकार और गुणहीन व्यक्ति का डंका बजता है। यह सब समय का प्रभाव है। रहीम दास कहते हैं कि जैसे बसंत ऋतु में कोयल रानी होती है उसी प्रकार पावस ऋतु  में मेंढक का बोलबाला होता है, इसलिए अवसर को देखते हुए काम करना चाहिए।

रहीम के दोहे की विशेष बात :-

  • जीवन में अवसर और समय का बहुत महत्व होता है
  • व्यक्ति के गुणों का महत्व अवसर पर निर्भर करता है।
  1. रहिमन विपदा हू भली, जो थोरे दिन होय
    हित अनहित या जगत में, जान परत सब कोय।।

अर्थ – रहीम दास का कहना है कि विपत्ति में सच्चे हितैषी की पहचान होती है। यद्यपि दुख के दिन ज्यादा दिन  रहे तो वह हानिकारक होता है लेकिन बस एक दृष्टिकोण से अच्छा होता है कि इस इस समय अपने और पराए की पहचान हो जाती है। सच्चा मित्र वही है जो सुख में ही नहीं बल्कि दुख में भी हमारा साथ दें। दुख या पीड़ा के क्षण मित्रता की कसौटी है , जो स्वजन दुख में भी हमारे साथ रहते हैं वही हमारे सच्चे हितैषी हैं इसलिए हमारे जीवन में दुख का आना भी अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे हमारे हित चाहने वाला और  अहित चाहने वालों की पहचान हो जाती है।

रहीम के दोहे की विशेष बात :-

  • दुख मित्रता की पहचान की कसौटी है।
  • सच्चा मित्र वही है जो दुख में साथ खड़ा रहे।।
  1. समय पाय फल होत है, समय पाय झरी जात।
    सदा रहे नहिं एक सी, का रहीम पछितात ।।

अर्थ – इस दोहे में रहीम दास जीवन की गतिशीलता और परिवर्तन शीलता के महत्व को प्रकट करते है । नियत समय पर पेड़ पर लगते हैं और मौसम समाप्त होने पर उस पेड़ से फल झड़ने लगते हैं , उसी प्रकार मनुष्य के जीवन से सुख दुख जुड़े हुए हैं ।जीवन में दुख आया है तो एक निश्चित अवधि के बाद वह बीत जाता है और सुख के क्षण भी जल्द ही आते हैं , इसलिए दुख के आने पर हमें अपना धैर्य नहीं खोना चाहिए।

रहीम के दोहे की विशेष बात :-

  • सुख और दुख एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।
  • धीरे धीरे रे मना धीरे सब कुछ होय
  • माली सींचे सौ घड़ा ऋतु आए फल होय ।
  • इसलिए दुख आने पर अधीर हुए बिना हमें उसका सामना करना चाहिए।

Rahim ke dohe arth sahit

  1. छिमा बड़न को चाहिये, छोटन को उतपात ।
    कह रहीम हरि का घट्यौ, जो भृगु मारी लात।।

Rahim ke Dohe ka Arth प्रस्तुत दोहे के साथ एक पौराणिक कथा जुड़ी है, जो इस दोहे का सार है ।यदि कोई वस्तु या व्यक्ति मूल्यवान या गुणगान है तो  किसी छोटी वस्तु या व्यक्ति के कारण उसके बड़प्पन में कोई कमी नहीं आती । जो बड़े होते हैं जिनके स्वभाव में बड़प्पन होता है वह दूसरों को सहजता से क्षमा कर देते हैं जबकि नीच प्रवृत्ति के लोग हमेशा झगड़ा करने में लगे रहते हैं, जिस प्रकार भृगु ऋषि ने साक्षात् विष्णु की परीक्षा लेने के लिए उन्हें लात मारी तो भी उन्हें कोई प्रभाव नहीं पड़ा ।उल्टे वे ऋषि से  ही उनकी कुशलता के बारे में पूछने लगे। त्रिदेव  में से एक परम विष्णु के बड़प्पन की क्या तुलना लेकिन ऋषि द्वारा लात मारे जाने के बाद भी उन्होने ऋषि को भला बुरा  न कहके उसकी कुशलता के बारे में ही पूछकर अपने बड़प्पन की पहचान कराई ।

रहीम के दोहे की विशेष बात :-

  • इस दोहे में क्षमा करने वाले व्यक्ति को बड़ा बताया गया है।
  • वही व्यक्ति सत्वगुण से समादृत होता है जो अपमानित होने के बाद भी क्रोध नहीं करता है।
  1. तरुवर फल नहिं खात है, सरवर पियहि पान
    कहि रहीम पर काज हित, संपति सँचहि सुजान ।।

अर्थ – प्रस्तुत दोहे में रहीम दास ने सज्जन पुरुषों की पहचान बताई है। जो मनुष्य सज्जन होते हैं वे अपना तन मन और धन दूसरों के लिए समर्पित कर देते हैं। संपत्ति का संचय भी  वो करते हैं तो  तो उससे वे स्वयं लाभ नहीं उठाते बल्कि उनका धन दूसरों के काम आता है। रहीम दास ने सज्जन पुरुषों की तुलना फलदार वृक्ष  और पानी से भरे सरोवर से की है ।जिस प्रकार वृक्ष अपना फल स्वयं नहीं खाते नदी अपना पानी स्वयं नहीं पीती उसी प्रकार सज्जन व्यक्ति का गुण और धन भी अपने लिए नहीं बल्कि दूसरों के लिए होता है।

रहीम के दोहे की विशेष बात :-

  • अनंत्र भी कहा गया है,

” वृक्ष कबहु न फल भखै नदी न संचय नीर

परमारथ के कार्य हित साधु धरा शरीर”

  • दूसरों के लिए ही सज्जन पुरुषों का जन्म होता है
  • सज्जन व्यक्ति की तुलना फलदार वृक्ष और लबालब पानी से भरे सर ओर से की गई है
  • वृक्षा और नदी अपने गुणों का लाभ स्वयं नहीं उठाते ,उसी प्रकार सज्जन व्यक्ति के धन और गुण दूसरों के ही काम आते हैं।
  1. खैर, खून, खाँसी, खुसी, बैर, प्रीति, मदपान
    रहिमन दाबे दबै, जानत सकल जहान ।।

अर्थ – प्रस्तुत दोहे के माध्यम से रहीम दास यह बताना चाहते हैं कि जीवन में कुछ बातें ऐसी होती हैं जिसे छुपाया या दबाया नहीं जा सकता ।जो बातें हम छुपा नहीं सकते उसे जानबूझकर छुपाना नहीं चाहिए। इससे बात और बिगड़ जाती है ।कुछ चीजें जैसे स्वास्थ्य का अच्छा होना या खराब होना ,बहते हुए खून, खांसी प्रसन्नता किसी के प्रति दुश्मनी किसी के प्रति प्रेम और शराबी व्यक्ति यदि अपनी पहचान छुपाना चाहे तो वह असफल सिद्ध होता है। अतः जो चीजें छुपाने से छुप नहीं सकती उसे छुपाने का प्रयास करना मूर्खता है।

रहीम के दोहे की विशेष बात :-

  • किसी के स्वभाविक पहचान को छुपाना असंभव है
  • किसी की पहचान को छुपाना उसकी गलतियों को दबाना है इससे नुकसान हो सकता है
  1. जो रहीम ओछो बढ़ै, तौ अति ही इतराय
    प्यादे सों फरजी भयो, टेढ़ो टेढ़ो जाय ।।

अर्थ – रहीम दास का कहना है कि जो व्यक्ति शुरू से ही ओहदे दार या धनवान होते हैं वह स्थिर रहते हैं लेकिन जो तुच्छ पद से बड़े ओहदे पर चले जाते हैं वह इतराने लगते हैं उनके नखरे बढ़ जाते हैं। जिस प्रकार  शंतरज के खेल में सिपाही वजीर बन जाता है तो खुशी के मारे उसकी चाल और टेढ़ी हो जाती है और वही जो राजा रहता है वह स्थिर रहता है।

रहीम के दोहे की विशेष बात :-

  • महान लोग स्थितप्रज्ञ होते हैं ।
  • कुछ लोग अचानक मिली खुशी से सामंजस्य नहीं बिठा पाते और यह उनके स्वभाव से प्रकट होने लगता है।

 

  1. आब गई आदर गया, नैनन गया सनेहि
    ये तीनों तब ही गये, जबहि कहा कछु देहि।।

अर्थ – रहीम दास जी ने इस दोहे के माध्यम से मांगने वाले व्यक्तियों को सावधान किया है। रहीम दास का कहना है कि यदि हम किसी से कुछ मांगने जाते हैं तो उसकी आंखों से सम्मान और प्रेम हमारे लिए समाप्त हो जाता है ,इसलिए कभी भी कुछ मांगना नहीं चाहिए क्योंकि मांगने से उसकी आंखों में हमारे लिए  आबरू सम्मान और प्रेम समाप्त हो जाता है।

रहीम के दोहे की विशेष बात :-

  • अन्यत्र भी इन्होने कहा है
  • रहिमन वे नर मर चुके जो कछु मांगन जाहि
  • उनते पहले वे मुए जिन मुख निकसत नाहि।
  • किसी से कुछ मांगने पर हम अपना शर्म सम्मान और प्रेम तीनों खो देते है ।

Prasiddh Rahim ke dohe in hindi

  1. खीरा सिर ते काटिये, मलियत नमक लगाय
    रहिमन करुये मुखन को, चहियत इहै सजाय।।

अर्थ – रहीम दास ने इस  दोहे में आम दिनचर्या में प्रयुक्त होने वाली वस्तुओं से उदाहरण लेकर अत्यंत गूढ़ बातों का बताया है यह आम बात है कि खीरा के कड़वे पन को निकालने के लिए खीरा के ऊपरी हिस्से को काटकर नमक लगाकर रगड़ते हैं तब उसका कड़वापन समाप्त हो जाता है, उसी प्रकार यदि कोई व्यक्ति की वाणी कड़वी है वह कटु शब्द बोलता है तो उसके साथ भी ऐसा व्यवहार करना चाहिए अर्थात उसके अंदर की सारी कड़वाहट को काट कर फेंक देना चाहिए ।

रहीम के दोहे की विशेष बात :-

  • जब हम किसी व्यक्ति के समक्ष हाथ फैलाते हैं तो स्वयं के आत्मसम्मान को मार देते हैं
  • मांगने से हमारी आंखों से शर्म सम्मान और स्नेह तीनों समाप्त हो जाते हैं
  1. चाह गई चिंता मिटी, मनुआ बेपरवाह
    जिनको कछु नहि चाहिये, वे साहन के साह।।

अर्थ – प्रस्तुति  दोऐ में रहीम जी ने मनुष्य की उस प्रवृत्ति की ओर ध्यान दिलाया है जो सारे दुखों का मूल है। मनुष्य के जीवन में किसी वस्तु की इच्छा ना हो किसी की अपेक्षा ना हो तो बेफिक्रर रहता है  यदि उसे चाह नहीं होगी तो वह उसके पूर्णता या अपूर्णता के लिए चिंतित नहीं होगा और चिंता नहीं होगी तो वह प्रसन्न रहेगा खुश रहेगा। इस संसार  वही सबसे बड़ा शहंशाह कहलाता है जो अपने मन का राजा है, जो स्वयं संतुष्ट है चाह और संतुष्टि का घनिष्ठ संबंध है ।चाह नहीं होगी तो व्यक्ति संतुष्ट रहेगा और संतुष्टि ही सबसे बड़ा धन है।

  1. जो रहीम गति दीप की, कुल कपूत गति सोय
    बारे उजियारो लगे, बढ़े अँधेरो होय ।।

अर्थ – प्रस्तुत दोहे में रहीम दास ने कपूर और दीपक की सामर्थ अधिक लाते हुए पुत्र के चरित्र पर प्रकाश डाला है रहीम दास का कहना है कि कबूत  और दीपक में एक समान गुण होता है । दीपक जलता है तो चारों ओर प्रकाश फैल जाता है उसी प्रकार जब  लड़का  पैदा होता है तो परिवार में प्रसन्नता का प्रकाश फैल जाता है। लेकिन जैसे-जैसे दीपक की बत्ती समाप्त होने लगती है अंधेरा अपना पैर पसारना शुरू कर देता है उसी प्रकार  कुपुत्र के बड़ा होने पर उसके दुर्गुणों से परिवार के माथे पर कलंक लजाता है और परिवार में बदनामी फैलने लगती है

रहीम के दोहे की विशेष बात :-

  • यहां कपूत और दीपक में समान गुण के कारण उपमा अलंकार है ।
  • दीपक बढ़ना एक मुहावरा है जिसका अर्थ दीपक के बुझने से है।
  • कपूत के दुर्गुणों से खानदान में प्रसन्नता रूपी अंधकार छा जाता है।
  1. बड़े काम ओछो करै, तो बड़ाई होय
    ज्यों रहीम हनुमंत को, गिरिधर कहे कोय ।।

अर्थ – प्रस्तुत दोहे में रहीम दास ने बड़े काम का नहीं बल्कि काम करने के पीछे छुपे उद्देश्य की महत्ता पर प्रकाश डाला है।हम कोई भी काम करें चाहे वह बड़ा हो या छोटा लेकिन उसे करने का उद्देश्य स्वहित के लिए ना होकर परहित के लिए हो तभी वह काम बड़ा माना जाता है। अपने स्वार्थ के लिए किया गया कोई भी काम चाहे कितना भी बड़ा हो ओछा माना जाता है ।अपनी बात को सिद्ध करने के लिए उन्होंने  एक पौराणिक कथा का उल्लेख किया है । कृष्ण जी ने भी पर्वत उठाया था  और हनुमान जी ने भी। दोनों का काम समान था लेकिन एक का उद्देश्य परहित के लिए था और दूसरे का स्वहित के लिए इस लिए कृष्ण जी को गिरधर कहा जाता है हनुमान जी को नहीं। हनुमान जी के पर्वत उठाने से पर्वत को नुकसान पहुंचा था जबकि कृष्ण जी के पर्वत उठाने से लोगों का कल्याण हुआ था।

रहीम के दोहे की विशेष बात :-

  • काम की महत्ता काम के बड़े या छोटे होने से नहीं बल्कि काम के पीछे छिपे उद्देश्य पर निर्भर करता है।
  • इस दोहे में उत्प्रेक्षा अलंकार है।

Rahim ke dohe vyakhya sahit

  1. माली आवत देख के, कलियन करे पुकारि
    फूले फूले चुनि लिये, कालि हमारी बारि ।।

Rahim ke Dohe ka Arth प्रस्तुत दोहे में रहीम दास ने  यह कहना चाहा है कि हम सब काल के हाथों की कठपुतली हैं ।माली जब बाग में आता है तो उन्हीं फूलों को तोड़ता है जो पूर्ण रूप से खिले होते हैं। माली को आता देखकर  कलिय कहती हैं  कि जैसे आज इन फूलों का समय आ गया है वैसे ही एक दिन हमारी भी बारी आएगी ।काल के हाथों हम सभी मजबूर है। एक नियत समय पर सभी काल के हाथों मारे जाते हैं।

रहीम के दोहे की विशेष बात :-

  • कबीर दास ने भी इस जीवन को क्षणभंगुर माना है’ पानी के रे बुलबुला क्यों मानस की जात’
  • माली यहां काल का प्रतीक है फूल परिपक्व व्यक्ति का और कलियां अपरिपक्व मनुष्य के लिए प्रयुक्त हुई है।
  • यहां अन्योक्ति अलंकार का प्रयोग हुआ है
  1. एक साधै सब सधै, सब साधे सब जाय
    रहिमन मूलहि सींचबो, फूलहि फलहि अघाय।।

अर्थ – प्रस्तुत दोहे में रहीम दास ने यह कहा है कि मनुष्य को अपने जीवन में एक ही मूल उद्देश्य लेकर चलना चाहिए और उसे ही पूरा करने का प्रयास करना चाहिए, जिस प्रकार पेड़ से फल प्राप्त करने के लिए उसके समस्त अवयवों को सींचने की आवश्यकता नहीं पड़ती  उसी प्रकार एक लक्ष्य केंद्रित कर ही हमें आगे बढ़ते रहना चाहिए। ईश्वर भी एक है  और  हमें उसी एक ईश्वर की उपासना करनी चाहिए  । एक ईश्वर की उपासना करने से समस्या का समाधान मिल जाता है

रहीम के दोहे की विशेष बात :-

  • जो मुख्य वस्तु है उसे ही केंद्र में रखकर  अपने कार्य का निर्माण करना चाहिए ।
  • जिस प्रकार दो नाव की सवारी करने वाले डूब जाते हैं उसी प्रकार कई उद्देश्य को लेकर आगे बढ़ने से नुकसान की आशंका रहती है।
  • हमें अपना पूरा ध्यान मुख्य बात पर लगानी चाहिए।
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