पुराने समय की बात है। तब उड़ीसा में राजा नरसिंह देव का शासन था। वे सूर्य देव के उपासक थे। एक दिन उनके मन में सूर्यदेव का एक भव्य मंदिर बनाने की इच्छा पैदा हुई। उन्होंने अपनी इस इच्छा को समुन्द्र तट पर एक उपयुक्त जगह का चयन कर अंजाम देने का भी तत्काल फैसला कर लिया। मंदिर निर्माण का कार्य शुरू हुआ, सैकड़ों मजदूरों और कारीगरों को इस निर्माण से जोड़ दिया गया।
मंदिर निर्माण का कार्य बारह सालों तक चलता रहा, निर्माण में जुटे कारीगरों के सरदार थे, बिशू महाराज। जब बिशू मंदिर निर्माण के लिए अपने गांव से आया था, तब उसकी स्त्री गर्भवती थी। जब मंदिर निर्माण का काम पूरा होने को आया तब तक बिशू का पुत्र बारह साल का हो चुका था।
धर्मा बचपन से ही सबसे यही सुनता आ रहा था कि उसके पिता समुन्द्र तट पर एक मंदिर निर्माण के लिए गए हुए हैं। यह सब सुनते सुनते उसे अपने पिता से मिलने की इच्छा हुई। उसने इस बारे में अपनी मां से बात की और पिता के पास जाने की आज्ञा मांगी। मां ने बेटे को खुशी खुशी आज्ञा दे दी। धर्मा मंदिर की दिशा में चल दिया। उसने चलते समय साथ में एक पोटली में थोड़े से बेर भी रख लिए।
जब धर्मा मंदिर निर्माण स्थल पर पहुंचा तो उसने वहां पहले तो आराम करते हुए बेर खाए, फिर अपने पिता की खोज शुरू कर दी। जल्दी ही उसके पिता मिल गए। पिता पुत्र को देखकर बहुत खुश हुए। बिशू ने अपने पुत्र को बहुत लाड प्यार दिया।
उधर निर्माण का कार्य लगभग पूरा हो गया था। लेकिन केवल मंदिर का चूड़ा ही नहीं लग रहा था। मजदूर कोशिश करके थक चुके थे। सभी चिंतित थे। दो दिन बाद राजा मंदिर के उद्घाटन के लिए आने वाले थे। उद्घाटन के दिन मंदिर में पूजन होना था। राजा ने संदेश भेज दिया था कि अगर दो दिन में मंदिर पूरा नहीं हुआ तो सभी मजदूरों को मृत्यु दंड दिया जाएगा।
मजदूरों में भय समा गया था। सभी बिशू के पास गए। बिशू भी मजदूरों की कठिनाई जानकर चिंतित हो गया, लेकिन यह सब बिशू के सोते हुए पुत्र ने भी सुन लिया। वह अपने पिता की परेशानी दूर करने का उपाय सोचने लगा। सोचते सोचते उसे तत्काल इस मसले का निदान भी सूझ गया। उसने रात में ही अपनी सूझबूझ से मंदिर का चूड़ा लगा दिया। यह सब देखकर सभी मजदूर और बिशू काफी खुश हुए।
लेकिन यह खुशी ज्यादा देर तक कायम नहीं रह सकी। मजदूरों में इस बात को लेकर हड़कंप मच गया कि जब राजा को पता चलेगा कि चूड़ा हम लोगों ने नहीं बल्कि एक छोटे लड़के ने लगा दिया है तो….। सभी मजदूर इस नई मुसीबत से उबरने का उपाय सोचने लग गए। सभी ने कहा कि यह गंभीर समस्या है। बिशू भी सोच में पड़ गया कि अब क्या करें? उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था। मजदूरों ने भी यह कहना शुरू कर दिया था कि आपको पुत्र प्यारा है या बारह सौ मजदूरों का जीवन? यह सब देखकर बालक धर्म को बहुत दुख हुआ। उससे अपने पिता का दुख भी नहीं देखा जा रहा था। वह रात के अंधेरे में मंदिर पर चढ़ गया और वहां से उसने समुन्द्र में छलांग लगाकर अपनी जान न्योछावर कर दी। सुबह जब बिशू और मजदूरों को यह पता लगा तो चारों तरफ हाहाकर मच गया।
पूर्णिमा वाले दिन जब राजा मंदिर देखने आए तो बड़े प्रसन्न हुए। तभी उन्हें धर्म के कार्य और त्याग का पता चला। राजा बहुत दुखी हुए। उन्होंने कहा कि यह बड़े गौरव की बात है कि दुनिया का सर्वश्रेष्ठ सूर्य मंदिर कोणार्क का चूड़ा एक होनहार बालक ने लगाया है। वह आज जिंदा होता तो दुनिया का सर्वश्रेष्ठ कारीगर बनता। मानव जाति की यह सबसे बड़ी क्षति है।