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NCERT Solutions Class 12 Kavitavali Laxman Murchha Ram ka Vilap Tulsidas Chapter 8 Hindi Aroh

Kavitavali Laxman Murchha Ram ka Vilap : Tulsidas (कवितावली लक्ष्मण मूर्छा राम का विलाप) NCERT Solutions Class 12

पाठ्यपुस्तक से हल प्रश्न

कविता के साथ

  1. कवितावलीमें उद्धृत छंदों के आधार पर स्पष्ट करें कि तुलसीदास को अपने युग की आर्थिक विषमता की अच्छी समझ है। CBSE 2011 (C)]

अथवा     तुलसीदास के कवित्त के आधार पर तत्कालीन समाज की आर्थिक विषमता पर प्रकाश डालिए। [CBSE (Delhi), 2015, Set-III)]
उत्तरकवितावली में उद्दृत छंदों से यह ज्ञात होता है कि तुलसीदास को अपने युग की आर्थिक विषमता की अच्छी समझ है। उन्होंने समकालीन समाज का यथार्थपरक चित्रण किया है। उन्होंने देखा कि उनके समय में बेरोजगारी की समस्या से मजदूर, किसान, नौकर, भिखारी आदि सभी परेशान थे। गरीबी के कारण लोग अपनी संतानों तक को बेच रहे थे। सभी ओर भूखमरी और विवशता थी।

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  1. पेट की आग का शमन ईश्वर (राम) भक्ति का मेघ ही कर सकता हैतुलसी का यह काव्यसत्य क्या इस समय का भी युग सत्य है ? तर्कसंगत उत्तर दीजिए।
    उत्तरतुलसी ने कहा है कि पेट की आग का शमन ईश्वर (राम) भक्ति का मेघ ही कर सकता है। मनुष्य का जन्म, कर्म, कर्म-फल सब ईश्वर के अधीन हैं। निष्ठा और पुरुषार्थ से ही मनुष्य के पेट की आग का शमन हो सकता है। फल प्राप्ति के लिए दोनों में संतुलन होना आवश्यक है। पेट की आग बुझाने के लिए मेहनत के साथ-साथ ईश्वर कृपा का होना जरूरी है।
  1. तुलसी ने यह कहने की ज़रूरत काँ ज़रूस्त क्यों समझी ?
    धूत कहौ, अवधूत कहौ, राजपूतु कहौ जोलहा लहा कहौ कोऊ
    काहू की बेटीसों बेटा ब्याहब काहूकी जाति बिकार सोऊ।
    इस सवैया मेंकाहू के बेटा सों बेटी ब्याहबकहते तो सामाजिक अर्थ में क्या परिवर्तन आता ?

उत्तरतुलसीदास जाति-पाँति से दूर थे। वे इनमें विश्वास नहीं रखते थे। उनके अनुसार व्यक्ति के कर्म ही उसकी जाति बनाते हैं। यदि वे काहू के बेटासों बेटी न ब्याहब कहते हैं तो उसका सामाजिक अर्थ यही होता कि मुझे बेटा या बेटी किसी में कोई अंतर नहीं दिखाई देता। यद्यपि मुझे बेटी या बेटा नहीं ब्याहने, लेकिन इसके बाद भी मैं बेटा-बेटी का कद्र करता हूँ।

  1. धूत कहींवाले छंद में ऊपर से सरल निरीह दिखाई पड़ने वाले तुलसी की भीतरी असलियत एक स्वाभिमानी भक्त हृदय की हैं। इससे आप कहाँ तक सहमत हैं ?

अथवा

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धूत कहीं  ……’ ‘छंद के आधार पर तुलसीदास के भक्तहृदय की विशेषता पर टिप्पणी कीजिए। [CBSE (Delhi), 2014)]
उत्तर- हम इस बात से सहमत है कि तुलसी स्वाभिमानी भक्त हृदय व्यक्ति है क्योंकि धूत कहौ… वाले छंद में भक्ति की गहनता और सघनता में उपजे भक्तहृदय के आत्मविश्वास का सजीव चित्रण है, जिससे समाज में व्याप्त जात-पाँत और दुराग्रहों के तिरस्कार का साहस पैदा होता है। तुलसी राम में एकनिष्ठा रखकर समाज के रीती-रिवाजों का विरोध करते है तथा अपने स्वाभिमान को महत्त्व देते हैं।

  1. व्याख्या करें

()
मम हित लागि तजेहु पितु माता। सहेहु बिपिन हिम आतप बाता।
जौं जनतेऊँ बन बंधु बिछोहू। पिता बचन मनतेऊँ नहिं ओहू।

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()
जथा पंख बिनु खग अति दीना। मनि बिनु फनि करिबर कर हीना।
अस मम जिवन बंधु बिनु तोही। जों जड़ दैव जिआवै मोही।

()
माँगि के खैबो, मसीत को सोइबो,
लैबोको एकु न दैबको दोऊ।

()
ऊँचे-नीचे करम, धरम-अधरम करि,
पेट को ही पचत, बेचत बेटा-बेटकी ।

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उत्तर- () मेरे हित के लिए तूने माता-पिता त्याग दिए और इस जंगल में सरदी-गरमी तूफ़ान सब कुछ सहन किया। यदि मैं यह जानता कि वन में अपने भाई से बिछुड़ जाऊँगा तो मैं पिता के वचनों को न मानता।

() मेरी दशा उसी प्रकार हो गई है जिस प्रकार पंखों के बिना पक्षी की, मणि के बिना साँप की, सँड़ के बिना हाथी| की होती है। मेरा ऐसा भाग्य कहाँ जो तुम्हें दैवीय शक्ति जीवित कर दे।

() तुलसीदास जी कहते हैं कि मैंने तो माँगकर खाया है मस्ती में सोया हूँ किसी का एक लेना नहीं है और दो देने नहीं अर्थात् मैं बिल्कुल निश्चित प्राणी हूँ।

() तुलसी के युग में लोग पैसे के लिए सभी तरह के कर्म किया करते थे। वे धर्म-अधर्म नहीं जानते थे केवल पेट भरने की सोचते। इसलिए कभी-कभी वे अपनी संतान को भी बेच देते थे।

  1. भ्रातृशोक में हुई राम की दशा को कवि ने प्रभु की नर-लीला की अपेक्षा सच्ची मानवीय अनुभूति के रूप में रचा है। क्या आप इससे सहमत हैं ? तर्कपूर्ण उत्तर दीजिए।
    उत्तर- लक्ष्मण के मूर्चिछत होने पर राम को जिस तरह विलाप करते दिखाया गया है, वह ईश्वरीय लीला की बजाय आम व्यक्ति का विलाप अधिक लगता है। राम ने अनेक ऐसी बातें कही हैं जो आम व्यक्ति ही कहता है, जैसे-यदि मुझे तुम्हारे वियोग का पहले पता होता तो मैं तुम्हें अपने साथ नहीं लाता। मैं अयोध्या जाकर परिवारजनों को क्या मुँह दिखाऊँगा, माता को क्या जवाब दूँगा आदि। ये बातें ईश्वरीय व्यक्तित्व वाला नहीं कह सकता क्योंकि वह तो सब कुछ पहले से ही जानता है। उसे कार्यों का कारण व परिणाम भी पता होता है। वह इस तरह शोक भी नहीं व्यक्त करता। राम द्वारा लक्ष्मण के बिना खुद को अधूरा समझना आदि विचार भी आम व्यक्ति कर सकता है। इस तरह कवि ने राम को एक आम व्यक्ति की तरह प्रलाप करते हुए दिखाया है जो उसकी सच्ची मानवीय अनुभूति के अनुरूप ही है। हम इस बात से सहमत हैं कि यह विलाप राम की नर-लीला की अपेक्षा मानवीय अनुभूति अधिक है।
  1. शोकग्रस्त माहौल में हनुमान के अवतरण को करुण रस के बीच वीर रस का आविभव क्यों कहा गया हैं?

[CBSE Sample Papler-I, 2008]

उत्तर- जब सभी लोग लक्ष्मण के वियोग में करुणा में डूबे थे तो हनुमान ने साहस किया। उन्होंने वैद्य द्वारा बताई गई संजीवनी लाने का प्रण किया। करुणा के इस वातावरण में हनुमान का यह प्रण सभी के मन में वीर रस का संचार कर गया। सभी वानरों और अन्य लोगों को लगने लगा कि अब लक्ष्मण की मूच्र्छा टूट जाएगी। इसीलिए कवि ने हनुमान के अवतरण को वीर रस का आविर्भाव बताया है।

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  1. जैहउँ अवध कवन मुहुँ लाई। नारि हेतु प्रिय भाइ गवाई।
    बरु अपजस सहतेऊँ जग माहीं। नारि हानि बिसेष छति नाहीं।
    भाई के शोक में डूबे राम के इस प्रलापवचन में स्त्री के प्रति कैसा सामाजिक दृष्टिकोण संभावित हैं?
    उत्तर- भाई के शोक में डूबे राम ने कहा कि मैं अवध क्या मुँह लेकर जाऊँगा? वहाँ लोग कहेंगे कि पत्नी के लिए प्रिय भाई को खो दिया। वे कहते हैं कि नारी की रक्षा न कर पाने का अपयशता में सह लेता, किन्तु भाई की क्षति का अपयश सहना मुश्किल है। नारी की क्षति कोई विशेष क्षति नहीं है। राम के इस कथन से नारी की निम्न स्थिति का पता चलता है।उस समय पुरुष-प्रधान समाज था। नारी को पुरुष के बराबर अधिकार नहीं थे। उसे केवल उपभोग की चीज समझा जाता था। उसे असहाय व निर्बल समझकर उसके आत्मसम्मान को चोट पहुँचाई जाती थी।

पाठ के आसपास

  1. कालिदास केरघुवंश’ महाकाव्य में पत्नी (इंदुमत) के मृत्युशोक पर अज तथा निराला की ‘सरोजस्मृति’ में पुत्री (सरोज) के मृत्युशोक पर पिता के करुण उद्गार निकले हैं। उनसे भ्रातृशोक में डूबे राम के इस विलाप की तुलना करें।
    उत्तर- रघुवंश महाकाव्य में पत्नी की मृत्यु पर पति का शोक करना स्वाभाविक है। ‘अज’ इंदुमती की अचानक हुई मृत्यु से शोकग्रस्त हो जाता है। उसे उसके साथ बिताए हर क्षण की याद आती है। वह पिछली बातों को याद करके रोता है, प्रलाप करता है। यही स्थिति निराला जी की है। अपनी एकमात्र पुत्री सरोज की मृत्यु होने पर निराला जी को गहरा आघात लगता है। निराला जी जीवनभर यही पछतावा करते रहे कि उन्होंने अपनी पुत्री के लिए कुछ नहीं किया। उसका लालन-पालन भी न कर सके। लक्ष्मण के मूर्छित हो जाने पर राम का शोक भी इसी प्रकार का है। वे कहते हैं कि मैंने स्त्री के लिए अपने भाई को खो दिया, जबकि स्त्री के खोने से ज्यादा हानि नहीं होती। भाई के घायल होने से मेरा जीवन भी लगभग खत्म-सा हो गया है।
  1. पेट ही को यचत, बेचत बेटाबेटकीतुलसी के युग का ही नहीं आज के युग का भी सत्य हैं/ भुखमरी में किसानों की आत्महत्या और संतानों (खासकर बेटियों) को भी बेच डालने की हृदयविदारक घटनाएँ हमारे देश में घटती रही हैं। वतमान परिस्थितियों और तुलसी के युग की तुलना करें।
    उत्तर- गरीबी के कारण तुलसीदास के युग में लोग अपने बेटा-बेटी को बेच देते थे। आज के युग में भी ऐसी घटनाएँ घटित होती है। किसान आत्महत्या कर लेते हैं तो कुछ लोग अपनी बेटियों को भी बेच देते हैं। अत्यधिक गरीब व पिछड़े क्षेत्रों में यह स्थिति आज भी यथावत है। तुलसी तथा आज के समय में अंतर यह है कि पहले आम व्यक्ति मुख्यतया कृषि पर निर्भर था, आज आजीविका के लिए अनेक रास्ते खुल गए हैं। आज गरीब उद्योग-धंधों में मजदूरी करके जब चल सकता है पंतुकटु सब बाह है किगबकीदता में इस यु” और वार्तमान में बाहु अंत नाह आया हैं ।
  1. तुलसी के युग की बेकारी के क्या कारण हो सकते हैं ? आज की बेकारी की समस्या के कारणों के साथ उसे मिलाकर कक्षा में परिचचा करें।
    उत्तर- तुलसी युग की बेकारी का सबसे बड़ा कारण गरीबी और भुखमरी थी। लोगों के पास इतना धन नहीं था कि वे कोई रोजगार कर पाते। इसी कारण लोग बेकार होते चले गए। यही कारण आज की बेकारी का भी है। आज भी गरीबी है, भुखमरी है। लोगों को इन समस्याओं से मुक्ति नहीं मिलती, इसी कारण बेरोजगारी बढ़ती जा रही है।
  1. राम कौशल्या के पुत्र थे और लक्ष्मण सुमित्रा के। इस प्रकार वे परस्पर सहोदर (एक ही माँ के पेट से जन्मे) नहीं थे। फिर, राम ने उन्हें लक्ष्य करके ऐसा क्यों कहा—‘मिलह जगत सहोदर भ्राता’2 इस पर विचार करें।
    उत्तर- राम और लक्ष्मण भले ही एक माँ से पैदा नहीं हुए थे, परंतु वे सबसे ज्यादा एक-दूसरे के साथ रहे। राम अपनी माताओं में कोई अंतर नहीं समझते थे। लक्ष्मण सदैव परछाई की तरह राम के साथ रहते थे। उनके जैसा त्याग सहोदर भाई भी नहीं कर सकता था। इसी कारण राम ने कहा कि लक्ष्मण जैसा सहोदर भाई संसार में दूसरा नहीं मिल सकता।

 यहाँ कवि तुलसी के दोहा, चौपाई, सोरठा, कवित, सवैयाये पाँच छद प्रयुक्त हैं। इसी प्रकार तुलसी साहित्य में और छद तथा काव्यरूप आए हैं। ऐसे छदों काव्यरूपों की सूची बनाएँ।
उत्तर- तुलसी साहित्य में अन्य छंदों का भी प्रयोग हुआ है जो निम्नलिखित है-बरवै, छप्पय, हरिगीतिका।
तुलसी ने इसके अतिरिक्त जिन छंदों का प्रयोग किया है उनमें छप्पय, झूलना मतंगयद, घनाक्षरी वरवै, हरिगीतिका, चौपय्या, त्रिभंगी, प्रमाणिका तोटक और तोमर आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। काव्य रूप-तुलसी ने महाकाव्य, प्रबंध काव्य और मुक्तक काव्यों की रचना की है। इसीलिए अयोध्यासिंह उपाध्याय लिखते हैं कि “कविता करके तुलसी न लसे, कविता लसी पा तुलसी की कला।”

इन्हें भी जानें

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चौपाई

चौपाई सम-मात्रिक छंद है जिसके दोनों चरणों में 16-16 मात्राएँ होती हैं। चालीस चौपाइयों वाली रचना को चालीसा कहा जाता है-यह तथ्य लोक-प्रसिद्ध है।

दोहादोहा अर्धसम मात्रिक छंद है। इसके सम चरणों (दूसरे और चौथे चरण) में 11-11 मात्राएँ होती हैं तथा विषम चरणों (पहले और तीसरे) में 13-13 मात्राएँ होती हैं। इनके साथ अंत लघु (1) वर्ण होता है।

सोरठा– दोहे को उलट देने से सोरठा बन जाता है। इसके सम चरणों (दूसरे और चौथे चरण) में 13-13 मात्राएँ होती हैं तथा विषम चरणों (पहले और तीसरे) में 11-11 मात्राएँ होती हैं। परंतु दोहे के विपरीत इसके सम चरणों (दूसरे और चौथे चरण) में अंत्यानुप्रास या तुक नहीं रहती, विषम चरणों (पहले और तीसरे) में तुक होती है।

कवित्तयह वार्णिक छंद है। इसे मनहरण भी कहते हैं। कवित्त के प्रत्येक चरण में 31-31 वर्ण होते हैं। प्रत्येक चरण के 16वें और फिर 15वें वर्ण पर यति रहती है। प्रत्येक चरण का अंतिम वर्ण गुरु होता है।

सवैयाचूँकि सवैया वार्णिक छंद है, इसलिए सवैया छंद के कई भेद हैं। ये भेद गणों के संयोजन के आधार पर बनते हैं। इनमें सबसे प्रसिद्ध मत्तगयंद सवैया है इसे मालती सवैया भी कहते हैं। सवैया के प्रत्येक चरण में 23-23 वर्ण होते हैं जो 7 भगण + 2 गुरु (33) के क्रम के होते हैं।

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