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मनोरंजक बाल कथा – कंजूस की वसीयत

किसी गांव में एक बड़ा जमींदार था, उसके तीन बेटे और तीन बहुएं थीं। उसके पास छः दर्जन मवेशी, दो सौ एकड़ जमीन और अनाज की दो दुकानें थीं। फिर भी वे चावल में भूसी और रोटी में चोकर मिलाकर खाते थे। सब्जी तलने के बजाय उबालकर खाना पसंद करते थे। बड़ी कड़ाही में छिलके और जड़ के साथ नमक डालकर सब्जी उबाल ली जाती और कभी तेल डालना हुआ तो यह कठिन काम जमींदार खुर करता था।

परिवार के सदस्यों और नौकरों को मिलाकर पचास व्यक्तियों के लिए बनी इस सब्जी में कितना तेल डाला जाता होगा, आप सोच नहीं सकते। एक औंस का चार बटा दसवां भाग। यानी दस दिनों में चार औंस, तेल के डिब्बे में अंगूठे के आकार की एक करछी रहती थी। जमींदार उसी करछी से तेल निकालता और उसे कड़ाही में डाल देता। ताज्जुब की बात यह कि साल में चार औंस तेल खरीदा जाता और वह साल भर चलता था और यही नहीं साल के अंत में लगभग साढ़े सात औंस तेल अपने आप बढ़ जाता था। आप पूछेंगे कैसे? तो वह ऐसे कि जब भी जमींदार को कलछी से तेल डालना होता वह कलछी कड़ाही के पानी से भर लेता और फिर उसे तेल के डिब्बे में डाल देता।Manoranjak bal katha - kanjoos ki vaseeyat

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पूरे परिवार को उसके साथ भूसी और चोकर खाना पड़ता था। उसकी तीनों बहुएं धनी परिवारों से आई थीं और उन्हें बेहतर खाने पीने की आदत थी। भला वे भूसी चोकर खाकर कैसे रहतीं? लेकिन जमींदार के बेटों, बहुओं और पोते पोतियों को भी दो तीन कौर चोकर की रोटी या भूसी का भात खाना पड़ता। इसके बाद वे पेट पर हाथ फेरते हुए बोलते थे कि आज तो बहुत खा लिया। हमेशा ढेर सारा खाना बच जाता था और बूढ़ा जमींदार मुस्कराकर कहता था कि हमारे परिवार में कोई भी पेटू नहीं है। इसीलिए हमारा परिवार इतना खुश और समृद्ध है।

नाश्ते के बाद जमींदार घोड़े की लीद इकट्ठी करने के लिए रोज लगभग बीस मील पैदल ही आता जाता था। उसके जाते ही रसोई घर में बरतनों की आवाजें आने लगतीं, परिवार के सदस्य खाने की तैयारी करने लगते, मांस और शराब का पूरा इंतजाम करते, जमींदार के लौटने के पहले से सबकुछ खा पीकर साफ कर देते और इस तरह रोज ही अच्छा खाना खाते। शाम को जब फिर से चोकर की रोटी परोसी जाती तो वे केवल एक दो कौर खाकर पेट पर हाथ फेरने लगते।

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बात गरमी की है, हमेशा की तरह जब वह कंजूस नाश्ते के बाद घोड़े की लीद ले जाने के लिए निकला, परिवार के सभी सदस्य भी हमेशा की तरह खाने की तैयारी में जुट गए। पर उस दिन उनकी किस्मत खराब थी, जमींदार जल्द लौट आया। अगर वह अंदर आ जाता और रसोई में शराब और मांस देख लेता तो निश्चत ही वहीं दम तोड़ देता।

जानते हैं, परिवार वालों ने क्या चाल चली, उन्होंने ऐसी चाल चली कि जमींदार सीधे अंदर न आ सके। बाहर के दरवाजे पर थोड़ी देर रूका रहे।

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आप सोच रहे होंगे कि उन्होंने दरवाजा बंद कर दिया होगा। नहीं, उन्होंने ऐसा कुछ नहीं किया। बड़ा बेटा दो मुट्ठी सोयाबीन के दाने वहां पर बिखेर आया। इसके बाद वे बड़े आराम से खाना बनाते व खाते रहे, जमींदार ने उन्हें तंग नहीं किया, क्यों नहीं किया? जब वह लीद की टोकरी लेकर दरवाजे पर पहुंचा तो उसने चारों तरफ बिखरे सोयाबीन के दाने देखे। यह देखकर उसे झटका लगा। उसने मन ही मन सोचा कि ओह! क्या बरबादी है। पता नहीं किस गधे ने ऐसा किया? परिवार वालों ने उसकी तरफ कोई ध्यान नहीं दिया। वह गालियां देता रहा। बड़बड़ाता रहा। एक एक करके उसने सारे दाने चुने। जब तक उसने अंतिम दाना उठाया तब तक घर के अंदर सभी लोग खा पीकर हाथ मुंह पोंछ चुके थे।

इसके बाद अपने मरने तक वह धन जमा करता रहा। अपने अंतिम समय में उसे एक ही चिंता सता रही थी कि उसके मरने के बाद उसके बेटे उसके जमा धन को कैसे खर्च करेंगे? उसने तीनों बेटों को अपने पास बुलाया और सबसे बड़े बेटे से पूछा कि अब मेरे चलने का समय आ गया है। भला बताओ कि तुम मेरा अंतिम संस्कार कैसे करोगे?

बड़े बेटे ने सोचा कि बाप ने जिंदगी भर पैसा कमाया पर खर्च नहीं किया। यह तो कोई अच्छी बात न हुई। अब वह धन उसे और उसके भाइयों को विरासत में मिलेगा। अतः पिता के मरने के बाद अंतिम संस्कार तो भव्य तरीके से होना ही चाहिए।

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उसने पिता से कहा, ”पिता जी! आप चिंता न करें, हम आपमा अंतिम संस्कार भव्य तरीके से करेंगे।“

अपने पुत्र की बात सुनकर पिता ने कहा कि, ”नहीं, भव्य तरीके से तुम्हारा क्या मतलब है, पहले यह मुझे बताओ।“

बेटे ने अपनी पूरी योजना बयान की कि, ”हमने सबकुछ तय कर लिया है, हम सबसे अच्छी नानमू की लकड़ी से आपका ताबूत बनवाएंगे, अंतिम संस्कार में खर्च के लिए अनाज की दोनों दुकानें बेच देंगे। आपके ताबूत में सोने का बिछावन और झिलमिल रूपहले चांदी के तारों से कढ़ी रजाई रखेंगे। साथ ही खर्च के लिए सात सोने के सिक्के और पहनने के लिए सात हीरे भी रखेंगे। 49 दिनों तक लगातार बौद्ध, लामाओं, ताओवादी और पादरियों से धर्मग्रंथ पढ़वाएंगे, चौंसठ व्यक्ति मिलकर ताबूत उठाएंगे।“

इससे पहले की बेटा और योजना बखाने, कंजूस पिता ने उसे रोक कर डांटते हुए कहा, ”तुम गधे ही रह गए। कैसी मूर्खों जैसी बातें कर रहे हो। क्या हम रूपयों से बड़े हैं? अनाज की दोनों दुकानों को बेचने से भी ऐसा भव्य अंतिम संस्कार नहीं हो सकता। नानमू का ताबूत मिट्टी के अंदर सड़ जाएगा, सोने के सात सिक्कों और हीरों की कीमत जानते हो?“ क्या तुम परिवार को दीवालिया करना चाहते हो। भला क्या 49 दिनों तक सारे संबंधी हमारे घर पर रखोगे? मेरे खर्च पर उन्हें खिलाना मुझे बरदाष्त न होगा। तुम किसी लायक नहीं हो, पक्के गधे हो तुम।

बड़े बेटे को डांटने के बाद उसने मंझले से पूछा कि तुम क्या करोगे?

फिजूलखर्ची के कारण बड़े भाई को पड़ी डांट को ध्यान में रखकर मंझला बेटा बोला, ”आप चिंता ने करें। बड़े भाई तो औकात से ज्यादा खर्च करना चाहते हैं। अभी हमारी भी जिंदगी पड़ी है। हम आपको साधारण लकड़ी के ताबूत में सोने के केवल सात सिक्कों के साथ दफनाएंगे। उसमें हीरे नहीं रखेंगे। सोने के बिछावन और झिलमिल रूपहले चांदी के तारों की रजाई की भी जरूरत नहीं है। 21 दिनों तक धर्मग्रंथों का पाठ होगा और वह भी हर तीसरे महीने में।“

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उसकी योजना भी पिता को रास नहीं आई। उसने कहा, ”नहीं, यह भी बहुत ज्यादा है। इससे तो हम कंगाल हो जाएंगे।“ फिर छोटे से पूछा, ”अच्छा छोटे, तुम बताओ, तुम क्या करोगे?“

छोटा लड़का चालाक था और अपने बाप के स्वभाव को जानता था। उसने सोचा कि पहले बाप का क्रोध कर करूं, फिर अंतिम संस्कार के बारे में कुछ कहना ठीक होगा।

वह बोला, ”मैं आपसे सौ फीसदी सहमत हूं। मेरे भाई गलत सोच रहे हैं, वे इंतजाम करना नहीं चाहते। आपने कितनी मेहनत से पूरी जिंदगी में यह पैसा जमा किया और इसे ऐसे खर्च कर देना तो भारी बेवकूफी होगी। दूसरे 21 दिनों तक धर्मग्रंथों का पाठ हुआ तो इतने दिनों तक सारे संबंधी खाने के लिए यहीं डटे रहेंगे। भला ऐसा संभव है? मेरी योजना से आपको अवश्य राहत मिलेगी। आपके मरने के बाद अंतिम संस्कार में पैसे खर्च करने के बजाय हम आपके मुर्दा शरीर से पैसे कमा सकते हैं।“

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कंजूस ने कभी सोचा भी नहीं था कि मुर्दे से भी पैसे कमाए जा सकते हैं।

”कैसे कमाओगे? तुम तो काफी समझदार लगते हो। भला जरा मुझे भी बताओ कि तुम इससे पैसे कैसे कमओगे?“

छोटा बोला, ”हालांकि आप बीमार हैं, पर आपका वजन नहीं घटा है, आपका वजन अभी भी पचास किलो तो होगा ही, हम लोग बाजार से एक किलो नमक और थोड़ी चीनी खरीदेंगे और आपको उसमें मिलाकर उबाल लेंगे, फिर सड़े गले मांस और अंतड़ी वगैरह निकाल देंगे, फिर आपके मांस को मुहल्ले में मांस के भाव बेच देंगे। पचास किलो मांस का तो अच्छा पैसा मिल जाएगा। इस तरह हम आपका अंतिम संस्कार भी कर देंगे और पैसे भी कमा लेंगे। आपको मेरी योजना कैसी लगी?“

बड़े भाइयों की तो डर के मारे हालत खराब हो गई थी, पर कंजूस बाप क्रोध करने के बजाय मुस्कराने लगा। वह खुश होकर बोला, ”बहुत अच्छे, तुम बहुत समझदार हो। तुम्हीं एक हो जो मुझे समझ सके। ऐसा ही करना, पर एक बात का ख्याल रखना, मांस अपने घर की दक्षिण की तरफ बेचना। उत्तर की तरफ तो भूलकर भी नहीं।“

अब छोटा लड़का चौंका, उसने जानना चाहा कि क्यों उत्तर में क्यों नहीं? तब पिता ने इसका रहस्य बताया कि उत्तर के परिवार वाले उधार खरीदना चाहेंगे।

अपने पिता की बात सुनकर तीनों बेटों को विश्वास हो गया कि हमारे कंजूस पिता ने सबकुछ पहले ही सोच लिया था।

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