सोशल मीडिया पर आजकल एक कश्मीरी नागरिक द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को 500 और 1000 के नोटबंदी पर लिखा हुआ यह पत्र वायरल हो रहा है. आप भी पढ़िए कि आखिर इस कश्मीरी नागरिक ने ऐसा क्या लिख भेजा है प्रधान मंत्री मोदी को?
आदरणीय प्रधानमंत्री जी,
भारत के अन्य भागों में रह रहे लोग एक कश्मीरी के जिंदगी के हाल की कल्पना भी नहीं कर सकते. किस तरह एक साधारण कश्मीरी, जो सारा दिन अपने परिवार का पेट भरने के लिए कमर-तोड़ मेहनत करता है, सिक्योरिटी फोर्सेज और अलगाववादियों के बीच पिस रहा है. हालांकि यह बड़े अफ़सोस भरे हालात हैं लेकिन हमारे पास इसके सिवा कोई रास्ता नहीं है.
मैं एक साधारण कश्मीरी हूँ – अफ़ज़ल रहमान – और मैं 2 फ़ीसदी अलगाववादियों में से नहीं हूँ. मैं एक शौहर हूँ, चार बच्चों का बाप और और बूढ़े माँ-बाप का बेटा हूँ. और हाँ, मैं एक भारतीय हूँ और एक कश्मीरी हूँ जो श्रीनगर में एक कपड़ों की दुकान चलाता है.
एक ही बात जो मेरे जेहन में हमेशा घूमती है वो यह कि कैसे मैं अपने बच्चों का अच्छा भविष्य सुनिश्चित कर पाऊं? इसीलिए, तमाम धमकियों के बाद भी मैंने अपने बड़े बेटे को पुलिस एडमिशन एक्जाम्स में भाग लेने भेजा. मेरी एक बेटी बारहवीं में पढ़ रही है और मैं जानता हूँ कि ये साल उसकी ज़िन्दगी और करियर के लिए कितना मायने रखता है.
लेकिन पिछले 4 महीने हमारे लिए बड़े तकलीफ भरे गुजरे हैं. करीब करीब हर दिन कर्फ्यू और बिना बिज़नस के 4 महीने बीते हैं. ऐसे हालात में बिना काम-धंधे चले एक निम्न-माध्यम वर्गीय परिवार का गुजारा कैसे चल सकता है? बचाये हुए पैसों से मैंने किसी तरह अपने परिवार का पेट तो पाल लिया, लेकिन वही तो एकमात्र मुश्किल नहीं है.
मेरी बेटी का स्कूल के बहुत सारे दिन का हर्जा हुआ जबकि इस साल उसकी ज़िन्दगी का बहुत ही खास दौर है. मेरे बेटे का मन यहाँ के हालात देख कर हताशा से भरा है. उसकी उम्र के नौजवान, जो बेरोज़गार हैं, आर्म्ड फोर्सेज पर पत्थरबाज़ी कर रहे थे. उन्हें अलगाववादियों से पत्थर फेंकने के लिए पैसे मिल रहे थे. आखिर एक बेरोज़गार आदमी आखिर करे तो क्या करे? थोड़े से पैसों के लिए वह कुछ भी कर सकता है जिससे कम से कम उसके बाल-बच्चों का पेट तो भर सके.
मेरा खुद का बेटा, जो किसी वक़्त पुलिस में भर्ती होना चाहता था, इन पत्थर बाजों के ग्रुप में शामिल हो गया. मुझे ये तब पता चला जब उसकी बांह पर पेलेट गन का निशाना लगा.
फिर ये संघर्ष कुछ थम सा गया, लेकिन फिर वादी में स्कूलों के जलाने का सिलसिला शुरू हो गया. मेरी बेटी का स्कूल भी जलाये गए इन्हीं 29 स्कूलों की लिस्ट में था.
हमारी ज़िन्दगी बद-से-बदतर होती जा रही थी. हम न चैन से सो पा रहे थे, न पेट भर खा पा रहे थे, न जी पा रहे थे, ना ही मरना हमारे नसीब में था.
लेकिन फिर 8 नवम्बर को हमने रेडियो कश्मीर पर एक खबर सुनी. जिसमें आपने 500 और 1000 के नोट बंद करने का फैसला लिया. इस फैसले के बाद हमारे अंदर और खौफ बैठ गया. हमारे पास बहुत काम नकदी बची थी और वह भी सारी 500 और 1000 के नोटों में. और कश्मीर में नोट बदल भी नहीं सकते थे क्योंकि शहर में अमन के हालात ही नहीं थे, बाहर कैसे निकलते और कहाँ बदलते?
सारा भारत काले धन के बारे में सोच रहा है लेकिन कश्मीरी ज़िन्दगी की जद्दोजहद से जूझ रहे हैं. हमने कभी नहीं सोचा था आपके इस फैसले का कश्मीरियों की ज़िन्दगी पर कोई असर पड़ेगा. लेकिन जो हुआ, वो भी हमने नहीं सोचा था.
अब सडकों पर कोई पत्थरबाज़ी नहीं हो रही थी. आर्म्ड फोर्सेज थीं, लेकिन पेलेट गन्स नहीं थीं. एक-दो दिनों में ही घाटी में गाड़ियों की मूवमेंट होने लगी. हमने अपनी दुकानें खोली, लोग खरीदारी करने आये. बहुत दिन बाद लोगों के चेहरे पर रौनक दिखाई दी.
भारत के अन्य हिस्सों में लोगों को लाइनों में लगने से परेशानी हो रही होगी, लेकिन हम काश्मीरियों को बैंक की कतार में खड़ा होने और एक-दूसरे से मिलने-मिलाने में राहत भरी ख़ुशी मिल रही थी.
हम मेरी बेटी के इम्तेहान को लेकर परेशान थे लेकिन वो अपने बोर्ड एक्जाम देने गयी. और सिर्फ मेरी बेटी ही नहीं वहां सारे बच्चे एक्जाम देकर खुश थे. इस साल सबसे ज्यादा बच्चे एक्जाम देने गए – 95%.
इतने सारे बदलाव देखकर हम सब लोगों ने सोचा कि आखिर ऐसा क्या हुआ जो हालात सुधर गए? फिर यही सोच निकल कर आयी कि शायद अलगाववादियों के पास महज 500 और 1000 के ही नोट थे जिन्हें अब कोई पूछ नहीं रहा था.
मुझे नहीं मालूम कि बाकी भारत आपके इस फैसले के बारे में क्या सोचता है लेकिन हम घाटी के लोग आपके इस फैसले से बहुत खुश हैं.
अफ़ज़ल रहमान
(वेबसाइट्स www.indiaarising. com में छपी English report के आधार पर हिंदी अनुवाद. इस पत्र की सत्यता की जांच हिन्दीवार्ता.कॉम ने नहीं की है. पीएमओ कार्यालय द्वारा भी इस सम्बन्ध में कोई प्रेस-रिलीज जारी नहीं किया गया है.)