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गुरू कुम्हार शिष कुंभ है, गढि़ गढि़ काढ़ै खोट। – Kabir Ke Dohe

Kabir ke dohe in Hindi (Kabir ke dohe with meaning)

Sant Kabir ke Dohe, Kabir vani, Kabir Dohavali, Sant Kabir Dasगुरू कुम्हार शिष कुंभ है, गढि़ गढि़ काढ़ै खोट।
अन्तर हाथ सहार दै, बाहर बाहै चोट।।

Guru kumhar shish kumbh hai, Gadhi gadhi kadhai khot.
Antar hath sahar dai, Bahar bahai chot

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अर्थात (Meaning in Hindi): संसारी जीवों को सन्मार्ग की ओर प्रेरित करते हुए संत शिरोमणि कबीर दास जी कहते हैं- गुरू कुम्हार है शिष्य मिट्टी के कच्चे घड़े के समान है। जिस तरह घड़े को सुन्दर बनाने के लिए अन्दर हाथ डालकर बाहर से थाप मारते हैं ठीक उसी प्रकार शिष्य को कठोर अनुशासन में रखकर अन्तर से प्रेम भावना रखते हुए शिष्य की बुराइयों को दूर करके संसार में सम्माननीय बनाता है।


कबीर हरि के रूठते, गुरू के शरणै जाय।
कहै कबीर गुरू रूठते, हरि नहि होत सहाय।।

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Kabir hari ke ruthte, Guru ke sharnai jaye
kahai kabir guru ruthte, Hari nahi haut sahai

अर्थात (Meaning in Hindi): प्राणी जगत को सचेत करते हुए कबीर दास जी कहते हैं – हे मानव। यदि भगवान तुम से नाराज होते हैं तो गुरू की शरण में जाओ। गुरू तुम्हारी सहायता करेंगे अर्थात् सब संभाल लेंगे किन्तु गुरू रूठ जाये तो हरि सहायता नहीं करते जिसका तात्पर्य यह है कि गुरू के रूठने पर कोई सहायक नहीं होता।

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जैसी प्रीति कुटुम्ब की, तैसी गुरू सों होय।
कहैं कबीर ता दास का, पला न पकड़ै कोय।।

Jaisi prati kutumb ki, Taisi guru soun hoye
Kahain kabir ta daas ka, Pala na pakde koye

अर्थात (Meaning in Hindi): हे मानव। जैसा प्रेम तुम अपने परिवार से करते हो वैसा ही प्रेम गुरू से करो। जीवन की समस्त बाधाएं मिट जायेंगी। कबीर जी कहते हैं कि ऐस सेवक की कोई मायारूपी बन्धन में नही बांध सकता, उसे मोक्ष प्राप्ति होगी, इसमें कोई संदेह नहीं।

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भक्ति निसैनी मुक्ति की, संत चढ़े सब धाय।
जिन जिन मन आलस किया, जनम जनम पछिताय।।

Bhakti nisaini mukti ki, Sant chadhe sab dhaye
Jin jin mann aalas kiya, Janam janam pachitaye

अर्थात (Meaning in Hindi): मुक्ति का मूल साधन भक्ति है इसलिए साधु जन और ज्ञानी पुरूष इस मुक्ति रूपी साधन पर दौड़ कर चढ़ते हैं। तात्पर्य यह है कि भक्ति साधना करते हैं किन्तु जो लोग आलस करते हैं। भक्ति नहीं करते उन्हें जन्म जन्म पछताना पड़ता है क्योंकि यह सुअवसर बार बार नहीं आता।


भक्ति पदारथ तब मिले, जब गुरू होय सहाय।
प्रेम प्रीति की भक्ति जो, पूरण भाग मिलाय।।

Bhakti padarath tab mile, Jab guru hoye sahaye
Prem priti ki bhakti jo, Purn bhag milaye

अर्थात (Meaning in Hindi): कबीर जी कहते हैं कि भक्ति रूपी अनमोल तत्व की प्राप्ति तभी होती है जब जब गुरू सहायक होते हैं, गुरू की कृपा के बिना भक्ति रूपी अमृत रस को प्राप्त कर पाना पूर्णतया असम्भव है।

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