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कबीर माया मोहिनी, सब जग छाला छानि – Kabir Ke Dohe

Kabir ke dohe in Hindi (dohe of Kabir in hindi)

Sant Kabir ke Dohe, Kabir vani, Kabir Dohavali, Sant Kabir Dasकबीर माया मोहिनी, सब जग छाला छानि।
कोइ एक साधू ऊबरा, तोड़ी कुल की कानि।।

Kabir maaya mohini, Sab jag chala chani
Koi ek sadhu ubra, todi kul ki kaani

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अर्थात (Meaning in Hindi): संत कबीर जी कहते हैं कि यह जग माया मोहिनी है जो लोभ रूपी कोल्हू में पीसती है। इससे बचना अत्यन्त दुष्कर है। कोई विरला ज्ञानी संत ही बच पाता है जिसने अपने अभिमान को तोड़ दिया हो।


माली आवत देखि के, कलियां करे पुकार।
फूली फूली चुन लई, काल हमारी बार।।

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Maali aawat dekhi ke, kaliyan kare pukar
Fuli fuli chun layi, Kaal hamari baar

अर्थात (Meaning in Hindi): माली को आता हुआ देखकर कलियां पुकारने लगीं, जो फूल खिल चुके थे उन्हें माली ने चुन लिया और जो खिलने वाली हैं उनकी कल बारी है। फूलों की तरह काल रूपी माली उन्हें ग्रस लेता है जो खिल चुके हैं अर्थात् जिनकी आयु पूर्ण हो चुकी है, कली के रूप में हम हैं हमारी बारी कल की है तात्पर्यय है कि एक एक करके सभी को काल का ग्रास बनना है।

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साधु सीप समुद्र के, सतगुरू स्वाती बुन्द।
तृषा गई एक बुन्द से, क्या ले करो समुन्द।।

Sadhu seep samundr ke, satguru swati boond
Trisha gayi ek boond se, Kya le karo samundr

अर्थात (Meaning in Hindi): साधु सन्त एवं ज्ञानी महात्मा को समुद्र की सीप के समान जानो और सद्गुरू को स्वाती नक्षत्र की अनमोल पानी की बूंदें जानो जिसकी एक बूंद से ही सारी प्यास मिट गई फिर समुद्र के निकट जाने का क्या प्रयोजन। सदगुरू के ज्ञान उपदेश से मन की सारी प्यास मिट जाती है।

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मांग गये सो मर रहे, मरै जु मांगन जांहि।
तिनतैं पहले वे मरे, होत करत है नाहिं।।

Maang gaye so mar rahe, Marae ju mangan janhi
Teentain pehle we mare, Hoth karat hai nahin

अर्थात (Meaning in Hindi): जो किसी के घर कुछ मांगने गया, समझो वह मर गया और जो मांगने जायेगा वह भी मर जायेगा किन्तु उनसे पहले वह मर गया जो होते हुए भी कहता है कि मेरे पास नहीं है।


बिरछा कबहुं न फल भखै, नदी न अंचवै नीर।
परमारथ के कारने, साधू धरा शरीर।।

Bircha kabhun na fal bhakai, Nadi na anchvai neer
Parmarath ke karne, Sadhu dhara sharir

अर्थात (Meaning in Hindi): वृक्ष अपने फल को स्वयं नहीं खाते, नदी अपना जल कभी नहीं पीती। ये सदैव दूसरों की सेवा करके प्रसन्न रहते हैं उसी प्रकार संतों का जीवन परमार्थ के लिए होता है अर्थात् दूसरों का कल्याण करने के लिए शरीर धारण किया है।

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