न इंतज़ार की लज़्ज़त , न आरज़ू की थकन
न इंतज़ार की लज़्ज़त न आरज़ू की थकन
बुझी हैं दर्द की शम्एँ कि सो गया है बदन
सुलग रही हैं न जाने किस आँच से आँखें
न आँसुओं की तलब है न रतजगों की जलन
दिले-फ़रेबज़दा ! दावते-नज़र प’ न जा
ये आज के क़दो-गेसू हैं कल के दारो-रसन
ग़रीबे-शहर किसी साय-ए-शजर में न बैठ
कि अपनी छाँव में ख़ुद जल रहे हैं सर्वो-समन
बहारे-क़ुर्ब से पहले उजाड़ देती हैं
जुदाइयों की हवाएँ महब्बतों के चमन
वो एक रात गुज़र भी गई मगर अब तक
विसाले-यार की लज़्ज़त से टूटता है बदन
फिर आज शब तिरे क़दमों की चाप के हमराह
सुनाई दी है दिले-नामुराद की धड़कन
ये ज़ुल्म देख कि तू जाने-शाइरी है मगर
मिरी ग़ज़ल पे तिरा नाम भी है जुर्मे-सुख़न
अमीरे-शहर ग़रीबों को लूट लेता है
कभी ब-हीला-ए-मज़हब कभी ब-नामे-वतन
हवा-ए-दहर से दिल का चराग़ क्या बुझता
मगर ‘फ़राज़’ सलामत है यार का दामन
(क़दो-गेसू=क़द और बाल, दारो-रसन=सूली और
रस्सी, शजर=वृक्ष, सर्वो-समन=सर्व तथा फूल,
बहारे-क़ुर्ब=सामीप्य की बहार, विसाल=प्रेमी,
शब=रात, दहर=काल,समय)
दिल तो वो बर्गे-ख़िज़ाँ है कि हवा ले जाए
दिल तो वो बर्ग़े-ख़िज़ाँ है कि हवा ले जाए
ग़म वो आँधी है कि सहरा भी उड़ा ले जाए
कौन लाया तेरी महफ़िल में हमें होश नहीं
कोई आए तेरी महफ़िल से उठा ले जाए
और से और हुए जाते हैं मे’यारे वफ़ा
अब मताए-दिलो-जाँ भी कोई क्या ले जाए
जाने कब उभरे तेरी याद का डूबा हुआ चाँद
जाने कब ध्यान कोई हमको उड़ा ले जाए
यही आवारगी-ए-दिल है तो मंज़िल मालूम
जो भी आए तेरी बातों में लगा ले जाए
दश्ते-गुरबत में तुम्हें कौन पुकारेगा ‘फ़राज़’
चल पड़ो ख़ुद ही जिधर दिल की सदा ले जाए
(बर्ग़े-ख़िज़ाँ=पतझड़ का पत्ता, सहरा, रेगिस्तान,
मताए-दिलो-जाँ=दिल और जान की पूँजी,
दश्ते-गुरबत=दरिद्रता,परदेस, सदा=पुकार)