Apathit Gadyansh with Answers in Hindi unseen passage
विद्वानों का यह कथन बहुत ठीक है कि विनम्रता के बिना स्वतंत्रता का कोई अर्थ नहीं। इस बात को सब लोग मानते हैं कि आत्मसंस्कार के लिए थोड़ी-बहुत मानसिक स्वतंत्रता परमावश्यक है-चाहे उस स्वतंत्रता में अभिमान और नम्रता दोनों का मेल हो और चाहे वह नाता ही से उत्पन्न हो। यह बात तो निश्चित है कि जो मनुष्य मर्यादापूर्वक जीवन व्यतीत करना चाहता है, उसके लिए वह गुण अनिवार्य है, जिससे आत्मनिर्भरता आती है और जिससे अपने पैरों के बल खड़ा होना आता है।
युवा को यह सदा स्मरण रखना चाहिए कि वह बहुत कम बातें जानता है, अपने ही आदर्श से वह बहुत नीचे है और उसकी आकांक्षाएँ । उसकी योग्यता से कहीं बढ़ी हुई हैं। उसे इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि वह अपने बड़ों का सम्मान करे, छोटों और बराबर वालों से । कोमलता का व्यवहार करे, ये बातें आत्ममर्यादा के लिए आवश्यक हैं। यह सारा संसार, जो कुछ हम हैं और जो कुछ हमारा है-हमारा शरीर, हमारी आत्मा, हमारे भोग, हमारे घर और बाहर की दशा, हमारे बहुत से अवगुण और थोड़े गुण सब इसी बात की आवश्यकता प्रकट करते है कि हमें अपनी आत्मा को नम्र रखना चाहिए।
नम्रता से मेरा अभिप्राय दब्बूपन से नहीं है, जिसके कारण मनुष्य दूसरों का मुँह ताकता है, जिससे उसका संकल्प क्षीण और उसकी प्रज्ञा मंद हो जाती है, जिसके कारण वह आगे बढ़ने के समय भी पीछे रहता है और अवसर पड़ने पर घट पट किसी बात का निर्णय नहीं कर सकता। मनुष्य का बेड़ा उसके अपने ही हाथ में है, उसे वह चाहे जिधर ले जाए। सच्ची आत्मा वही है, जो प्रत्येक दशा में, प्रत्येक स्थिति के बीच अपनी राह आप निकालती है।
उपर्युक्त अपठित गद्यांश के आधार पर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए –
प्रश्न
(क) विनम्रता के बिना स्वतंत्रता का कोई अर्थ नहीं। इस कथन का आशय स्पष्ट कीजिए।
(ख) मर्यादापूर्वक जीने के लिए किन गुणों का होना अनिवार्य है और क्यों?
(ग) नम्रता और दब्बूपन में क्या उतर है?
(घ) दब्बूपन व्यक्ति के विकास में किस प्रकार बाधक होता है? स्पष्ट कीजिए।
(ड) आत्ममर्यादा के लिए कौन सी बातें आवश्यक हैं? इससे व्यक्ति को क्या लाभ होता है?
(च) आत्मा को नम्र रखने की आवश्यकता किनकी किसकी होती है?
(छ) उपर्युक्त गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक दीजिए।
उत्तर –
(क) किसी भी व्यक्ति में स्वतंत्रता का भाव आते ही उसके मन में भहकार आ जाता है। इस अहकार के कारण वह अपनी मनुष्यता खो बैठता है। इससे व्यक्ति के आचरण में इतना बदलाव आ जाता है कि वह दूसरों को खुद से हीन समझने लगता है। ऐसे में स्वतंत्रता के साध विनम्रता का होना आवश्यक है, अन्यथा स्वतंत्रता अर्थहीन हो जाएगी।
(ख) मर्यादापूर्वक जीवन जीने के लिए मानसिक स्वतंत्रता आवश्यक है। इस स्वतंत्रता के साथ नम्रता का मेल होना आवश्यक है। इससे व्यक्ति में आत्मनिर्भरता आती है। आत्मनिर्भरता के कारण वह परमुल्लापेक्षी नहीं रहता। उसे अपने पैरों पर खड़ा होने की कला भी जाती है।
(ग) दब्बूपन में व्यक्ति का संकल्प व बुद्ध क्षीण होती है, वह त्वरित निर्णय नहीं ले सकता। वह अपने छोटे-छोटे काय तथा निर्णय लेने के लिए दूसरों पर निर्भर रहता है। इसके विपरीत, नम्रता में व्यक्ति स्वतंत्र होता है। वह नेतृत्व करने वाला होता है। वह अपने निर्णय खुद लेता है और दूसरे का मुंह देखने के लिए विवश नहीं होता।
(घ) दब्बूपन व्यक्ति के विकास में न्यासक होता है क्योंकि इसके कारण वह दूसरे का मुँह ताकता है। वह निर्णय नहीं ले पाता। वह अपने संकल्प पर स्थिर नहीं रह पाता। उसकी बुद्ध कमजोर हो जाती है। इससे मनुष्य आगे बढ़ने की बजाय पीछे रह जाता है।
(ड) आगमर्यादा के लिए अपने बड़ों का सम्मान करना, छोटों और बराबर वालों से कोमलता का व्यवहार करना आवश्यक है। इससे व्यक्ति को यह लाभ होता है कि वह आत्मसंस्कारित होता है, विनम्र और मर्यादित जीवन जीता है तथा उसे अपने पैरों पर खड़े होने में मदद मिलती है।
(च) आत्ममर्यादा के लिए आत्मा को नम्र रखने की आवश्यकता है। इस सारे संसार के लिए, जो कुछ हम हैं और जो कुछ हमारा है, आदि सभी इसी बात की आवश्यकता प्रकट करते हैं। अर्थात हमारा शरीर, हमारी आत्मा, हम जो कुछ खाते-पीते हैं, हमारे घर और बाहर की दशा हमारे बहुत से अवगुण यहाँ तक कि कुछ गुण भी आत्मा को नम्र रखने की आवश्यकता प्रकट करते हैं।
(छ) शीर्षक: विनम्रता का महत्व।
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