अल्बर्ट आइंस्टीन की कहानी एक ऐसे इंसान की कहानी है जिसे बचपन में मूर्ख करार दे दिया गया था लेकिन आगे चल कर वह संसार का महानतम वैज्ञानिक सिद्ध हुआ. विज्ञान को रिलेटिविटी का सिद्धांत देने वाले इस वैज्ञानिक ने भौतिकी के न्यूटोनियन सिद्धांत को पलट कर रख दिया. ऐसे महान साइंटिस्ट के कुछ प्रेरणाप्रद विचार हम आपके लिए ले कर आये हैं जिन्हें पढ़ कर आपके जीवन में आमूल-चूल परिवर्तन आ सकता है :
अतीत से सीखो, आज के लिए जियो, कल को लेकर आशान्वित रहो ! सबसे महत्वपूर्ण बात है कि कभी भी प्रश्न पूछना बंद मत करो।
आपको खेल (जीवन) के नियम सीखने हैं. और फिर आपको बाकी सभी से बेहतर खेलना है।
इन्सान को यह देखना चाहिए कि क्या है, यह नहीं कि उसके अनुसार क्या होना चाहिए।
इश्वर के सामने हम सभी एक समान बुद्धिमान हैं – और एक समान ही मूर्ख भी हैं।
एक मेज, एक कुर्सी, एक कटोरा फल और एक वायलन; इंसान को भला खुश रहने के लिए और क्या चाहिए?
कोई भी समस्या चिंतन के उसी स्तर पर रह कर नहीं हल की जा सकती है जिसपर वह उत्पन्न हुई है। आपको उससे आगे जा कर हल सोचना होगा!
क्रोध मूर्खों की छाती में ही बसता है।
गुरुत्वाकर्षण लोगों के प्रेम में पड़ने के लिए ज़िम्मेदार नहीं है।
जब आप अपनी प्रेमिका के साथ बैठे हों तो एक घंटा एक सेकंड के समान लगता है। जब आप सुलगते अंगारों पर बैठे हों तो एक सेकंड एक घंटे के समान लगता है। यही थ्योरी ऑफ़ रिलेटिविटी है।
जिस व्यक्ति ने कभी गलती नहीं की, उसने कभी कुछ नया करने की कोशिश नहीं की।
जो छोटी-छोटी बातों में सच को गंभीरता से नहीं लेता है, उस पर बड़े मसलों में भी भरोसा नहीं किया जा सकता।
ज्ञान का एकमात्र स्रोत अनुभव है।
तर्क आपको एक स्थान A से दूसरे स्थान B तक ले जाएगा, कल्पना आपको कहीं भी ले जा सकती है।
दुनिया रहने के लिए बहुत ही ख़तरनाक जगह है; उन लोगों की वजह से नही जो बुरे हैं बल्कि उन लोगों की वजह से जो इस बुराई के बारे में कुछ नहीं करते।
दूसरों के लिए जिया जाने वाला जीवन ही फायदेमंद है।
दो चीजें अनंत हैं: ब्रह्माण्ड और मनुष्य की मूर्खता; और मैं ब्रह्माण्ड के बारे में इतना श्योर नहीं हूँ!
धर्म के बिना विज्ञान लंगड़ा है, विज्ञान के बिना धर्म अंधा है।
प्रकृति में गहराई तक देखें और तब आप सब कुछ बेहतर समझ पाएँगे।
स्वभाव की कमजोरी चरित्र की कमजोरी बन जाती है।
बुद्धि का सही संकेत ज्ञान नहीं बल्कि कल्पनाशीलता है।
बेवकूफी और निपुणता में यही फ़र्क होता है कि निपुणता की सीमाएँ होती हैं।
यदि आप प्रसन्नतापूर्वक जीना चाहते हो तो जीवन को किसी व्यक्ति या वस्तु के बजाय एक लक्ष्य पर केंद्रित करो।
यदि मानव जाति को जीवित रखना है तो हमें बिलकुल नयी सोच की आवश्यकता होगी।
यह खतरनाक रूप से साफ़ दिख रहा है कि हमारी तकनीक हमारी मानवता की हद से पार जा चुकी है।
शांति शक्ति के द्वारा नहीं बनाई रखी जा सकती; यह तो केवल आपसी सहमति से ही मिल पाएगी।