हिंदुस्तान के हिस्से में तो महज़ गुलामी है आई
हिंदुस्तान के हिस्से में तो महज़ गुलामी है आई,
अपने हों गद्दार तो कैसे चमकेगी किस्मत भाई.
गोरी आये गजनी आये लूट गए सारा सोना,
सोमनाथ को देख के लुटता सबकी आँखें भर आयीं.
डचों शकों ने और हूणों ने पहले तो हमको रौंदा,
अंग्रेजों ने सदियों हमसे अपनी गुलामी करवाई.
आज़ादी के दीवानों ने हिम्मत मगर नहीं हारी,
अपनी जान गंवाई लेकिन आज़ादी तो दिलवाई,
आज़ादी के जश्न में डूबे और नहीं कुछ भी सोचा,
गौर से देखा तो धोखा है मन में गुलामी है छाई.
इंग्लिश रानी बनी घूमती संसद में न्यायालय में,
हिंदी-पट्टी में ही हिंदी झेल रही कितनी रुसवाई.
कोई दल हो कोई गुट हो राज न कोई कर पाया,
कांग्रेस भी तभी चली जब पड़ी विदेशी परछाई.
जन्मा वारिस लन्दन का और शोर शराबा यहाँ हुआ,
टी.वी.पर चौबीसों घंटे बजी यहाँ पर शहनाई.
अमरीका से विनती करते अपने ये देशी नेता,
इसे न वीजा मिलने पाए गुजराती है दंगाई.
देशी चरखे को कबाड़ में फेंक दिया तरुणाई .
आयें और विदेशी लूटें लागू है ऍफ़.डी.आई.
सत्य अहिंसा और स्वदेशी बापू के ही साथ गए,
छोड़ दिया इन सबको सबने जैसे ही सत्ता पायी.
पहले थी अंग्रेज कंपनी अब अमरीकी आयेंगी,
हाय गुलामी फिर झेलेंगे कैसी है किस्मत पायी.
~ शरत चन्द्र श्रीवास्तव