सभी कुछ है तेरा दिया हुआ, सभी राहतें सभी कुलफतें – फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ शायरी
सभी कुछ है तेरा दिया हुआ, सभी राहतें सभी कुलफतें
कभी सोहबतें, कभी फुरक़तें, कभी दूरियां, कभी क़ुर्बतें
ये सुखन जो हम ने रक़म किये, ये हैं सब वरक़ तेरी याद के
कोई लम्हा सुबहे-विसाल का, कोई शामे-हिज़्र कि मुद्दतें
जो तुम्हारी मान ले नासेहा, तो रहेगा दामने-दिल में क्या
न किसी अदू की अदावतें, न किसी सनम कि मुरव्वतें
चलो आओ तुम को दिखायें हम, जो बचा है मक़तले-शहर में
ये मज़ार अहले-सफा के हैं, ये अहले-सिदक़ की तुर्बतें
मेरी जान आज का ग़म न कर, कि न जाने कातिबे-वक़्त ने
किसी अपने कल मे भी भूलकर, कहीं लिख रही हो मस्सरतें
सहल यूं राहे-ज़िन्दगी की है – फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ शायरी
सहल यूं राहे-ज़िन्दगी की है
हर कदम हमने आशिकी की है
हमने दिल में सजा लिये गुलशन
जब बहारों ने बेरुख़ी की है
ज़हर से धो लिये हैं होंठ अपने
लुत्फ़े-साकी ने जब कमी की है
तेरे कूचे में बादशाही की
जब से निकले गदागरी की है
बस वही सुरख़रू हुआ जिसने
बहरे-ख़ूं में शनावरी की है
“जो गुज़रते थे दाग़ पर सदमे”
अब वही कैफ़ीयत सभी की है
(लुत्फ़=आनंद, गदागरी=भिक्षा
माँगना, शनावरी =तैरना)