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क्यों बनाते हैं स्वस्तिक?

Shubh avsar par Swastika kyon banate hain?

किसी भी धार्मिक कार्यक्रम में या सामान्यतः किसी भी पूजा अर्चना में हम दीवार, थाली या जमीन पर स्वस्तिक का निशान बनाकर स्वस्ति वाचन करते हैं। किसी भी पूजन कार्य का शुभारंभ बिना स्वस्तिक को बनाए नहीं किया जाता। स्वस्तिक श्री गणेश का प्रतीक चिन्ह है। चूंकि शास्त्रों के अनुसार श्री गणेश प्रथम पूजनीय है, अतः स्वस्तिक का पूजन करने का अर्थ यही है कि हम श्री गणेश का पूजन कर उनसे विनती करते हैं कि हमारा पूजन कार्य सफल हो। साथ ही स्वस्तिक घनात्मक ऊर्जा का भी प्रतीक है।

Shubh avsar par Swastika kyon banate hainकिसी भी शुभ कार्य के दौरान स्वास्तिक को पूजना अति आवश्यक माना गया है। लेकिन असल में स्वस्तिक का यह चिन्ह क्या दर्शाता है, इसके पीछे ढेरों तथ्य हैं। स्वास्तिक में चार प्रकार की रेखाएं होती हैं, जिनका आकार एक समान होता है। मान्यता है कि यह रेखाएं चार दिशाओं – पूर्व, पश्चिम, उत्तर एवं दक्षिण की ओर इशारा करती हैं। लेकिन हिन्दू मान्यताओं के अनुसार यह रेखाएं चार वेदों – ऋग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद और सामवेद का प्रतीक हैं। कुछ यह भी मानते हैं कि यह चार रेखाएं सृष्टि के रचनाकार भगवान ब्रह्मा के चार सिरों को दर्शाती हैं।

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‘स्वस्तिक’ का अर्थ है – क्षेम, मंगल इत्यादि प्रकार की शुभता एवं ‘क’ अर्थात कारक या करने वाला। इसलिए देवता का तेज शुभ करनेवाला – स्वस्तिक करने वाला है और उसकी गति सिद्ध चिन्ह ‘स्वस्तिक’ कहा गया है।

स्वास्तिक का प्रयोग शुद्ध, पवित्र एवं सही ढंग से उचित स्थान पर करना चाहिए। शौचालय एवं गन्दे स्थानों पर इसका प्रयोग वर्जित है। ऐसा करने वाले की बुद्धि एवं विवेक समाप्त हो जाता है। दरिद्रता, तनाव एवं रोग एवं क्लेश में वृद्धि होती है। स्वास्तिक की आकृति श्रीगणेश की प्रतीक है और विष्णु जी एवं सूर्यदेव का आसन मानी जाती है। इसे भारतीय संस्कृति में विशेष स्थान प्राप्त है। प्रत्येक मंगल व शुभ कार्य में इसे शामिल किया जाता है। इसका प्रयोग रसोईघर, तिजोरी, स्टोर, प्रवेशद्वार, मकान, दुकान, पूजास्थल एवं कार्यालय में किया जाता है। यह तनाव, रोग, क्लेश, निर्धनता एवं शत्रुता से मुक्ति दिलाता है।

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स्वस्तिक रंग लाल क्यों?
भारतीय संस्कृति में लाल रंग का सर्वाधिक महत्व है और मांगलिक कार्यों में इसका प्रयोग सिन्दूर, रोली या कुंकुम के रूप में किया जाता है। सभी देवताओं की प्रतिमा पर रोली का टीका लगाया जाता है। लाल रंग शौर्य एवं विजय का प्रतीक है। लाल टीका तेजस्विता, पराक्रम, गौरव और यश का प्रतीक माना गया है। लाल रंग प्रेम, रोमांच व साहस को दर्शाता है। यह रंग लोगों के शारीरिक व मानसिक स्तर को शीघ्र प्रभावित करता है। यह रंग शक्तिशाली व मौलिक है। यह रंग मंगल ग्रह का है जो स्वयं ही साहस, पराक्रम, बल व शक्ति का प्रतीक है। लाल रंग से ही केसरिया, गुलाबी, मैहरुन और अन्य रंग बनाए जाते हैं। इन सब तथ्यों से प्रमाणित होता है कि स्वास्तिक लाल रंग से ही अंकित किया जाना चाहिए या बनाना चाहिए।
स्वस्तिक का उपयोग
स्वास्तिक बनाने के लिए धन चिन्ह बनाकर उसकी चारों भुजाओं के कोने से समकोण बनाने वाली एक रेखा दाहिनी ओर खींचने से स्वास्तिक बन जाता है। रेखा खींचने का कार्य ऊपरी भुजा से प्रारम्भ करना चाहिए। इसमें दक्षिणवर्त्ती गति होती है। सदैव कुंकुम, सिन्दूर व अष्टगंध से ही अंकित करना चाहिए। ऊं चिन्ह से भी अधिक सकारात्मक ऊर्जा स्वास्तिक में है। ऊं एवं स्वास्तिक का सामूहिक प्रयोग नकारात्मक ऊर्जा को शीघ्रता से दूर करता है।

भवन, कार्यालय, दूकान या फैक्ट्री या कार्य स्थल के मुख्य द्वार के दोनों ओर स्वास्तिक अंकित करने से सकारात्मक ऊर्जा बढ़ती है। पूजा स्थल, तिजोरी, कैश बॉक्स, अलमारी में भी स्वास्तिक स्थापित करना चाहिए। स्वास्तिक को धन-देवी लक्ष्मी का प्रतीक माना जाता है। इसकी चारों दिशाओं के अधिपति देवताओं, अग्नि, इन्द्र, वरूण एवं सोम की पहूजा हेतु एवं सप्तऋषियों के आशीर्वाद को प्राप्त करने में प्रयोग किया जाता है। इसके अपमान व गलत प्रयोग से बचना चाहिए। स्वास्तिक के प्रयोग से धनवृद्धि, गृहशान्ति, रोग निवारण, वास्तुदोष निवारण, भौतिक कामनाओं की पूर्ति, तनाव, अनिद्रा व चिन्ता से मुक्ति भी दिलाता है।

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जातक की कुण्डली बनाते समय या कोई शुभ कार्य करते समय सर्वप्रथम स्वास्तिक को ही अंकित किया जाता है। ज्योतिष में इस मांगलिक चिन्ह को प्रतिष्ठा, मान-सम्मान, सफलता व उन्नति का प्रतीक माना गया है। मुख्य द्वार पर 6.5 इंच का स्वास्तिक बनाकर लगाने से से अनेक प्रकार के वास्तु दोष दूर हो जाते हैं। हल्दी से अंकित स्वास्तिक शत्राु शमन करता है। स्वास्तिक 27नक्षत्रों का सन्तुलित करके सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करता है। यह चिन्ह नकारात्मक ऊर्जा का सकारात्मक ऊर्जा में परिवर्तित करता है। इसका भरपूर प्रयोग अमंगल व बाधाओं से मुक्ति दिलाता है।

ऐतिहासिक साक्ष्यों में स्वस्तिक का महत्व भरा पड़ा है। मोहन जोदड़ों, हड़प्पा संस्कृति, अशोक के शिला लेखों, रामायण, हरवंश पुराण महाभारत आदि में इसका अनेक बार उल्लेख मिलता है। दूसरे देशों में स्वस्तिक का प्रचार महात्मा बुद्ध की चरण पूजा से बढ़ा है। तिब्बती इसे अपने शरीर पर गुदवाते हैं तथा चीन में इसे दीर्घायु एवं कल्याण का प्रतीक माना जाता है। विभिन्न देशों की रीति-रिवाज के अनुसार पूजा पद्धति में परिवर्तन होता रहता है। सुख समृद्धि एवं रक्षित जीवन के लिए ही स्वस्तिक पूजा का विधान है।

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