Mandiron mein tali bajane ki parampara
सामान्यतः हम किसी भी मंदिर में आरती के समय सभी को ताली बजाते देखते हैं और खुद भी ताली बजाना शुरू कर देते हैं। ऐसे कई मौके होते हैं जब ताली बजाई जाती है। किसी समारोह में, स्कूल में, घर में आदि स्थानों पर जब भी कोई खुशी और उत्साह वाली बात होती है, हम उसका ताली बजाकर अभिवादन करते हैं।
क्या कभी आपने सोचा है ताली बजाते क्यों हैं? ताली बजाना एक व्यायाम ही है, ताली बजाने से हमारे शरीर में खिंचवा होता है, शरीर की मांसपेशियां एक्टिव हो जाती है। जोर – जारे से ताली बजाने से कुछ ही देर में एहसास होगा कि आपको पसीना आना शुरू हो गया और पूरे शरीर में एक उत्तेजना पैदा हो गई है। बस यही है व्यायाम।
हमारी हथेलियों में शरीर के अन्य अंगों की नसों के बिंदु होते हैं, जिन्हें एक्यूप्रेशर बिन्दु कहते हैं। ताली बजाने से इन बिंदुओं पर जोर पड़ता है और संबंधित अंगों में रक्त संचार बढ़ता है, जिससे वे बेहतर काम करने लगते हैं। एक्युप्रेशर पद्धति में ताली बजाना सबसे ज्यादा लाभदायक माना गया है।
ताली बजाने की परंपरा पुरातन काल से चली आ रही है। शायद ऋषि मुनियों को पता था कि लोगों के पास व्यायाम करने तक का समय नहीं बचेगा। इसी बात को ध्यान में रखते हुए उन्होंने मंदिरों में ताली बजाने की परंपरा शुरू की ताकि कुछ देर ही सही पर हम व्यायाम कर सकें।
ताली के लाभ (Tali bajane ke labh)
ताली में बाएं हाथ की हथेली पर दाएं हाथ की चारों अंगुलियों को एक साथ तेज दबाव के साथ इस प्रकार मारा जाता है कि दबाव पूरा हो और आवाज अच्छी आये।
इस प्रकार की ताली से बाएं हथेली के फेफड़े, लीवर, पित्ताशय, गुर्दे, छोटी आंत व बड़ी आंत तथा दाएं हाथ की अंगुली के साइनस के दबाव बिंदु दबते हैं। इससे इन अंगों तक खून का प्रवाह तीव्र होने लगता है। इस तरह की ताली को तब तक बजाना चाहिए, जब तक हथेली लाल न हो जाए।
इस प्रकार की ताली बजाने से कब्ज, एसिडिटी, मूत्र, संक्रमण, खून की कमी व श्वांस लेने में तकलीफ जैसे रोगों में लाभ पहुंचता है।