Shareer par Bhasm (Bhabhut) kyon lagate hain?
भगवान शिव से लेकर कई साधु संन्यासियों को हमने शरीर पर भस्म रमाते देखा है। भस्म रमाने से क्या भगवान मिलते हैं? संन्यास केवल भस्म रमाने से ही सिद्ध होता है या फिर इसकी पीछे कोई और कारण है? वैज्ञानिक नजरिए से देखा जाए तो इसका कारण बहुत सीधा सा है। भस्म शरीर पर आवरण का काम करती है। यह कपड़ों जितनी ही उपयोगी होती है। भस्म बारीक, लेकिन कठोर होती है, जो हमारे शरीर की त्वचा के उन रोम छिद्रों को भर देती है, जिससे हम सर्दी या गर्मी महसूस करते हैं।
भस्म संन्यासियों को सर्दी में गर्मी और गर्मी में ठंडक का अहसास दिलाती है। इस कारण संन्यास में संत अपने शरीर पर लगाते हैं। अगर दार्शनिक पक्ष से देखें तो संन्यास का अर्थ है – संसार से अलग परमात्मा और प्रकृति के सानिध्य में रहना। संसारी चीजों को छोड़कर प्राकृतिक साधनों का उपयोग करना। ये भस्म उन्हीं प्राकृतिक साधनों में शुमार है, जो कहीं भी आसानी से उपलब्ध हो सकती है।
शरीर पर भस्म लपेटने का दार्शनिक अर्थ यही है कि यह शरीर जिस पर हम गर्व करते हैं, जिसकी सुरक्षा का इतना इंतजाम करते हैं. इस भस्म के समान हो जाएगा. शरीर क्षणभंगुर है और आत्मा अनंत. शरीर की गति प्राण रहने तक ही है. इसके बाद यह श्री हीन, कांतिहीन हो जाता है.
साधु भस्म लगाकर हमें यह संदेश देते हैं कि यह हमारा यह शरीर नश्वर है और एक दिन इसी भस्म की तरह मिट्टी में विलिन हो जाएगा। अत: हमें इस नश्वर शरीर पर गर्व नहीं करना चाहिए। कोई व्यक्ति कितना भी सुंदर क्यों न हो, मृत्यु के बाद उसका शरीर इसी तरह भस्म बन जाएगा। अत: हमें किसी भी प्रकार का घमंड नहीं करना चाहिए।