पढ़ें कैसे चेन्नई के एक छोटे से गाँव के रहने वाले प्रेम गणपति ने डोसा बेच कर अपनी तकदीर लिख डाली! महज 1000 रूपये से शुरू किया गया कारोबार आज ३० करोड़ की कंपनी बन चुकी है! मुंबई के डोसा प्लाजा के संस्थापक प्रेम गणपति की एक अद्भुत कहानी !
मैं एक दसवी पास एक लड़का था जिसके पास कोई खास हुनर नहीं था! मुंबई की चकाचौंध से आकर्षित होकर वहाँ गया ! जहां बड़े ही आश्चर्यजनक तरीके से मैंने अपने जीवन की काया ही पलट दी!
मैं तमिलनाडु के नागलपुरम गाँव का रहने वाला हूँ! बचपन में मैंने भी कॉलेज जा कर पढाई करने के सपने देखे थे पर घर वालो की आर्थिक समस्याओं की वजह से दसवी से आगे पढाई नहीं कर सका! अपने माता पिता और ७ भाई बहनों के जीवन यापन के लिए मैं चेन्नई चला गया जहाँ छोटे मोटे काम कर के महीने के 250 रुपए घर भेज पाता था !
एक दिन एक परिचित ने मुझे मुंबई में 1200 मासिक की एक नौकरी के बारे में बताया! मुझे पता था की मेरे माता पता मुझे मुंबई जाने नहीं देंगे सो मैं उन्हें बताये बिना ही मुंबई के लिए निकल गया ! सन 1990 की बात है, तब मैं सिर्फ 17 साल का था !
जिस परिचित ने मुझे मुंबई बुलाया था उसी ने मेरे बचत के 200 रूपये लूट लिए! मैं बांद्रा स्टेशन के सामने पड़ा हुआ था और मेरे पास अब कुछ नहीं बचा था! न पैसे और न ही उम्मीद !
मुझे न तो वहाँ की भाषा आती थी और न ही शहर के बारे में कुछ पता था ! वापस घर भी नहीं लौट सकता था क्यूकी पॉकेट में एक फूटी कौड़ी भी नहीं थी ! फिर मैंने निश्चय किया कि मैं यहीं मुंबई में ही रुकुंगा और अपनी किस्मत आजमाऊंगा चाहे अब जो करना पड़े!
मैंने माहिम के पास एक बेकरी की दूकान में बर्तन धोने की नौकरी ज्वाइन करी जहां से मुझे हर महीने १५० रुपए मिलते थे! अच्छी बात ये थी की मैं वही बेकरी की दुकान में ही रात को सो लेता था! अगले दो सालो तक मैंने छोटे मोटे काम किये. अलग अलग रेस्टोरेंट्स म्य होटलों में जा कर पार्ट टाइम नौकरी की ! इस बीच मैंने सिर्फ और सिर्फ पैसे बचाने पर ध्यान केंद्रित किया !
सन 1992 तक मेरे पास काफी बचत हो गयी थि. तब मैंने अपने खुद का धंधा शुरू करने का सोचा ! मुझे याद है की मैंने 150 रुपए का ठेला और 1000 रूपये के बर्तन खरीद कर इडली डोसा बना कर बेचने का धंधा शुरू किया! वाशी रेलवे स्टेशन के सामने वाली गली में मैंने अपना ठेला लगाया जहाँ से मैंने अपने फ़ूड बिज़नेस की शुरुआत की!
उसी साल मैंने अपने दो भाइयों मुरुगन और परमशिवन को गाव से मुंबई अपनी मदद करने के लिए बुलाया! हमने अच्छा खाना बनाना शुरू किया ! हमारे इडली और दोसे में हमने साफ़ सफाई का बहुत ध्यान रखा! मेरे गांव की रेसिपी काम कर गयी. ग्राहको को हमारी इडली और डोसा काफी पसंद आने लगा !
साल के अंत तक हमारा धंधा चल पड़ा था और हमारा मासिक मुनाफा 20,000 से भी ज्यादा था! हमने अब एक दूकान किराये पर ले ली जहाँ हम इडली और डोसा के लिए मसाला बनाया करते थे ! हालाँकि अब भी हमारे ठेले के सीज़ हो जाने का खतरा बना हुआ था! नगर निगम के अधिकारियों का एक कदम हमारे पूरे धंधे को बर्बाद कर देता!
अंततः १९९७ में हमने एक दूकान किराये लिया जिसका नाम रखा “प्रेम सागर डोसा प्लेस”! यह एक बड़ी कामयाबी थी !
हमारे डोसा प्लाजा में एक बड़ी संख्या में कॉलेज के छात्र आते थे जिनसे मेरी जान पहचान हो गयी और उन्होंने मुझे इंटरनेट सिखाया जहाँ से मैंने डोसा बनाने की और भी विधियां सीखी और अलग अलग तरह के प्रयोग करे ! हमने पहले ही साल २६ अलग अलग किस्म के डोसे बनाने शुरू कर दिए !
सन २००२ तक हमारे यहां १०५ अलग अलग किस्म के डोसे बनने लगे ! हमारी लोकप्रियता बढ़ती जा रही थी !
अब मेरा इरादा किसी बड़े मॉल में डोसा प्लेस खोलने की थी ! शुरूआती परेशानियों के बाद हमे इसमें भी कामयाबी मिल ही गयी! शहर के एक मॉल में हमारा एक आउटलेट खुल चूका था!
हमें खूब लोकप्रियता मिली और अब हमारे पास अलग अलग लोगो के फ्रेंचाइजी के प्रस्ताव आ रहे थे ! हमने 2003 में अपना पहला फ्रेंचाइजी आउटलेट ठाणे के वंडर मॉल में खोला!
अगले ३-४ सालों में हमने बहुत प्रगति की! आज डोसा प्लाजा के ३ आउटलेट न्यूज़ीलैंड में और २ दुबई में है जो मेरे लिए गर्व की बात है ! आज डोसा प्लाजा के कुल ४३ आउटलेट्स चलते हैं जहां से हमारा कुल मुनाफा 30 करोड़ से भी ज्यादा है
जिस काम को मात्र 1000 रुपए की एक छोटी सी पूँजी से शुरू किया था और वो 30 करोड़ से भी ज्यादा का कारोबार है !
jabardast story hai yaar. bohot motivational.