नई दिल्ली.बचपन में ही मां को खो दिया. जैसे इतना दर्द काफ़ी न हो. फिर वो पल भी आया, जिसने ज़ेहन की दीवारों को कभी न भूलने वाले ज़ख़्मों से पाट दिया.
1947 के उसी अगस्त महीने में जब गुलज़ार का जन्मदिन होता है, बंटवारे का खंजर दिल में गहरा उतर गया. अपने कई इंटरव्यू में गुलज़ार ने ख़ुद कहा है कि जिस एक घटना का उनकी ज़िंदगी में सबसे ज़्यादा असर रहा तो वो बंटवारा था.
पार्टिशन के बाद कुछ वक़्त अमृतसर और दिल्ली में गुज़रा. सच है जिसने बंटवारे को भोगा वही उसका दार्द समझता भी.खुद बंटवारे का भयावह मंजर देख चुके गुलज़ार ने अक्सर इस मुददे पर अपनी कलम चलाई है.
इसी मुद्दे पर उनकी रचनाओं का एक संग्रह एक नई किताब की शक्ल में आया है.’फुटप्रिंट्स ऑन जीरो लाइन: राइटिंग्स ऑन द पार्टिशन’ नामक यह किताब सिर्फ वर्ष 1947 की घटनाओं तक नहीं रूकती. यह दिखाती है कि किस तरह वे घटनाएं आज भी हमारी जिंदगियों पर असर डालती हैं.
इस अवसर पर प्रकाशक हार्परकॉलिन्स इंडिया ने कहा कि बंटवारा एक ऐसा मुद्दा है, जिसपर गुलजार ने बार-बार लिखा है. एचसीआई के बयान में कहा गया, यह देश के इतिहास की एक भयावह घटना पर हमारे सर्वश्रेष्ठ समकालीन लेखकों में से एक लेखक की कृतियों का एक संग्रह मात्र नहीं है.
यह हमें याद दिलाता है कि जो लोग अतीत की गलतियों को भूल जाते हैं, वे अकसर उसे दोहराते हैं. रक्षंदा जलील द्वारा अनूदित यह संग्रह भारत की आजादी के 70 साल की कथा को बयां करता है.
भारतीय साहित्य और शायरी के क्षेत्र में एक अहम मुकाम रखने वाले गुलज़ार ने बहुत सी कविताएं और लघु कहानी संग्रह लिखे हैं. वह रवींद्रनाथ टैगोर की कविताओं- बागबान और निंदिया चोर के अनुवाद भी प्रकाशित कर चुके हैं.
गुलज़ार को साहित्य अकादमी पुरस्कार और पद्म भूषण ने नवाजा जा चुका है.वर्ष 2008 में उन्हें स्लमडॉग मिलेनियर में उनके गीत जय हो के लिए ऑस्कर दिया गया। वर्ष 2014 में उन्हें दादासाहेब फाल्के से भी नवाजा जा चुका है.