नई दिल्ली: देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को रोकने की पहली कोशिश पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने संविधान के पहले संशोधन के ज़रिए की थी। यह दावा वरिष्ठ पत्रकार अनंत विजय ने साहित्य अकादमी द्वारा ‘मेरी नज़र में स्वतंत्रता का मतलब’ विषय पर आयोजित सेमिनार में किया। स्वतंत्रता की 70 वीं वर्षगांठ के अवसर पर आयोजित इस संगोष्ठी में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित अंग्रेजी के मशहूर कवि कैकई दारूवाला, भारतीय ज्ञान पीठ के निदेशक लीलाधर मंडलोई, वरिष्ठ कवि प्रयाग शुक्ल, प्रसिद्ध कथाकार चित्रा मुदगल, संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित प्रतिष्ठित नाटककार असगर वजाहत, दलित लेखक शरण कुमार लम्बाले आदि ने भाग लिया।
टीवी पत्रकारिता से जुड़े रहे श्री विजय ने कहा कि पंडित नेहरू जब प्रधानमंत्री थे तो दो पत्रिका ऑर्गनाइजर और क्रॉस रोड उन पर बहुत ज्यादा आलोचना करते थे तो उनके खिलाफ मुकदमा सुप्रीम कोर्ट तक गया था। इसका विरोध केवल एक व्यक्ति श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने किया था लेकिन इस बात के लिए मुखर्जी को कभी याद नहीं किया गया और इस बात को दबा दिया गया।
उन्होंने कहा कि आजादी के बाद देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर रोक लगाने की चार बड़ी कोशिशें हुईं और यह काम कांग्रेस ने किया। दूसरी कोशिश इंदिरा गांधी ने आपातकाल में, तीसरी कोशिश राजीव गांधी ने प्रेस बिल के रूप में वे असफल रहे, चौथी कोशिश मनमोहन सिंह ने केबल टीवी बिल के रूप में किया जाता है जो एक एसडीएम एक टीवी चैनल बंद करा सकता था।
देश के बुद्धिजीवी वर्ग ने 70 साल में इन सवालों को नहीं उठाया और पुरस्कार नहीं लौटाए लेकिन आज वे आपात जैसी स्थिति होने की बात जरूर कहते हैं।