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बादशाह बहादुर शाह जफर की मजार पर जाएंगे मोदी

यंगूनवासी  शाह को संत मानते हैं

अटलजी और कलाम भी गए थे 

शाह की कब्र को भारत लाने की मांग

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने म्यांमार दौरे के दौरान गुरुवार को मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर की मजार पर जाएंगे. बहादुर शाह जफर की स्वतंत्रता संग्राम में अहम भूमिका रही थी. अंग्रेज़ों ने उनके सभी बेटों की गोली मारकर हत्या कर दी थी और बूढ़े बादशाह को क़ैद करके यंगून भेज दिया था.काफी समय से शाह की कब्र को भारत लाने की मांग चल रही है. मोदी से पहले पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपयी और पूर्व राष्ट्रपति एपीजे कलाम भी जा चुके हैं.अटल जी ने बहादुर शाह ज़फ़र की कब्र का जीर्णोद्धार भी कराया और इसे वे भारत लाना चाहते थे.

1857 में आंदोलन की अगुवाई करने वाले जफर को आंदोलन कुचलने के बाद ब्रिटिश साम्राज्य ने उन्हें 1858 में म्यांमार भेज दिया था. इस दौरान वे अपनी पत्नी जीनत महल और परिवार के कुछ अन्य सदस्यों के साथ रह रहे थे. 7 नवम्बर, 1862 को उनका निधन हो गया. यहीं पर उनकी मजार बनाई गई. म्यांमार के स्थानीय लोगों ने उन्हें संत की उपाधि भी दी.उनकी कब्र के बगल में उनकी पत्नी बेगम जीनत महल और बेटी रौनक जमानी बेगम की कब्र है। 1991 में एक स्मारक कक्ष की आधारशिला रखने के लिए की गई खुदाई के दौरान एक भूमिगत कब्र का पता चला। माना जाता है कि यह अंतिम मुगल सम्राट की वास्तविक कब्र है।

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भारत के अंतिम मुगल सम्राट बहादुर शाह जफर का शव 1991 तक एक अज्ञात कब्र में दफन पड़ा हुआ था. बाद में एक खुदाई के दौरान इस बादशाह के कब्र के बारे में पता चला. उनके चाहने वाले मकबरे के दर्शन के लिए आते रहते हैं। 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के बाद ब्रिटिश हुकूमत ने बहादुर शाह जफर को देश से निष्कासित कर म्यांमार (तत्कालीन बर्मा) भेज दिया था। वहां रंगून (अब यंगून) में 87 वर्ष की अवस्था में उनका निधन हो गया था। 1857 के विद्रोह के बाद जफर दिल्ली में हुमायू के मकबरे में छिप गए थे, जहां से उन्हें पकड़ लिया गया था।

बहादुर शाह ज़फर (1775-1862) भारत में मुग़ल साम्राज्य के आखिरी शहंशाह थे और उर्दू के माने हुए शायर थे। बहादुर शाह जफर सिर्फ एक देशभक्त मुगल बादशाह ही नहीं बल्कि उर्दू के मशहूर शायर भी थे। उन्होंने कई ग़ज़लें लिखीं, जिनमें से काफी अंग्रेजों के खिलाफ बगावत के समय मची उथल-पुथल के दौरान खो गई या नष्ट हो गई। उनकी ये पंक्तियाँ आज भी लोगों ज़बान पर रहती हैं…’ कितना है बदनसीब ‘ज़फ़र’ दफ़्न के लिए/ दो गज़ ज़मीं भी न मिली कू-ए-यार में.’

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