एक बार एक भालू बहुत प्रसन्न मुद्रा में जंगल में घूम रहा था। उसे जिस भोजन की तलाश थी, वह था शहद। भालू को यह भी मालूम था कि उसे शहद कहां मिलेगा। उसने अपना थूथन उठाया, कुछ सूंघा और फिर एक ओर चल पड़ा। परंतु जैसे ही वह शहद वाले स्थान पर पहुंचा, एक मधुमक्खी उड़ती हुई आई और उसने भालू को डंक मार दिया। इससे भालू क्रोधित हो उठा और उसने पेड़ पर चढ़कर एक ही थूथन में शहद का छत्ता गिरा दिया।
मधुमक्खियां शहद इकट्टा करने में जुटी हुई थी। इस अचानक हमले से वे भौचक्की रह गई। मगर जल्द ही उन्हें भालू की करतूत का पता चल गया। फिर क्या था वे हजारों की संख्या में भालू पर टूट पड़ीं और उसे डंक मारने लगीं। भालू बेचारा अधमरा-सा हो गया। वह अपनी मूर्खता पर पष्चाताप करने लगा। जब मधुमक्खियां चली गई तो वह खुद को धिक्कारने लगा- ”मैं भी कितना मूर्ख था। निर्दोषों को दण्ड दे रहा था। एक मधुमक्खी के काटने पर मैंने अपना क्रोध पूरे छत्ते पर निकाला। यदि मैं चुपचाप आगे बढ़ जाता तो मेरे शरीर में हजारों डंक नहीं चुभते।“
शिक्षा – एकता से बड़ी शक्ति को भी परास्त किया जा सकता है।