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सुमित्रा महाजन ‘वंदे मातरम्’ में क्यों बदलाव चाहती हैं

इंदौर. एक कार्यक्रम में लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन मौजूद थीं और वहीँ एक गायिका ने संपूर्ण वंदे मातरम्.. गाया तो महाजन ने अपने भाषण में कहा कि अब षषष्ठीकोटि कंठ के बजाय कोटि-कोटि कंठ शब्द का इस्तेमाल होना चाहिए.

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लोकसभा स्पीकर ने कहा कि जब ‘वन्देमातरम’ गीत लिखा गया तब भारत की आबादी ६ करोड़ रही होगी लेकिन आज हम एक अरब से ज़्यादा हैं उनका आशय आज के भारत की आबादी से था.

लोकसभा स्पीकर के भाषण के बाद गायिका ने कहा आइन्दा जब भी वे पूरा ‘वन्देमातरम’ गाएँगीं तो इन पंक्तियों का ध्यान रखेंगीं. उल्लेखनीय है कि अभी भी कई आयोजनों के आरम्भ में राष्ट्रगीत ‘वंदे मातरम्..’ भी गाया जाता है.

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लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन का कहना है, ‘जब भी संपूर्ण वंदे मातरम् गाया जाता है तो त्रुटि होती है. अब हम षषष्ठीकोटि (छह करोड़) के आगे निकल गए हैं. कोटि-कोटि हो गए हैं, इसलिए गाते समय भी कोटि-कोटि शब्द बोला जाना चाहिए.

जिस भारत मां के लिए गा रहे हैं, अब उसका आज का खाका भी देखने की जरूरत है. इसलिए ‘षषष्ठीकोटि’ शब्द समसामयिक नहीं रहा.इसे लेकर अकसर विवाद भी उठते रहे हैं.वर्ष 1905 में वाराणसी में हुए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन में वंदे मातरम् गाया गया था.

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लोकसभा स्पीकर ने राष्ट्रगीत के कुछ शब्दों में बदलाव का जिक्र कर फिर ध्यान खींचा है.वर्ष 1882 में प्रकाशित बंकिमचंद्र के प्रसिद्ध उपन्यास आनंदमठ में वंदे मातरम् रचना शामिल थी.

गीत जब लिखा गया था तो देश की आबादी छह करोड़ थी, इसलिए षषष्ठीकोटि कंठ कल-कल निनाद कराले, (छह करोड़ कंठों की जोशीली आवाज) द्विषषष्ठि कोटि-भुजै धृत खरकरवाले (12 करोड़ भुजाओं में तलवारों को धारण किए हुए) लाइन में तब की आबादी का जिक्र किया गया था.

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