अहमद फ़राज़ शायरी
तुझ से मिल कर भी कुछ ख़फ़ा हैं हम
अहमद फ़राज़ शायरी
तुझ से मिल कर भी कुछ ख़फ़ा हैं हम
बेमुरव्वत नहीं तो क्या हैं हम
अहमद फ़राज़ शायरी
हम ग़मे-क़ारवाँ में बैठे थे
लोग समझे शिकस्ता-पा हैं हम
अहमद फ़राज़ शायरी
इस तरह से हमें रक़ीब मिले
जैसे मुद्दत के आश्ना हैं हम
अहमद फ़राज़ शायरी
राख हैं हम अगर ये आग बुझी
जुज़ ग़मे-दोस्त और क्या हैं हम
अहमद फ़राज़ शायरी
ख़ुद को सुनते हैं इस तरह जैसे
वक़्त की आख़िरी सदा हैं हम
अहमद फ़राज़ शायरी
क्यों ज़माने को दें ‘फ़राज़’ इल्ज़ाम
वो नहीं हैं तो बे-वफ़ा हैं हम
अहमद फ़राज़ शायरी
तुझे उदास किया ख़ुद भी सोग़वार हुए
एक और शायरी
अहमद फ़राज़ शायरी
तुझे उदास किया ख़ुद भी सोगवार हुए
हम आप अपनी महब्बत में शर्मसार हुए
अहमद फ़राज़ शायरी
बला की रौ थी नदीमाने-आबला-पा को
पलट के देखना चाहा कि ख़ुद ग़ुबार हुए
अहमद फ़राज़ शायरी
गिला उसी का किया जिससे तुझ पे हर्फ़ आया
वगरना यूँ तो सितम हम प’ बे-शुमार हुए
अहमद फ़राज़ शायरी
ये इंतकाम भी लेना था ज़िन्दगी को अभी
जो लोग दुश्मने-जाँ थे वो ग़मगुसार हुए
अहमद फ़राज़ शायरी
हज़ार बार किया तर्क़े-दोस्ती का ख़याल
मगर ‘फ़राज़’ पशेमाँ हरेक बार हुए