अहमद फ़राज़ शायरी

संगदिल है वो तो क्यूं इसका गिला मैंने किया

अहमद फ़राज़ शायरी

संगदिल है वो तो क्यूं इसका गिला मैंने किया जब कि खुद पत्थर को बुत, बुत को खुदा मैंने किया

अहमद फ़राज़ शायरी

कैसे नामानूस लफ़्ज़ों कि कहानी था वो शख्स उसको कितनी मुश्किलों से तर्जुमा मैंने किया

अहमद फ़राज़ शायरी

वो मेरी पहली मोहब्बत, वो मेरी पहली शिकस्त फिर तो पैमाने-वफ़ा सौ मर्तबा मैंने किया

अहमद फ़राज़ शायरी

हो सजावारे-सजा क्यों जब मुकद्दर में मेरे जो भी उस जाने-जहाँ ने लिख दिया, मैंने किया

अहमद फ़राज़ शायरी

वो ठहरता क्या कि गुजरा तक नहीं जिसके लिया घर तो घर, हर रास्ता, आरास्ता मैंने किया

अहमद फ़राज़ शायरी

मुझपे अपना जुर्म साबित हो न हो लेकिन मैंने लोग कहते हैं कि उसको बेवफ़ा मैंने किया

अहमद फ़राज़ शायरी

अब वो मंजर, ना वो चेहरे ही नजर आते हैं

एक ओर शायरी

अहमद फ़राज़ शायरी

अब वो मंजर, ना वो चेहरे ही नजर आते हैं मुझको मालूम ना था ख्वाब भी मर जाते हैं

एक ओर शायरी

अहमद फ़राज़ शायरी

जाने किस हाल में हम हैं कि हमें देख के सब एक पल के लिये रुकते हैं गुजर जाते हैं

एक ओर शायरी

अहमद फ़राज़ शायरी

साकिया तूने तो मयखाने का ये हाल किया रिन्द अब मोहतसिबे-शहर के गुण गाते हैं

एक ओर शायरी

अहमद फ़राज़ शायरी

ताना-ए-नशा ना दो सबको कि कुछ सोख्त-जाँ शिद्दते-तिश्नालबी से भी बहक जाते हैं

एक ओर शायरी

अहमद फ़राज़ शायरी

जैसे तजदीदे-तअल्लुक की भी रुत हो कोई ज़ख्म भरते हैं तो गम-ख्वार भी आ जाते हैं

एक ओर शायरी

अहमद फ़राज़ शायरी

एहतियात अहले-मोहब्बत कि इसी शहर में लोग गुल-बदस्त आते हैं और पा-ब-रसन जाते हैं

एक ओर शायरी