अहमद फ़राज़ शायरी

रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ

अहमद फ़राज़ शायरी

रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ

अहमद फ़राज़ शायरी

कुछ तो मेरे पिन्दार-ए-मुहब्बत का भरम रख तू भी तो कभी मुझको मनाने के लिए आ

अहमद फ़राज़ शायरी

पहले से मरासिम न सही फिर भी कभी तो रस्मे-रहे-दुनिया ही निभाने के लिए आ

अहमद फ़राज़ शायरी

किस-किस को बताएँगे जुदाई का सबब हम तू मुझ से ख़फा है तो ज़माने के लिए आ

अहमद फ़राज़ शायरी

इक उम्र से हूँ लज्ज़त-ए-गिरिया से भी महरूम ऐ राहत-ऐ-जाँ मुझको रुलाने के लिए आ

अहमद फ़राज़ शायरी

अब तक दिल-ऐ-ख़ुशफ़हम को तुझ से है उम्मीदें ये आखिरी शम्अ भी बुझाने के लिए आ

अहमद फ़राज़ शायरी

क़ुर्बतों में भी जुदाई के ज़माने माँगे

एक और शायरी  

अहमद फ़राज़ शायरी

क़ुर्बतों में भी जुदाई के ज़माने माँगे दिल वो बेमेह्र कि रोने के बहाने माँगे

एक और शायरी  

अहमद फ़राज़ शायरी

अपना ये हाल के जी हार चुके लुट भी चुके और मुहब्बत वही अन्दाज़ पुराने माँगे

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अहमद फ़राज़ शायरी

यही दिल था कि तरसता था मरासिम के लिए अब यही तर्के-तल्लुक़ के बहाने माँगे

एक और शायरी  

अहमद फ़राज़ शायरी

हम न होते तो किसी और के चर्चे होते खल्क़त-ए-शहर तो कहने को फ़साने माँगे

एक और शायरी  

अहमद फ़राज़ शायरी

ज़िन्दगी हम तेरे दाग़ों से रहे शर्मिन्दा और तू है कि सदा आइनेख़ाने माँगे

एक और शायरी  

अहमद फ़राज़ शायरी

दिल किसी हाल पे क़ाने ही नहीं जान-ए-"फ़राज़" मिल गये तुम भी तो क्या और न जाने माँगे

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