अहमद फ़राज़ शायरी

क्या ऐसे कम-सुख़न से कोई गुफ़्तगू करे

अहमद फ़राज़ शायरी

क्या ऐसे कम-सुख़न से कोई गुफ़्तगू करे जो मुस्तक़िल सुकूत से दिल को लहू करे

अहमद फ़राज़ शायरी

अब तो हमें भी तर्क-ए-मरासिम का दुख नहीं पर दिल ये चाहता है के आगाज़ तू करे

अहमद फ़राज़ शायरी

तेरे बग़ैर भी तो ग़नीमत है ज़िन्दगी खुद को गँवा के कौन तेरी जुस्तजू करे

अहमद फ़राज़ शायरी

अब तो ये आरज़ू है कि वो जख़्म खाइये ता-ज़िन्दगी ये दिल न कोई आरज़ू करे

अहमद फ़राज़ शायरी

तुझ को भुला के दिल है वो शर्मिंदा-ए-नज़र अब कोई हादिसा ही तेरे रु-ब-रू करे

अहमद फ़राज़ शायरी

चुपचाप अपनी आग में जलते रहो "फ़राज़" दुनिया तो अर्ज़े--हाल से बे-आबरू करे

अहमद फ़राज़ शायरी

हरेक बात न क्यों ज़ह्र-सी हमारी लगे

एक और शायरी  

अहमद फ़राज़ शायरी

हर एक बात न क्यूँ ज़ह्र-सी हमारी लगे कि हमको दस्ते-ज़माना से ज़ख़्म कारी लगे

अहमद फ़राज़ शायरी

उदासियाँ हों मुसलसल तो दिल नहीं रोता कभी-कभी हो तो ये क़ैफ़ियत भी प्यारी लगे

अहमद फ़राज़ शायरी

बज़ाहिर एक ही शब है फ़िराक़े-यार मगर कोई गुज़ारने बैठे तो उम्र सारी लगे

अहमद फ़राज़ शायरी

इलाज इस दर्दे-दिल-आश्ना का क्या कीजे कि तीर बन के जिसे हर्फ़े- ग़मगुसारी लगे

अहमद फ़राज़ शायरी

हमारे पास भी बैठो बस इतना चाहते हैं हमारे साथ तबीयत अगर तुम्हारी लगे

अहमद फ़राज़ शायरी

‘फ़राज़’ तेरे जुनूँ का ख़याल है वर्ना ये क्या ज़रूर कि वो सूरत सभी को प्यारी लगे