इब्न-ए-इंशा शायरी ग़ज़लें

किस को पार उतारा तुम ने किस को पार उतारोगे

इब्न-ए-इंशा शायरी ग़ज़लें

किस को पार उतारा तुम ने किस को पार उतारोगे मल्लाहो तुम परदेसी को बीच भँवर में मारोगे

इब्न-ए-इंशा शायरी ग़ज़लें

मुँह देखे की मीठी बातें सुनते इतनी उम्र हुई आँख से ओझल होते होते जी से हमें बिसारोगे

इब्न-ए-इंशा शायरी ग़ज़लें

आज तो हम को पागल कह लो पत्थर फेंको तंज़ करो इश्क़ की बाज़ी खेल नहीं है खेलोगे तो हारोगे

इब्न-ए-इंशा शायरी ग़ज़लें

अहल-ए-वफ़ा से तर्क-ए-तअ'ल्लुक़ कर लो पर इक बात कहें कल तुम इन को याद करोगे कल तुम इन्हें पुकारोगे

इब्न-ए-इंशा शायरी ग़ज़लें

उन से हम से प्यार का रिश्ता ऐ दिल छोड़ो भूल चुको वक़्त ने सब कुछ मेट दिया है अब क्या नक़्श उभारोगे

इब्न-ए-इंशा शायरी ग़ज़लें

'इंशा' को किसी सोच में डूबे दर पर बैठे देर हुई कब तक उस के बख़्त के बदले अपने बाल सँवारोगे

इब्न-ए-इंशा शायरी ग़ज़लें

और तो कोई बस न चलेगा हिज्र के दर्द के मारों का

एक और शायरी

इब्न-ए-इंशा शायरी ग़ज़लें

और तो कोई बस न चलेगा हिज्र के दर्द के मारों का सुब्ह का होना दूभर कर दें रस्ता रोक सितारों का

इब्न-ए-इंशा शायरी ग़ज़लें

झूटे सिक्कों में भी उठा देते हैं ये अक्सर सच्चा माल शक्लें देख के सौदे करना काम है इन बंजारों का

इब्न-ए-इंशा शायरी ग़ज़लें

अपनी ज़बाँ से कुछ न कहेंगे चुप ही रहेंगे आशिक़ लोग तुम से तो इतना हो सकता है पूछो हाल बेचारों का

इब्न-ए-इंशा शायरी ग़ज़लें

जिस जिप्सी का ज़िक्र है तुम से दिल को उसी की खोज रही यूँ तो हमारे शहर में अक्सर मेला लगा निगारों का

इब्न-ए-इंशा शायरी ग़ज़लें

एक ज़रा सी बात थी जिस का चर्चा पहुँचा गली गली हम गुमनामों ने फिर भी एहसान न माना यारों का

इब्न-ए-इंशा शायरी ग़ज़लें

दर्द का कहना चीख़ ही उठो दिल का कहना वज़्अ' निभाओ सब कुछ सहना चुप चुप रहना काम है इज़्ज़त-दारों का

इब्न-ए-इंशा शायरी ग़ज़लें

'इंशा' जी अब अजनबियों में चैन से बाक़ी उम्र कटे जिन की ख़ातिर बस्ती छोड़ी नाम न लो उन प्यारों का