फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ शायरी
हमीं से अपनी नवा हमकलाम होती रही
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ शायरी
हमीं से अपनी नवा हमकलाम होती रही
ये तेग़ अपने लहू में नियाम होती रही
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ शायरी
मुकाबिले-सफ़े-आदा जिसे किया आग़ाज़
वो जंग अपने ही दिल में तमाम होती रही
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ शायरी
कोई मसीहा न ईफ़ा-ए-अहद को पहुंचा
बहुत तलाश पसे-कत्ले-आम होती रही
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ शायरी
ये बरहमन का करम, वो अता-ए-शैख़े-हरम
कभी हयात कभी मय हराम होती रही
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ शायरी
जो कुछ भी बन न पड़ा, 'फ़ैज़' लुटके यारों से
तो रहज़नों से दुआ-ओ-सलाम होती रही
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ शायरी
न अब रकीब न नासेह न ग़मगुसार कोई
एक और शायरी
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ शायरी
न अब रकीब न नासेह न ग़मगुसार कोई
तुम आशना थे तो थीं आशनाईयां क्या-क्या
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ शायरी
जुदा थे हम तो मुयस्सर थीं कुरबतें कितनी
बहम हुए तो पड़ी हैं जुदाईयां क्या-क्या
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ शायरी
पहुंच के दर पर तिरे कितने मो'तबर ठहरे
अगरचे रह में हुईं जगहंसाईयां क्या-क्या
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ शायरी
हम-ऐसे सादा-दिलों की नियाज़मन्दी से
बुतों ने की हैं जहां में बुराईयां क्या-क्या
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ शायरी
सितम पे ख़ुश कभी लुतफ़ो-करम से रंजीदा
सिखाईं तुमने हमें कजअदाईयां क्या-क्या