अहमद फ़राज़ शायरी

हम तो यूँ ख़ुश थे कि इक तार गिरेबान में है

अहमद फ़राज़ शायरी

हम तो यूँ ख़ुश थे कि इक तार गिरेबान में है क्या ख़बर थी कि बहार उसके भी अरमान में है

अहमद फ़राज़ शायरी

एक ज़र्ब और भी ऐ ज़िन्दगी-ए-तेशा-ब-दस्त ! साँस लेने की सकत अब भी मेरी जान में है

अहमद फ़राज़ शायरी

मैं तुझे खो के भी ज़िंदा हूँ ये देखा तूने किस क़दर हौसला हारे हुए इन्सान में है

अहमद फ़राज़ शायरी

फ़ासले क़ुर्ब के शोले को हवा देते हैं मैं तेरे शहर से दूर और तू मेरे ध्यान में है

अहमद फ़राज़ शायरी

सरे-दीवार फ़रोज़ाँ है अभी एक चराग़ ऐ नसीमे-सहरी ! कुछ तिरे इम्कान में है

अहमद फ़राज़ शायरी

दिल धड़कने की सदा आती है गाहे-गाहे जैसे अब भी तेरी आवाज़ मिरे कान में है

अहमद फ़राज़ शायरी

ख़िल्क़ते-शहर के हर ज़ुल्म के बावस्फ़ ‘फ़राज़’ हाय वो हाथ कि अपने ही गिरेबान में है

अहमद फ़राज़ शायरी

ख़ामोश हो क्यों दादे-ज़फ़ा क्यूँ नहीं देते

एक और शायरी  

अहमद फ़राज़ शायरी

ख़ामोश हो क्यों दाद-ए-ज़फ़ा क्यूँ नहीं देते बिस्मिल हो तो क़ातिल को दुआ क्यूँ नहीं देते

अहमद फ़राज़ शायरी

वहशत का सबब रोज़न-ए-ज़िन्दाँ तो नहीं है मेहर-ओ-महो-ओ-अंजुम को बुझा क्यूँ नहीं देते

अहमद फ़राज़ शायरी

इक ये भी तो अन्दाज़-ए-इलाज-ए-ग़म-ए-जाँ है ऐ चारागरो ! दर्द बढ़ा क्यूँ नहीं देते

अहमद फ़राज़ शायरी

मुंसिफ़ हो अगर तुम तो कब इन्साफ़ करोगे मुजरिम हैं अगर हम तो सज़ा क्यूँ नहीं देते

अहमद फ़राज़ शायरी

रहज़न हो तो हाज़िर है मता-ए-दिल-ओ-जाँ भी रहबर हो तो मन्ज़िल का पता क्यूँ नहीं देते

अहमद फ़राज़ शायरी

क्या बीत गई अब के "फ़राज़" अहल-ए-चमन पर यारान-ए-क़फ़स मुझको सदा क्यूँ नहीं देते