अहमद फ़राज़ शायरी

दिल बहलता है कहाँ अंजुमो-महताब से भी

अहमद फ़राज़ शायरी

दिल बहलता है कहाँ अंजुमो-महताब से भी अब तो हम लोग गए दीद-ए-बेख़्वाब से भी

अहमद फ़राज़ शायरी

रो पड़ा हूँ तो कोई बात ही ऐसी होगी मैं कि वाक़िफ़ था तिरे हिज्र के आदाब से भी

अहमद फ़राज़ शायरी

कुछ तो इस आँख का शेवा है ख़फ़ा हो जाना और कुछ भूल हुई है दिले-बेताब से भी

अहमद फ़राज़ शायरी

ऐ समन्दर की हवा तेरा करम भी मालूम प्यास साहिल की तो बुझती नहीं सैलाब से भी

अहमद फ़राज़ शायरी

कुछ तो उस हुस्न को जाने है ज़माना सारा और कुछ बात चली है मिरे अहबाब से भी

अहमद फ़राज़ शायरी

दिल कभी ग़म के समुंदर का शनावर था ‘फ़राज़’ अब तो ख़ौफ़ आता है इक मौज-ए-पायाब से भी

अहमद फ़राज़ शायरी

वफ़ा के बाब में इल्ज़ामे-आशिक़ी न लिया

एक और शायरी  

अहमद फ़राज़ शायरी

वफ़ा के बाब में इल्ज़ामे-आशिक़ी न लिया कि तेरी बात की और तेरा नाम भी न लिया

अहमद फ़राज़ शायरी

ख़ुशा वो लोग कि महरूमे-इल्तिफ़ात रहे तिरे करम को ब-अंदाज़े-सादगी न लिया

अहमद फ़राज़ शायरी

तुम्हारे बाद कई हाथ दिल की सम्त बढ़े हज़ार शुक्र गिरेबाँ को हमने सी न लिया

अहमद फ़राज़ शायरी

तमाम मस्ती-ओ-तिश्नालबी के हंगामे किसी ने संग उठाया किसी ने मीना लिया

अहमद फ़राज़ शायरी

‘फ़राज़’ ज़ुल्म है इतनी ख़ुद एतमादी भी कि रात भी थी अँधेरी चराग़ भी न लिया