अहमद फ़राज़ शायरी
ऐसे चुप हैं कि ये मंज़िल भी कड़ी हो जैसे
अहमद फ़राज़ शायरी
ऐसे चुप हैं के ये मंज़िल भी कड़ी हो जैसे
तेरा मिलना भी जुदाई कि घड़ी हो जैसे
अहमद फ़राज़ शायरी
अपने ही साये से हर गाम लरज़ जाता हूँ
रास्ते में कोई दीवार खड़ी हो जैसे
अहमद फ़राज़ शायरी
मंज़िलें दूर भी हैं मंज़िलें नज़दीक भी हैं
अपने ही पावों में ज़ंजीर पड़ी हो जैसे
अहमद फ़राज़ शायरी
तेरे माथे की शिकन पहले भी देखी थी मगर
यह गिरह अब के मेरे दिल पे पड़ी हो जैसे
अहमद फ़राज़ शायरी
कितने नादान हैं तेरे भूलने वाले कि तुझे
याद करने के लिये उम्र पड़ी हो जैसे
अहमद फ़राज़ शायरी
आज दिल खोल के रोये हैं तो यूँ ख़ुश हैं "फ़राज़"
चंद लम्हों की ये राहत भी बड़ी हो जैसे
अहमद फ़राज़ शायरी
ज़ेरे-लब
एक और शायरी
अहमद फ़राज़ शायरी
किस बोझ से जिस्म टूटता है
इतना तो कड़ा सफ़र नहीं था
अहमद फ़राज़ शायरी
दो चार क़दम का फ़ासला क्या
फिर राह से बेख़बर नहीं था
अहमद फ़राज़ शायरी
लेकिन यह थकन यह लड़खड़ाहट
ये हाल तो उम्र-भर नहीं था
अहमद फ़राज़ शायरी
आग़ाज़े-सफ़र में जब चले थे
कब हमने कोई दिया जलाया
अहमद फ़राज़ शायरी
कब अहदे-वफ़ा की बात की थी
कब हमने कोई फ़रेब खाया
अहमद फ़राज़ शायरी
वो शाम,वो चाँदनी, वो ख़ुश्बू
मंज़िल का किसे ख़याल आया
अहमद फ़राज़ शायरी
तू मह्वे-सुख़न थी मुझसे लेकिन
मैं सोच के जाल बुन रहा था
अहमद फ़राज़ शायरी
मेरे लिए ज़िन्दगी तड़प थी
तेरे लिए ग़म भी क़हक़हा था
अहमद फ़राज़ शायरी
अब तुझसे बिछुड़ के सोचता हूँ
कुछ तूने कहा था क्या कहा था