अहमद फ़राज़ शायरी

अच्छा था अगर ज़ख़्म न भरते कोई दिन और

अहमद फ़राज़ शायरी

अच्छा था अगर ज़ख़्म न भरते कोई दिन और इस कू-ए- मलामत में गुज़रते कोई दिन और

अहमद फ़राज़ शायरी

रातों को तेरी याद के ख़ुर्शीद उभरते आँखों में सितारे-से उतरते कोई दिन और

अहमद फ़राज़ शायरी

हमने तुझे देखा तो किसी को भी न देखा ऐ काश! तिरे बाद गुज़रते कोई दिन और

अहमद फ़राज़ शायरी

राहत थी बहुत रंज में हम ग़म-तलबों को तुम और बिगड़ते तो सँवरते कोई दिन और

अहमद फ़राज़ शायरी

गो तर्के-तआल्लुक़ था मगर जाँ प’ बनी थी मरते जो तुझे याद न करते कोई दिन और

अहमद फ़राज़ शायरी

उस शहरे-तमन्ना से ‘फ़राज़’ आए ही क्यों थे ये हाल अगर था तो ठहरते कोई दिन और

अहमद फ़राज़ शायरी

तरस रहा हूँ मगर तू नज़र न आ मुझको

एक और शायरी  

अहमद फ़राज़ शायरी

तरस रहा हूँ मगर तू नज़र न आ मुझ को कि ख़ुद जुदा है तो मुझसे न कर जुदा मुझको

अहमद फ़राज़ शायरी

वो कँपकपाते हुए होंठ मेरे शाने पर वो ख़्वाब साँप की मानिंद डस गया मुझको

अहमद फ़राज़ शायरी

चटक उठा हूँ सुलगती चटान की सूरत पुकार अब तो मिरे देर-आश्ना मुझको

अहमद फ़राज़ शायरी

तुझे तराश के मैं सख़्त मुनफ़इल हूँ कि लोग तुझे सनम तो समझने लगे ख़ुदा मुझको

अहमद फ़राज़ शायरी

ये और बात कि अक्सर दमक उठा चेहरा कभी-कभी यही शोला बुझा गया मुझको

अहमद फ़राज़ शायरी

ये क़ुर्बतें ही तो वज्हे-फ़िराक़ ठहरी हैं बहुत अज़ीज़ है याराने-बेवफ़ा मुझको

अहमद फ़राज़ शायरी

सितम तो ये है कि ज़ालिम सुख़न-शनास नहीं वो एक शख़्स कि शाइर बना गया मुझको

अहमद फ़राज़ शायरी

उसे ‘फ़राज़’ अगर दुख न था बिछड़ने का तो क्यों वो दूर तलक देखता रहा मुझको