अहमद फ़राज़ शायरी

अच्छा था अगर ज़ख्म न भरते कोई दिन और

अहमद फ़राज़ शायरी

अच्छा था अगर ज़ख्म न भरते कोई दिन और उस कू-ए-मलामत में गुजरते कोई दिन और

अहमद फ़राज़ शायरी

रातों के तेरी यादों के खुर्शीद उभरते आँखों में सितारे से उभरते कोई दिन और

अहमद फ़राज़ शायरी

हमने तुझे देखा तो किसी और को ना देखा ए काश तेरे बाद गुजरते कोई दिन और

अहमद फ़राज़ शायरी

राहत थी बहुत रंज में हम गमतलबों को तुम और बिगड़ते तो संवरते कोई दिन और

अहमद फ़राज़ शायरी

गो तर्के-तअल्लुक था मगर जाँ पे बनी थी मरते जो तुझे याद ना करते कोई दिन और

अहमद फ़राज़ शायरी

उस शहरे-तमन्ना से फ़राज़ आये ही क्यों थे ये हाल अगर था तो ठहरते कोई दिन और

अहमद फ़राज़ शायरी

जो चल सको तो कोई ऐसी चाल चल जाना

एक ओर शायरी

अहमद फ़राज़ शायरी

जो चल सको तो कोई ऐसी चाल चल जाना मुझे गुमाँ भी ना हो और तुम बदल जाना

अहमद फ़राज़ शायरी

ये शोलगी हो बदन की तो क्या किया जाये सो लाजमी है तेरे पैरहन का जल जाना

अहमद फ़राज़ शायरी

तुम्हीं करो कोई दरमाँ, ये वक्त आ पहुँचा कि अब तो चारागरों का भी हाथ मल जाना

अहमद फ़राज़ शायरी

अभी अभी जो जुदाई की शाम आई थी हमें अजीब लगा ज़िन्दगी का ढल जाना

अहमद फ़राज़ शायरी

सजी सजाई हुई मौत ज़िन्दगी तो नहीं मुअर्रिखों ने मकाबिर को भी महल जाना

अहमद फ़राज़ शायरी

ये क्या कि तू भी इसी साअते-जवाल में है कि जिस तरह है सभी सूरजों को ढल जाना

अहमद फ़राज़ शायरी

हर इक इश्क के बाद और उसके इश्क के बाद फ़राज़ इतना आसाँ भी ना था संभल जाना