इब्न-ए-इंशा शायरी ग़ज़लें

हम उन से अगर मिल बैठे हैं क्या दोश हमारा होता है

इब्न-ए-इंशा शायरी ग़ज़लें

हम उन से अगर मिल बैठे हैं क्या दोश हमारा होता है कुछ अपनी जसारत होती है कुछ उन का इशारा होता है

इब्न-ए-इंशा शायरी ग़ज़लें

कटने लगीं रातें आँखों में देखा नहीं पलकों पर अक्सर या शाम-ए-ग़रीबाँ का जुगनू या सुब्ह का तारा होता है

इब्न-ए-इंशा शायरी ग़ज़लें

हम दिल को लिए हर देस फिरे इस जिंस के गाहक मिल न सके ऐ बंजारो हम लोग चले हम को तो ख़सारा होता है

इब्न-ए-इंशा शायरी ग़ज़लें

दफ़्तर से उठे कैफ़े में गए कुछ शेर कहे कुछ कॉफ़ी पी पूछो जो मआश का 'इंशा'-जी यूँ अपना गुज़ारा होता है

इब्न-ए-इंशा शायरी ग़ज़लें

राज़ कहाँ तक राज़ रहेगा मंज़र-ए-आम पे आएगा

एक और शायरी

इब्न-ए-इंशा शायरी ग़ज़लें

राज़ कहाँ तक राज़ रहेगा मंज़र-ए-आम पे आएगा जी का दाग़ उजागर हो कर सूरज को शरमाएगा

इब्न-ए-इंशा शायरी ग़ज़लें

शहरों को वीरान करेगा अपनी आँच की तेज़ी से वीरानों में मस्त अलबेले वहशी फूल खिलाएगा

इब्न-ए-इंशा शायरी ग़ज़लें

हाँ यही शख़्स गुदाज़ और नाज़ुक होंटों पर मुस्कान लिए ऐ दिल अपने हाथ लगाते पत्थर का बन जाएगा

इब्न-ए-इंशा शायरी ग़ज़लें

दीदा ओ दिल ने दर्द की अपने बात भी की तो किस से की वो तो दर्द का बानी ठहरा वो क्या दर्द बटाएगा

इब्न-ए-इंशा शायरी ग़ज़लें

तेरा नूर ज़ुहूर सलामत इक दिन तुझ पर माह-ए-तमाम चाँद-नगर का रहने वाला चाँद-नगर लिख जाएगा