इब्न-ए-इंशा शायरी ग़ज़लें

रात के ख़्वाब सुनाएँ किस को रात के ख़्वाब सुहाने थे

इब्न-ए-इंशा शायरी ग़ज़लें

रात के ख़्वाब सुनाएँ किस को रात के ख़्वाब सुहाने थे धुँदले धुँदले चेहरे थे पर सब जाने-पहचाने थे

इब्न-ए-इंशा शायरी ग़ज़लें

ज़िद्दी वहशी अल्लहड़ चंचल मीठे लोग रसीले लोग होंट उन के ग़ज़लों के मिसरे आँखों में अफ़्साने थे

इब्न-ए-इंशा शायरी ग़ज़लें

वहशत का उनवान हमारी उन में से जो नार बनी देखेंगे तो लोग कहेंगे 'इंशा'-जी दीवाने थे

इब्न-ए-इंशा शायरी ग़ज़लें

ये लड़की तो इन गलियों में रोज़ ही घूमा करती थी इस से उन को मिलना था तो इस के लाख बहाने थे

इब्न-ए-इंशा शायरी ग़ज़लें

हम को सारी रात जगाया जलते बुझते तारों ने हम क्यूँ उन के दर पर उतरे कितने और ठिकाने थे

इब्न-ए-इंशा शायरी ग़ज़लें

देख हमारे माथे पर ये दश्त-ए-तलब की धूल मियाँ

एक और शायरी

इब्न-ए-इंशा शायरी ग़ज़लें

देख हमारे माथे पर ये दश्त-ए-तलब की धूल मियाँ हम से अजब तिरा दर्द का नाता देख हमें मत भूल मियाँ

इब्न-ए-इंशा शायरी ग़ज़लें

अहल-ए-वफ़ा से बात न करना होगा तिरा उसूल मियाँ हम क्यूँ छोड़ें उन गलियों के फेरों का मामूल मियाँ

इब्न-ए-इंशा शायरी ग़ज़लें

यूँही तो नहीं दश्त में पहुँचे यूँही तो नहीं जोग लिया बस्ती बस्ती काँटे देखे जंगल जंगल फूल मियाँ

इब्न-ए-इंशा शायरी ग़ज़लें

ये तो कहो कभी इश्क़ किया है जग में हुए हो रुस्वा भी? इस के सिवा हम कुछ भी न पूछें बाक़ी बात फ़ुज़ूल मियाँ

इब्न-ए-इंशा शायरी ग़ज़लें

नस्ब करें मेहराब-ए-तमन्ना दीदा ओ दिल को फ़र्श करें सुनते हैं वो कू-ए-वफ़ा में आज करेंगे नुज़ूल मियाँ

इब्न-ए-इंशा शायरी ग़ज़लें

सुन तो लिया किसी नार की ख़ातिर काटा कोह निकाली नहर एक ज़रा से क़िस्से को अब देते क्यूँ हो तूल मियाँ

इब्न-ए-इंशा शायरी ग़ज़लें

खेलने दें उन्हें इश्क़ की बाज़ी खेलेंगे तो सीखेंगे 'क़ैस' की या 'फ़रहाद' की ख़ातिर खोलें क्या स्कूल मियाँ

इब्न-ए-इंशा शायरी ग़ज़लें

अब तो हमें मंज़ूर है ये भी शहर से निकलीं रुस्वा हूँ तुझ को देखा बातें कर लीं मेहनत हुई वसूल मियाँ

इब्न-ए-इंशा शायरी ग़ज़लें

'इंशा' जी क्या उज़्र है तुम को नक़्द-ए-दिल-ओ-जाँ नज़्र करो रूप-नगर के नाके पर ये लगता है महसूल मियाँ