राम प्रसाद बिस्मिल शायरी

दुनिया से गुलामी का मैं नाम मिटा दूंगा

राम प्रसाद बिस्मिल शायरी

दुनिया से गुलामी का मैं नाम मिटा दूंगा। एक बार ज़माने को आज़ाद बना दूंगा।

राम प्रसाद बिस्मिल शायरी

बेचारे ग़रीबों से नफ़रत है जिन्हें, एक दिन, मैं उनकी अमरी को मिट्टी में मिला दूंगा।

राम प्रसाद बिस्मिल शायरी

यह फ़ज़ले-इलाही से आया है ज़माना वह, दुनिया की दग़ाबाज़ी दुनिया से उठा दूंगा।

राम प्रसाद बिस्मिल शायरी

ऐ प्यारे ग़रीबो! घबराओ नहीं दिल में, हक़ तुमको तुम्हारे, मैं दो दिन में दिला दूंगा।

राम प्रसाद बिस्मिल शायरी

बंदे हैं ख़ुदा के सब, हम सब ही बराबर हैं, ज़र और मुफ़लिसी का झगड़ा ही मिटा दूंगा।

राम प्रसाद बिस्मिल शायरी

जो लोग ग़रीबों पर करते हैं सितम नाहक़, गर दम है मेरा क़ायम, गिन-गिन के सज़ा दूंगा।

राम प्रसाद बिस्मिल शायरी

हिम्मत को ज़रा बांधो, डरते हो ग़रीबों क्यों? शैतानी क़िले में अब मैं आग लगा दूंगा।

राम प्रसाद बिस्मिल शायरी

ऐ ‘सरयू’ यक़ीं रखना, है मेरा सुख़न सच्चा, कहता हूं, जुबां से जो, अब करके दिखा दूंगा।