अहमद फ़राज़ शायरी
दिल भी बुझा हो शाम की परछाइयाँ भी हों
अहमद फ़राज़ शायरी
दिल भी बुझा हो शाम की परछाइयाँ भी हों
मर जाइये जो ऐसे में तन्हाइयाँ भी हों
अहमद फ़राज़ शायरी
आँखों की सुर्ख़ लहर है मौज-ए-सुपरदगी
ये क्या ज़रूर है के अब अंगड़ाइयाँ भी हों
अहमद फ़राज़ शायरी
हर हुस्न-ए-सादा लौ न दिल में उतर सका
कुछ तो मिज़ाज-ए-यार में गहराइयाँ भी हों
अहमद फ़राज़ शायरी
दुनिया के तज़किरे तो तबियत ही ले बुझे
बात उस की हो तो फिर सुख़न आराइयाँ भी हों
अहमद फ़राज़ शायरी
पहले पहल का इश्क़ अभी याद है "फ़राज़"
दिल ख़ुद ये चाहता है के रुस्वाइयाँ भी हों
अहमद फ़राज़ शायरी
वो जो आ जाते थे आँखों में सितारे लेकर
एक और शायरी
अहमद फ़राज़ शायरी
वो जो आ जाते थे आँखों में सितारे लेकर
जाने किस देस गए ख़्वाब हमारे लेकर
अहमद फ़राज़ शायरी
छाओं में बैठने वाले ही तो सबसे पहले
पेड़ गिरता है तो आ जाते हैं आरे लेकर
अहमद फ़राज़ शायरी
वो जो आसूदा-ए-साहिल हैं इन्हें क्या मालूम
अब के मौज आई तो पलटेगी किनारे लेकर
अहमद फ़राज़ शायरी
ऐसा लगता है के हर मौसम-ए-हिज्राँ में बहार
होंठ रख देती है शाख़ों पे तुम्हारे लेकर
अहमद फ़राज़ शायरी
शहर वालों को कहाँ याद है वो ख़्वाब फ़रोश
फिरता रहता था जो गलियों में गुब्बारे लेकर
अहमद फ़राज़ शायरी
नक़्द-ए-जान सर्फ़ हुआ क़ुल्फ़त-ए-हस्ती में 'अहमद फ़राज़'
अब जो ज़िन्दा हैं तो कुछ सांस उधारे लेकर