अहमद फ़राज़ शायरी

तुम भी ख़फ़ा हो लोग भी बरहम हैं दोस्तो

अहमद फ़राज़ शायरी

तुम भी ख़फा हो लोग भी बरहम हैं दोस्तो अ़ब हो चला यकीं के बुरे हम हैं दोस्तो

अहमद फ़राज़ शायरी

किसको हमारे हाल से निस्बत हैं क्या करे आखें तो दुश्मनों की भी पुरनम हैं दोस्तो

अहमद फ़राज़ शायरी

अपने सिवा हमारे न होने का ग़म किसे अपनी तलाश में तो हम ही हम हैं दोस्तो

अहमद फ़राज़ शायरी

कुछ आज शाम ही से हैं दिल भी बुझा बुझा कुछ शहर के चराग भी मद्धम हैं दोस्तो

अहमद फ़राज़ शायरी

इस शहरे आरज़ू से भी बाहर निकल चलो अ़ब दिल की रौनकें भी कोई दम हैं दोस्तो

अहमद फ़राज़ शायरी

सब कुछ सही "फ़राज़" पर इतना ज़रूर हैं दुनिया में ऐसे लोग बहुत कम हैं दोस्तो

अहमद फ़राज़ शायरी

करूँ न याद मगर किस तरह भुलाऊँ उसे

एक और शायरी  

अहमद फ़राज़ शायरी

करूँ न याद मगर किस तरह भुलाऊँ उसे ग़ज़ल बहाना करूँ और गुनगुनाऊँ उसे

अहमद फ़राज़ शायरी

वो ख़ार-ख़ार है शाख़-ए-गुलाब की मानिन्द मैं ज़ख़्म-ज़ख़्म हूँ फिर भी गले लगाऊँ उसे

अहमद फ़राज़ शायरी

ये लोग तज़्क़िरे करते हैं अपने लोगों के मैं कैसे बात करूँ और कहाँ से लाऊँ उसे

अहमद फ़राज़ शायरी

मगर वो ज़ूदफ़रामोश ज़ूद-रंज भी है कि रूठ जाये अगर याद कुछ दिलाऊँ उसे

अहमद फ़राज़ शायरी

वही जो दौलत-ए-दिल है वही जो राहत-ए-जाँ तुम्हारी बात पे ऐ नासिहो गँवाऊँ उसे

अहमद फ़राज़ शायरी

तू पास भी हो तो दिल बेक़रार अपना है

एक और शायरी  

अहमद फ़राज़ शायरी

तू पास भी हो तो दिल बेक़रार अपना है के हमको तेरा नहीं इंतज़ार अपना है

अहमद फ़राज़ शायरी

मिले कोई भी तेरा ज़िक्र छेड़ देते हैं के जैसे सारा जहाँ राज़दार अपना है

अहमद फ़राज़ शायरी

वो दूर हो तो बजा तर्क-ए-दोस्ती का ख़याल वो सामने हो तो कब इख़्तियार अपना है

अहमद फ़राज़ शायरी

ज़माने भर के दुखों को लगा लिया दिल से इस आसरे पे के इक ग़मगुसार अपना है

अहमद फ़राज़ शायरी

"फ़राज़" राहत-ए-जाँ भी वही है क्या कीजे वो जिस के हाथ से सीनाफ़िग़ार अपना है

अहमद फ़राज़ शायरी

जो हमसफ़र सर-ए-मंज़िल बिछड़ रहा है "फ़राज़" अजब नहीं कि अगर याद भी न आऊँ उसे