अहमद फ़राज़ शायरी

आँखों में चुभ रहे हैं दरो-बाम के चराग़

अहमद फ़राज़ शायरी

आँखों में चुभ रहे हैं दरो-बाम के चराग़ जब दिल ही बुझ गया हो तो किस काम के चराग़

अहमद फ़राज़ शायरी

क्या शाम थी कि जब तेरे आने की आस थी अब तक जला रहे हैं तेरे नाम के चराग़

अहमद फ़राज़ शायरी

शायद कभी ये अर्स-ए-यक-शब न कट सके तू सुब्ह की हवा है तो हम शाम के चराग़

अहमद फ़राज़ शायरी

इस तीरगी में लग्ज़िशे-पा भी है ख़ुदकुशी ऐ रहरवाने-शौक़ ज़रा थाम के चराग़

अहमद फ़राज़ शायरी

हम क्या बुझे कि जाती रही यादे रफ़्तगाँ शायद हमीं थे गर्दिशे-अय्याम के चराग़

अहमद फ़राज़ शायरी

हम दरख़ुरे-हवा-ए-सितम भी नहीं ‘फ़राज़’ जैसे मज़ार पर किसी गुमनाम के चिराग़

अहमद फ़राज़ शायरी

नज़र की धूप में साये घुले हैं शब की तरह

एक और शायरी  

अहमद फ़राज़ शायरी

नज़र की धूप में साये घुले हैं शब की तरह मैं कब उदास नहीं था मगर न अब की तरह

अहमद फ़राज़ शायरी

फिर आज शह्रे-तमन्ना की रहगुज़ारों से गुज़र रहे हैं कई लोग रोज़ो-शब की तरह

अहमद फ़राज़ शायरी

तुझे तो मैंने बड़ी आरज़ू से चाहा था ये क्या कि छोड़ चला तू भी और सब की तरह

अहमद फ़राज़ शायरी

फ़सुर्दगी है मगर वज्हे-ग़म नहीं मालूम कि दिल पे बोझ-सा है रंजे-बेसबब की तरह

अहमद फ़राज़ शायरी

खिले तो अबके भी गुलशन में फूल हैं लेकिन न मेरे ज़ख़्म की सूरत न तेरे लब की तरह