अहमद फ़राज़ शायरी

तुझसे बिछड़ के हम भी मुकद्दर के हो गये

अहमद फ़राज़ शायरी

तुझसे बिछड़ के हम भी मुकद्दर के हो गये फिर जो भी दर मिला है उसी दर के हो गये

अहमद फ़राज़ शायरी

फिर यूँ हुआ के गैर को दिल से लगा लिया अंदर वो नफरतें थीं के बाहर के हो गये

अहमद फ़राज़ शायरी

क्या लोग थे के जान से बढ़ कर अजीज थे अब दिल से मेह नाम भी अक्सर के हो गये

अहमद फ़राज़ शायरी

ऐ याद-ए-यार तुझ से करें क्या शिकायतें ऐ दर्द-ए-हिज्र हम भी तो पत्थर के हो गये

अहमद फ़राज़ शायरी

समझा रहे थे मुझ को सभी नसेहान-ए-शहर फिर रफ्ता रफ्ता ख़ुद उसी काफिर के हो गये

अहमद फ़राज़ शायरी

अब के ना इंतेज़ार करें चारगर का हम अब के गये तो कू-ए-सितमगर के हो गये

अहमद फ़राज़ शायरी

रोते हो एक जजीरा-ए-जाँ को "फ़राज़" तुम देखो तो कितने शहर समंदर के हो गये

अहमद फ़राज़ शायरी

गनीम से भी अदावत में हद नहीं माँगी

एक ओर शायरी

अहमद फ़राज़ शायरी

गनीम से भी अदावत में हद नहीं माँगी कि हार मान ली, लेकिन मदद नहीं माँगी

अहमद फ़राज़ शायरी

हजार शुक्र कि हम अहले-हर्फ़-जिन्दा ने मुजाविराने-अदब से सनद नहीं माँगी

अहमद फ़राज़ शायरी

बहुत है लम्हा-ए-मौजूद का शरफ़ भी मुझे सो अपने फ़न से बकाये-अबद नहीं माँगी

अहमद फ़राज़ शायरी

क़बूल वो जिसे करता वो इल्तिजा नहीं की दुआ जो वो न करे मुस्तरद, नहीं माँगी

अहमद फ़राज़ शायरी

मैं अपने जाम-ए-सद-चाक से बहुत खुश हूँ कभी अबा-ओ-क़बा-ए-ख़िरद नहीं माँगी

अहमद फ़राज़ शायरी

शहीद जिस्म सलामत उठाये जाते हैं तभी तो गोरकनों से लहद नहीं माँगी

अहमद फ़राज़ शायरी

मैं सर-बरहना रहा फिर भी सर कशीदा रहा कभी कुलाह से तौक़ीद-ए- सर नहीं माँगी

अहमद फ़राज़ शायरी

अता-ए-दर्द में वो भी नहीं था दिल का ग़रीब `फ़राज' मैंने भी बख़्शिश में हद नहीं माँगी