न कोई ख़्वाब न ताबीर ऐ मेरे मालिक
अहमद फ़राज़ शायरी
न कोई ख़्वाब न ताबीर ऐ मेरे मालिक मुझे बता मेरी तक़सीर ऐ मेरे मालिक
अहमद फ़राज़ शायरी
न वक़्त है मेरे बस में न दिल पे क़ाबू है
है कौन किसका इनागीर ऐ मेरे मालिक
अहमद फ़राज़ शायरी
उदासियों का है मौसम तमाम बस्ती पर
बस एक मैं नहीं दिलगीर ऐ मेरे मालिक
अहमद फ़राज़ शायरी
सभी असीर हैं फिर भी अगरचे देखने हैं
है कोई तौक़ न ज़ंजीर ऐ मेरे मालिक
अहमद फ़राज़ शायरी
सो बार बार उजड़ने से ये हुआ है कि अब
रही न हसरत-ए-तामीर ऐ मेरे मालिक
अहमद फ़राज़ शायरी
मुझे बता तो सही मेहरो-माह किसके हैं
ज़मीं तो है मेरी जागीर ऐ मेरे मालिक
अहमद फ़राज़ शायरी
‘फ़राज़’ तुझसे है ख़ुश और न तू ‘फ़राज़’ से है
सो बात हो गई गंभीर ऐ मेरे मालिक
अहमद फ़राज़ शायरी