मैं पल दो पल शायर हूं पल दो पल मेरी कहानी है ,मुझसे पहले कितने शायर,आए और आकर चले गए
आज साहिर हमारे बिच नहीं हैं ,लेकिन ज़िंदा हैं हर शब्द साहिर का ,उनकी शायरी के रूप मे , 25 अक्टूबर 1980 को अलविदा कह गए साहिर लुधियानवी.
भारतीय सिनेमा के प्रसिद्ध गीतकार और कवि थे साहिर,साहिर का उर्दू में मतलब होता है जादूगर और साहिर सच में लफ्जों के जादूगर थे।
साहिर लुधियानवी का असली नाम अब्दुल हयी साहिर था । उनका जन्म 8 मार्च 1921 में लुधियाना के एक जागीरदार घराने में हुआ था। हँलांकि इनके पिता बहुत धनी थे ,पर माता-पिता में अलगाव होने के कारण उन्हें माता के साथ रहना पड़ा और गरीबी में गुजर बसर करना पड़ा।
साहिर की पढ़ाई लुधियाना के ‘खालसा हाई स्कूल’ में हुई।कॉलेज़ के दिनों से ही वे अपनी शायरी के लिए मशहूर हो गए थे और अमृता प्रीतम उनके प्रशंसको मे से एक थीं और उन्हे पसंद करती थी । अमृता के परिवार वालों को इस रिश्ते से आपत्ति थी क्योंकि साहिर मुस्लिम थे।
1943 में साहिर लाहौर चले गए लाहौर जाकर उन्होने अपना पहला कविता संग्रह तलखियां शाया किया जो की बेहद लोकप्रिय हुआ और उनकी ख्याति दूर-दूर तक फैल गई. इसके बाद 1945 में वह प्रसिद्ध उर्दू पत्र अदब-ए-लतीफ़ और शाहकार लाहौर के संपादक बन गए.
साहिर एक रूमानी शायर थे. उन्होंने ज़िंदगी में कई बार मुहब्बत की, लेकिन उनका इश्क़ कभी परवान नहीं च़ढ पाया. वह अविवाहित ही रहे.
साहिर का विवाह नहीं हुआ था, उनकी ज़िंदगी बेहद तन्हा रही। पहले अमृता प्रीतम के साथ प्यार की असफलता और इसके बाद गायिका और अभिनेत्री सुधा मल्होत्रा के साथ अधूरे प्रेम कहानी ने साहिर की हसरतो पर पानी फेर दिया .
साहिर ने अपनी कलम का जादू फिल्मो मे भी दिखाया हैं .फिल्म नौजवान का गीत ठंडी हवाएं लहरा के आएं…ने उन्हें प्रसिद्धि दिलाई.उनके गीतों और नज़्मों का जादू सिर च़ढकर बोलता था.
साहिर काफी लोकप्रिय शायर बन चुके थे और वे अपने गीतों के लिए लता मंगेशकर को मिलने वाले पारिश्रमिक से एक रुपया अधिक लेते थे।
कहा जाता है कि एक गायिका ने फिल्मों में काम पाने के लिए साहिर से नज़दीकियां ब़ढाईं और बाद में उनसे किनारा कर लिया
इसी दौर में साहिर ने एक खूबसूरत नज़्म लिखी:-चलो इक बार फिर से.अजनबी बन जाएं हम दोनों ,,उनके गीतों में झलकती संजीदगी उनकी ज़िन्दगी को बया करती हैं.
जिस फिल्म के लिए वो गीत लिख देते थे वो फिल्म हिट समझ ली जाती थी .साहिर कभी किसी के सामने नहीं झुकते थे, वह संगीतकार से ज़्यादा मेहनताना लेते थे और ताउम्र साहिर ने अपनी शर्तो पर फिल्मों में गीत लिखे .
साहिर को चमचमाती महंगी गा़डियों का शौक़ था.साहिर स़िर्फ अपने लिए ही नहीं, दूसरों के लिए भी सिद्धांतवादी थे. साहिर लाहौर में साहिर साक़ी नामक एक मासिक उर्दू पत्रिका भी निकालते थे.
पत्रिका घाटे मे चलने के बावजूद साहिर की यह कोशिश रहती थी कि कम ही क्यों न हो, लेकिन लेखक को उसका मेहनताना ज़रूर दिया जाए.
इसी प्रकार ‘ऑल इंडिया रेडियो’ पर होने वाली घोषणाओं में गीतकारों का नाम भी दिए जाने की मांग साहिर ने ही की थी , जिसे बाद मे मान लिया गया।
इससे पहले किसी गाने की सफलता का पूरा श्रेय संगीतकार और गायक को ही मिलता था।साहिर के लिखे गानों से उनकी शख्सियत का पता चलता हैं।
अपनी शायरी की बदौलत वह गीतों में आज भी ज़िंदा हैं.साहिर की रचनाओं ने साहिर को अमर बना दिया . दुनिया रहने तक लोग उनके गीतों को गुनगुनाते रहेंगे
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